लोककथा : इजा! बस तीन पतली-सी रोटियाँ
बहुत पुरानी बात है. उस पहाड़ी गाँव में एक लड़की रहती थी. माँ के अलावा उसका इस दुनिया में कोई नहीं था. वह बहुत छोटी थी कि पिता चल बसे. चाचा-ताऊ थे नहीं और न भाई-बहन. माँ ने ही उसे पाल-पोसकर ब... Read more
न्यौली चिड़िया से जुड़ी कुमाऊनी लोककथा
पहाड़ की बाखलियों के आस-पास इन दिनों न्यौली चिड़िया का बोलना खूब सुनाई देना शुरु हो गया. उदासी, करुणा और विरह जैसे शब्दों का पर्याय है न्यौली की आवाज. न्यौली, अक्सर अकेले चलने वाली एक ऐसी चि... Read more
सोमेश्वर क्षेत्र शिव की घाटी के रूप में भी जाना जाता है. इसे पूरे क्षेत्र में 12 से अधिक शिव को समर्पित शिव मंदिर हैं. सोमनाथ शिव का मंदिर सोमेश्वर घाटी के शिव मंदिरों में एक प्रमुख मंदिर है... Read more
डरपोक बाघ और चालाक सियार की कहानी
बड़ी पुरानी बात है जंगल के राजा बाघ और हाथी के बीच भयंकर लड़ाई हो गयी. 22 दिन 22 रात चली इस लड़ाई में बाघ मारा गया. बाघ के मारे जाने के बाद जंगल में कोई राजा न हुआ. बाघ की पत्नी अपने छोटे बच... Read more
नास्तिक : कुमाऊनी लोककथा
एक व्यक्ति ने एक सन्यासी से तीन सवाल पूछे. (kumaoni folklore Ivan Minayev) पहला सवाल था — आप ऐसा क्यों कहते हैं कि परमात्मा सर्वत्र व्याप्त है. मुझे तो वह दिखाई नहीं देता है. मुझे दिखाओ कि प... Read more
क़ीमती सलाह : कुमाऊनी लोककथा
एक अमीर आदमी के दो बेटे थे, जब वे बड़े हुए तब उसने दोनों को अपना व्यापार शुरू करने के लिये चार हज़ार रुपए दिए. बड़ा बेटा व्यापार करने चल दिया लेकिन छोटे बेटे ने उन रुपयों से एक जानेमाने फ़क़... Read more
उत्तराखंड लोक गीतों, लोक नृत्यों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों का खजाना है. उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के वाद्य यंत्र हों या उनसे निकलने वाला संगीत, दोनों बेहद विशिष्ट हैं. उत्तराखंड राज्य की पर... Read more
बचपन से ही अक्सर हम देखते थे गाँव में कोई भी शुभ कार्य हो महिलाओं की एक विशेष ही भूमिका होती थी. किसी के भी घर का कोई भी मांगलिक काम हो महिलाओं द्वारा उस घर में एकत्रित हो कर गीत गाए जाते थे... Read more
उत्तराखंडी समाज में बसंत पंचमी का महत्व उसी तरह है जिस तरह मकरैणी यानी मकर संक्रांति का. पंचमी पर स्नान आदि का महत्व है और इस दिन लोग मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं. यह ऋतु पर्व ग्रामीण समा... Read more
‘बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले’ गीत को उत्तर भारत की शादियों का राष्ट्रीय विदाई गीत कहना गलत नहीं होगा. फिल्म नीलकमल के लिए साहिर लुधयानवी के लिखे इस गीत को मोहम्मद रफ़ी न... Read more