उत्तराखण्ड के एक लोक शिल्पी का जीवन
ग्राम नुवाली पोस्ट चैनपुर, जिला पिथौरागढ के रहने वाले फुन राम इस समय 80 साल के है. फुन राम बचपन से ही अपने पिता देव राम के साथ दैन (पहाड़ी नगाड़ा) पर खाल चढ़ाने का काम करते आए हैं. उनके पिता... Read more
उत्तराखंड के कालिदास शेरदा
शेरदा चले गये. मेरा उनका वर्षों साथ रहा. सचमुच वे अनपढ़ थे. यदि अनपढ़ नहीं होते तो इतनी ताजी उपमाएँ कहाँ से लाते? कहाँ से वह पीड़ा लाते जो उनकी कविता के ‘हरे गौ म्यर गौं’ में व्यंजित है. कहा... Read more
बचपन में देखा हुआ एक स्वप्न है मेरा एड़द्यो
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में मछखाली और सोमश्वर के बीच लगभग सात हजार फीट ऊँची पर्वतश्रेणी एड़द्यो कहलाती है. इस पर्वत पर सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित जंगल, वन विभाग के अभिलेखों में, खजूरी बीट के... Read more
इन मुश्किल दिनों में तीन कुमाऊनी गीत
लॉकडाउन के समय में परेशानियों से जूझ रहे लोग आपसी सहयोग से जिंदगी को थोड़ा आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जब सामान्य जनजीवन ठप है और कई अनसुलझे सवाल, तो अपना मनोबल बनाये रखने के लिए रचनात्म... Read more
बसंत के इस्तकबाल का त्यौहार है फूलदेई
ऋतुराज बसंत का स्वागत उत्तराखण्ड को देवभूमि के साथ उत्सवों की भी भूमि कहा जाय तो गलत नहीं होगा. यहाँ साल भर उत्सव, पर्व, त्यौहार, मेलों की धूम रहती है. बसंत के आगमन का स्वागत भी उत्तराखण्ड )... Read more
घुघुती की हमारे लोकजीवन में गहरी छाप है
घुघूती का महत्व देश के अन्य भागों में कितना है कह नहीं सकता किन्तु गढ़वाल-कुमाऊँ में घुघुती की छाप सबके मन में है. चैत-बैसाख की बात हो और घुघुती की बात न हो, ऐसा नहीं हो सकता. लोक संस्कृति य... Read more
बंसत पंचमी नये कार्यों की शुरुआत करने का पर्व है
बसंत ऐग्ये हे पार सार्यो मां, रूणक झुणक ऋतु बसंत गीत लगांदि ऐग्ये… आज से बंसत का आगमन हो गया है. बसंत पंचमी खुशियों की शुरुआत का त्योहार है. इस बार बसंत पंचमी दो दिन मनायी जा सकती है.... Read more
उत्तराखण्ड के बागेश्वर में लगने वाला उत्तरायणी मेला ऐतिहासिक महत्व रखता है. (Uttarayani Mela Bageshwar 2020) पुराने समय में यह मूलतः व्यापार आधारित था. दूर दराज से लोग खरीदारी करने यहाँ आते... Read more
जरा ठन्डू चलदी, जरा मठ्ठु चलदी, मेरी चदरी छुट्टी ग्ये पिछनै उत्तराखण्ड के लोगों के लिए चन्द्र सिंह राही का अर्थ है एक ऐसी आवाज जिसमें पहाड़ तैरते थे. उनके गले से लहरें उठती थी और उत्तराखण्ड... Read more
चांचड़ी: उत्तराखंडी लोकसंस्कृति की रीढ़
मनुष्य का समभाव होना बुद्धत्व को प्राप्त कर लेना है. निर्वाण प्राप्त करना है, जिसमें जाति-धर्म, ऊंच-नीच, अगड़ा-पिछड़ा, महिला-पुरुष छोटा-बड़ा सवर्ण-दलित कुछ नहीं रहता, मात्र मनुष्य होना हो जा... Read more