बाबा केदार के कपाट शीतकाल के लिए बंद
बाबा की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली केदारनाथ से ऊखीमठ के लिए हुई रवाना. भगवान आशुतोष के बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक केदारनाथ धाम के कपाट आज भैयादूज के पर्व पर वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ शी... Read more
मेरे दादा के समय तक के किस्से मैंने बचपन में खूब सुने. जितने भी किस्से सुने उनमें एक किस्सा होता कि पहले लोग नमक लाने के लिए यहाँ से टनकपुर तक की पैदल यात्राएँ करते थे. मामूली जरूरतों तक सीम... Read more
चम्पावत से ढकना गांव (चम्पावत-अल्मोड़ा पुराना पैदल मार्ग) तक तीन किमी. और ढकना से चम्पावत-मायावती पैदल मार्ग से लगभग चार किमी. की दूरी पर प्राचीन कुमाऊँ की स्थापत्यकला के एक अत्यंत उत्कृष्ट उ... Read more
दारमा घाटी पिथौरागढ़ जिले के पूर्वी छोर में बहने वाली धौली गंगा की घाटी को कहा जाता है. दुग्तू- दांतू में पंचाचूली से आने वाली धारा धौली में मिलती है. इस जलधारा का श्रोत पंचाचूली ग्लेशि... Read more
कुमाऊं की मोहब्बत में गिरफ्तार एक अंग्रेज जोड़ा
किसी ने गलत नहीं कहा है जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं. यह बात आजकल कुमाऊं की सड़कों पर आवारागर्दी करते हुए डेनिस और उनकी पत्नी विवियन पर सटीक बैठती है. ये दोनो... Read more
जब मुझे दोबारा ॐ के दर्शन हुए
अदभुत नाभीढांग धारचुला की ऊँची पहाड़ियों में बसा एक छोटा सा स्थान जो ॐ पर्वत की वजह से जाना जाना है. नाभीढांग समुन्द्र तल से लगभग 4000 मीटर की ऊंचाई पर बसा एक खूबसूरत स्थान है. कैलाश मानसरोव... Read more
माँ दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित नौ मंदिर हैं. पाताल देवी का मंदिर उन्हीं में से एक है. अल्मोड़ा से पांच-छः किलोमीटर दूर यह मंदिर ग्राम शैल में है. कोई 250 वर्ष पुराने इस मंदिर के आसपास एक ज़... Read more
गणानाथ मन्दिर की अलौकिक विष्णु प्रतिमा
अल्मोड़ा से कोई 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गणानाथ का मंदिर मूलतः शिव का मंदिर है. समुद्रतट से 2116 मीटर की ऊंचाई पर एक एकांत स्थल पर सतराली के समीप तल्ला स्यूनरा में मौजूद यह शिव-मंदिर लम्... Read more
एक त्रिशूल की आंखिन देखी
मैं, अर्थात गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित त्रिशूल, आँखिन देखी अपनी कथा सुनाकर जी हल्का करना चाहता हूँ. त्रिशूल का देखा हुआ अर्थात त्रिशूलन देखी. (Tragedy of Trishul Temple G... Read more
नैनीताल जिले का छोटा सा कस्बा मुक्तेश्वर अंग्रेजों की देन है. लिंगार्ड नामक एक अंग्रेज ने इसकी खोज की और उसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने अनुसन्धान कार्यों के लिए इसको चुना. धीरे-धीरे आजादी के बाद... Read more