ब्रह्माण्ड एवं विज्ञान : गिरीश चंद्र जोशी
ब्रह्माण्ड अनेक रहस्यों से भरा है. इनके बारे में जानने के लिए उत्सुकता लगातार बनी रही है. आदि काल से ही मानव ने आकाश में सूर्य, चंद्र व तारों को देखा. इनकी गतियों का निरीक्षण किया. धीरे-धीर... Read more
परम्परागत घराट उद्योग
वस्तुतः घराट को परम्परागत जल प्रबंधन, लोक विज्ञान और गांव-समाज की सामुदायिकता का अनुपम उदाहरण माना जाता है. सही मायने में ये घराट ग्रामीण आत्मनिर्भरता और पर्यावरण सम्मत कुटीर उद्योग के प्रती... Read more
‘गया’ का दान ऐसे गया
साल 1846 ईसवी. अवध के कैंसर से जूझते नवाब अमजद अली शाह अपने अंतिम दिन गिन रहे थे. कभी समृद्धि की चकाचौंध से भरे अवध के विशाल साम्राज्य के भी अंतिम दिन शुरू होने वाले थे. 1801 की संधि के अनुस... Read more
कोसी नदी ‘कौशिकी’ की कहानी
इस पहाड़ से निकल उस पहाड़कभी गुमसुम सी कभी दहाड़यूं गिरते-उठते, चलते मिल समंदर से जाती हैहर नदी अपनी मंजिल यूं ही तो पाती है. जिस प्रकार शरीर में धमनियां हैं, ठीक उसी प्रकार प्रकृति में नदिय... Read more
यो बाटा का जानी हुल, सुरा सुरा देवी को मंदिर…
मुनस्यारी में एक छोटा सा गांव है सुरिंग. गांव से कुछ तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर नंदा देवी का मंदिर है. बचपन में पिताजी हर साल अपने साथ नंदाष्टमी पर सुरिंग ले जाया करते थे. पिताजी का पूरा... Read more
कुमौड़ गांव में हिलजात्रा : फोटो निबन्ध
हिलजात्रा एक ऐसी परंपरा जो पिछले 500 सालों से पिथौरागढ़ के कुमौड़ गाँव में चली आ रही है जिसे कुमौड़ के महर अपने पुरखों के समय से मनाते हैं. हिलजात्रा की यात्रा के सूत्र तिब्बत से शुरू हो नेप... Read more
शो मस्ट गो ऑन
मुझ जैसा आदमी… जिसके पास करने को कुछ नहीं है… जो बिलकुल अकेला हो और उससे बढ़ कर बूढ़ा हो… वह क्या करे? अकेला बैठा बैठा. क्या याद करे अपनी जिंदगी के बीते पल को? कैदी बन गया हूँ अप... Read more
किसी भी समाज के निर्माण से लेकर उसके सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. शिक्षा औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही रूपों में प्राप्त की जाती है. अनौपचारिक शिक्ष... Read more
चप्पलों के अच्छे दिन
लंबे अरसे से वह बेरोज़गारों के पाँव तले घिसती हुई जिन्स की इमेज ढोती रही. उसका हमवार जूता, हर राह, हर मंज़िल पर अपनी चमक-धमक के लिए नामवर हुआ. मगर अब लगता है चप्पल के दिन फिर गए हैं. जूते के... Read more
छिपलाकोट अंतरयात्रा : चल उड़ जा रे पंछी
पिछली कड़ी : छिपलाकोट अंतरयात्रा : वो भूली दास्तां, लो फिर याद आ गई सुबह हो गई है. मौसम बिलकुल साफ है. सब लोग उठ गये हैँ. कोने में नाक पर उंगलियां हटाते दबाते भगवती बाबू सांस ऊपर नीचे कर प्रा... Read more