जब से हमने होश संभाला, कुमांऊनी का गाना – ‘चैकोटकि पारबती तीलै धारू बोला बली, तीलै धारू बोला’ अथवा ‘ओ लाली हो लाली हौंसिंया, बसन्ती लाली तीलै धारू बोला’ जैसे गीत सुनते आये हैं. अब तो रोचक बन... Read more
गंगोलीहाट की डॉ. सविता जोशी जो गुड़गांव में गेरु और बिस्वार से ऐपण बना कर देश और दुनिया में अपनी संस्कृति को लोकप्रिय बना रही हैं
ऐपण हमारी परवरिश का एक हिस्सा रहा है जो बाद में केवल महिलाओं और लड़कियों तक सीमित रह गया. ऐपण का मतलब है लीपना. लीप शब्द का अर्थ है अंगुलियों से रंगने से है. गेरु की पृष्ठभूमि पर बिस्वार अथवा... Read more
कुमाऊं के जागरों में ‘छिपुलाकोट का हाड़’ के नाम से सैम की एक जागर गाथा गायी जाती है जिसमें बताया जाता है कि सैम छिपुलाकोट की रानी पर मोहित हो गया था तथा इसके फलस्वरूप वहां के राजा ने उसे बं... Read more
[पिछ्ला भाग: हल्द्वानी का प्राचीन मंदिर जिसकी संपत्ति का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा गया] सन 1901 में बाबू रामप्रसाद मुख्तार ने आर्य समाज भवन बनवाया तथा संवत 1985 में श्रीमती त्रिवेणी देवी ने... Read more
[पिछ्ला भाग: तब बची गौड़ धर्मशाला ही यात्रियों के लिए इकलौता विश्राम स्थल थी हल्द्वानी में – 1894 में बनी] बची गौड़ धर्मशाला के अलावा उसी समय अनेक उल्लेखनीय कार्य भी हुए. सन 1884 में पं. देवीद... Read more
भले कुमांउनी भाषा न होकर अभी तक बोली ही मानी जायेगी, क्योंकि न तो इस का मानकीकरण हुआ है और न व्याकरण. लेकिन लिपिबद्धता की सीमितता के बावजूद वाचिक परम्परा से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित इस का... Read more
हल्द्वानी ब्लॉक की पनियाली ग्राम सभा से मात्र 21 साल 3 महीने की उम्र में ग्राम प्रधान का चुनाव जीतकर रागिनी आर्या ने नया इतिहास रचा है. रागिनी आर्य सबसे कम उम्र की जनप्रतिनिधि बनी हैं. (Youn... Read more
अलविदा सुरेन्द्र पुंडीर भैजी
लिखा-पढ़ी से जुड़ा उत्तराखण्ड में कौन होगा जो इस शख़्स को नहीं जानता होगा. साहित्य-संस्कृति-पत्रकारिता का कोई भी आयोजन हो पुंडीर भाई खोली के गणेश की तरह सबसे पहले स्थापित हो जाते थे. बल्कि... Read more
चौखुटिया से 12 किलोमीटर पहले रामगंगा नदी के पूर्वी किनारे पर तल्ला गेवाड़ में एक छोटी सी बसासत है मासी. 20 अक्टूबर के दिन यहां एक हाफ मैराथन का आयोजन किया गया था. इस हाफ मैराथन और... Read more
तब बची गौड़ धर्मशाला ही यात्रियों के लिए इकलौता विश्राम स्थल थी हल्द्वानी में – 1894 में बनी
[एक ज़माने में तराई-भाबर का भी इकलौता बाजार था हल्द्वानी का मंगल पड़ाव] हल्द्वानी में आने-जाने वालों के लिए इकलौता विश्राम स्थल थी बची गौड़ धर्मशाला. कहा जाता है कि बची गौड़ ने इस धर्मशाला का नि... Read more