पांडवों की बिल्ली और कौरवों की मुर्गी कैसे बनी महाभारत का कारण: कुमाऊनी लोक साहित्य
कुमाऊं का यह दुर्भाग्य रहा है कि यहां का लोक साहित्य कभी सहेज कर ही नहीं रखा गया. इतिहास में ऐसी कोई कोशिश दर्ज नहीं है जिसमें यहां की परम्परा और संस्कृति को सहेजने की ठोस कोशिश देखने को मिल... Read more
कुमाऊं में दाह संस्कार का पारंपरिक तरीका
मृतक संस्कार में मृत्यु के समय गोदान और दशदान कराया जाता है. मरणासन्न व्यक्ति के मुख में तुलसीदल और गंगाजल डालते हैं. फिर मृतक को स्नानोपरान्त चन्दन और यज्ञोपवीत धारण कराए जाते हैं. मृतक के... Read more
ऐड़ी: ऊंचे शिखरों पर रहने वाले लोक देवता
गांव में यह परम्परा थी कि जब भी गाय ब्याती (प्रसव) तो 22 दिन पूरे होने पर उस गाय का दूघ ऐड़ी देवता के मन्दिर में अर्पित किया जाता. 22 दिन से पूर्व का दूध ऐड़ी देवता को चढ़ाने के लिए अशुद्ध म... Read more
क्या पिछौड़ा, ऐपण, अल्पना आदि का ‘फैशन ट्रेंड’ सांस्कृतिक विरासत को प्रभावित करता है?
विरासतों का सृजनात्मक उपयोग और मौलिकता उत्तराखंड में महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला परिधान पिछौड़ा, परम्परागत रूप से कुमाऊं मूल के लोगों की विशिष्ट संस्कृति को प्रतिबिंबित करता है... Read more
आज पारम्परिक पकवानों की सुंगध बिखरेगी पहाड़ों में
आज उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला है. आज की सुबह हरेला काटे जाने के बाद सबसे पहले अपने इष्टदेव के मंदिर में चढ़ता है साथ में चढ़ते हैं पारम्परिक पकवान. उसके बाद घर के बुजुर्ग हरेला लगाने के शुर... Read more
हरेले से एक दिन पहले कुमाऊँ अंचल में डिकारे पूजे जाते हैं. कुछ लोग पहले ही डिकारे तैयार कर लेते हैं और कुछ आज ही उन्हें बनाते हैं. हरेले से एक दिन पहले गौधूली के बाद डिकारे पूजे जाते हैं. इस... Read more
हरेला लोकपर्व का पर्यावरण से संबंध
आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण सबंधित समस्याओं से जूझ रहा है. प्रकृति के संतुलन को बनाए रखना मानव के जीवन को सुखी, समृद्ध व संतुलित बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण का विशेष महत्व है.... Read more
हनोल का महासू देवता मंदिर
देवभूमि उत्तराखण्ड को शिव का निवास माना गया है. यहां भगवान शिव को कई रूपों में पूजा जाता है. हिमाचल सीमा से सटे उत्तराखण्ड के जौनसार-बावर तथा रवाई जौनपुर में पूजे जाने वाले महासू देवता इन्ही... Read more
हमारे पहाड़ों में नैंनांग देने की एक परम्परा है. नई फसल का पहला भोग अपने इष्टदेव को चढ़ाने का रिवाज यहां बहुत पुराना है. सभी गांव के लोग मंदिर में पूजा पाठ कर वहीं खाना बनाकर खाकर लौटते हैं.... Read more
मंदिर में रखी पत्थर की मूर्तियों पर पानी छिडका जाता है और प्रार्थना की जाती है —“परमेश्वर खुश हो जा, मेरी भूलचूक क्षमा कर और ये मेमना तेरी भेंट है, इसे स्वीकार कर, मैं नासमझ हूं और तू अन्तर्... Read more