नववर्ष के दिन बोया जाता है ‘हरेला’
माना जाता है कि चैत्र प्रतिपदा से नये साल की शुरुआत होती है आज के दिन से ही नवरात्रि भी होती है. पहाड़ों में आज के दिन उपवास रखा जाता है और कुछ जगहों पर आज के दिन हरेला भी बोया जाता है. हरेल... Read more
देहरादून का ऐतिहासिक झंडा मेला
झंडा मेला 350 वर्ष से भी पुराना ऐतिहासिक मेला है. होली के ठीक चार दिन बाद एक महीने तक चलने वाला झंडा मेला शुरू होता है. इस मेले में सुबह दरबार साहिब के बाहर स्थापित झंडे को उतारकर उसे दूध और... Read more
विरासत है ‘खन्तोली गांव’ की समृद्ध होली परम्परा
मुझे पहला मंच मेंरे गांव खन्तोली की होली में मिला. गांव के लोगों के प्रोत्साहन और शाबासी ने ही कुछ लिखने की प्रेरणा दी. मेंरे गुरु वास्तव में मेंरे गांव के लोग हैं, गाँव की होली है. क्या शान... Read more
शंखनाद से कम आध्यात्मिक नहीं हिमालयी मवेशियों के गले में बंधी तिब्बती घंटियों के सुर
हिमालयी चरवाहों के मवेशियों के गले में बंधी तिब्बती घंटियाँ और उनकी ध्वनि भी इन चरवाहों के जीवन की तरह ही गतिमान होती है. इन तिब्बती घंटियों की ध्वनि काफी तेज होने के बावजूद कानों को मधुर लग... Read more
कुमाऊं का सबसे समृद्ध कौतिक था ‘ठुल थल’
कुमाऊं में लगने वाले मेलों में थल का मेला सबसे महत्वपूर्ण मेलों में शामिल रहा है जो धार्मिक और व्यापारिक महत्वपूर्ण रहा है. कभी महीने महीने लगने वाला यह मेला अब केवल एक दिन तक सिमट कर रह गया... Read more
पहाड़ों में बसंत पंचमी से जुड़ी परम्परायें
बंसत पंचमी का दिन उत्तराखंड में सबसे पवित्र दिनों में एक माना जाता है. स्थानीय भाषा में इसे सिर पंचमी भी कहा जाता है. आज के दिन अपनी-अपनी स्थानीय नदियों को गंगा समझ कर स्नान किया जाता है और... Read more
पहाड़ चढ़ना जितना मुश्किल होता है, उस पर जिन्दगी बसर करना भी किसी चुनौती से कम नहीं होता. जीवन की मूलभूत सुविधाओं की दुश्वारियों के दंश उन्हीं पाषाणों में पुष्प खिलाने के गुर भी उन्हें सिखात... Read more
उत्तराखण्ड की बहुपति विवाह प्रथा
उत्तराखण्ड के पश्चिमी टिहरी और जौनसार बावर क्षेत्र में कभी बहुपति प्रथा खासे चलन में थी. इस प्रथा में सबसे बड़े भाई का विवाह होने पर उसकी पत्नी समान अधिकार के साथ सभी छोटे भाइयों की भी पत्नी... Read more
वरिष्ठता का पैमाना है पहाड़ी नामकरण का भात
नामकरण हमारे हिन्दू धर्म का पांचवां संस्कार होता है इस दिन माता-पिता नहाकर नए वस्त्र पहनते हैं और शिशु को भी नहलाकर नए कपड़े पहनाए जाते हैं. फिर माता-पिता बच्चे को अपनी गोद में लेकर हवन स्थल... Read more
रामगंगा नदी को पानी देने वाली अनेक गुमनाम नदियों के किनारे अनेक गांव हैं जिनके नाम सिवा खाता-खतूनी के कहीं और दर्ज नहीं हैं. हर गांव के नाम की अपनी कहानी है. इन गावों में अलग-अलग जाति के लोग... Read more