पहले हल्द्वानी के खेतों, बगीचों में जंगली जानवर घूमा करते थे, अब अलग-अलग नस्ल के कुत्ते भौंका करते हैं
आज स्थिति बिल्कुल अलग हो गई है पूरा हल्द्वानी और उसके आसपास के मीलों तक फैले गांव फतेहपुर, लामाचौड़, लालकुआं और रामपुर रोड के गांव सब कंक्रीट के जंगल में परिवर्तित हो गए हैं. एक गली, दूसरी,... Read more
बरेली के मिशनरी प्रचारक विलियम बटलर ने पहाड़ में मिशनरी का खूब प्रचार किया था. फतेहपुर के पास ईसाई नगर में पुराने चर्च में विलियम बटलर का नाम आज भी अंकित है ईसाई नगर हेनरी रैमजे के समय में ब... Read more
पीली कोठी, जज फ़ार्म और हल्द्वानी के बाकी मोहल्लों के नाम रखे जाने की कहानी
हल्द्वानी में पीली कोठी एक बड़ा क्षेत्र है लेकिन इसकी शुरुआत एक कोठी से हुई थी. इलाहाबाद से होम्योपैथिक डॉक्टर जयदत्त गुरु रानी 1928 में हल्द्वानी आकर रहने लगे थे. शुरू में मुखानी चौराहे पर... Read more
यहां भाबर के लिए एक शब्द अक्सर प्रयोग में लाया जाता है भबरी जाना, यानि खो जाना. यह बात पहले भी कही जा चुकी है कि इस खो जाने की प्रक्रिया को भबरिया कहा जाने लगा. ऐसा शब्द किसी भी शब्दकोश में... Read more
जब नैनीताल की बहुमूल्य विरासत जलकर खाक हो गयी
1962 में डॉक्टर हेमचंद्र जोशी जाड़ों में नैनीताल से हल्द्वानी रहने आया करते थे और कालाढूंगी रोड स्थित पीतांबर पंत के मकान में टिका करते थे. वे बहुत वृद्ध हो गए थे और उनकी आंखें बहुत कमजोर हो... Read more
हल्द्वानी के ‘न्यू लक्ष्मी सिनेमा’ में पहली फिल्म दिखाई गई थी कश्मीर की कली
नगर से महानगर हो चुके हल्द्वानी ने अपने आसपास के गांवों को भी अपने में सम्मिलित कर लिया है. मुखानी क्षेत्र में पर्वतीय रामलीला कुछ दिनों तक आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी जो अब बंद हो चुकी है.... Read more
धुआंधार कुमाऊनी बोलने वाले पहाड़ी सरदार
सरदार जगत सिंह के बड़े भाई दिलबर सिंह उनसे 10 साल बड़े थे. पिताजी के व्यवसाय में हाथ बताने के अलावा वह शेरो-शायरी व गीत-गजल के शौकीन भी थे. इनकी खूबियों से हल्द्वानी ही नहीं दूर-दूर के लोग प... Read more
हल्द्वानी का पहला फोटो स्टूडियो
कुमाऊं अंचल में कई प्रख्यात कलाकारों, रंगकर्मियों, साहित्यकारों ने जन्म लिया. उनमें से कुछ को जाना गया, कुछ उपेक्षित रहे और कुछ गुमनामी का जीवन जीकर चले गए. प्रख्यात नृतक हरीश चन्द्र भगत भी... Read more
हल्द्वानी की सबसे पुरानी संगीत संस्था ‘संगीत कला केंद्र’ की स्थापना हुई 1957 में
कुमाऊँ का प्रवेश द्वार हल्द्वानी व्यावसायिक नगर के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भी अग्रणी रहा है. शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में विद्वानों की महफिलें आज भी यहाँ जुटती हैं. यद्यपि व्यावस... Read more
‘दूबे जस जड़ है जाये’ उत्तराखण्ड की लोक परम्परा में दिया जाने वाला आशीर्वाद
दूब की कोमल घास को भगवान गणेश की पूजा में भी अर्पित किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि दूब की घास के जड़ पर ब्रह्मा, मध्य पर विष्णु और अगले हिस्से पर शिव का वास होता है. Doob Ghass in Uttarak... Read more