बिन ब्याही लड़की की चिता
पुराने समय की बात है. गोपिया एक दिन घर के आंगन में बैठे-बैठे अपनी दो-ढाई वर्ष की लड़की कुसुमा का हाथ पकड़ कर उसे नचाते हुए गाना गा रहा था- म्यरि होंसिया बालि कुसुमा, छुम रे छुमा छुम,हाजुरी क... Read more
बर्फ में बिनसर: फोटो निबंध 2022
कुछ जगहें आप के दिल के इतने करीब होती हैं, इतनी मनपसंद होती हैं कि बार-बार वहां जाने पर भी दिल नहीं भरता. बिनसर और बिनसर का जंगल भी कुछ ऐसी जगहों में से है जहां पिछले कई सालों से जा रहा हूं.... Read more
लपूझन्ना जादू है!
किताब उठाते ही लगता है किसी जादूगर ने काले लंबे हैट में हाथ डालकर एक कबूतर निकाल दिया हो. किताब पढ़कर आप ख़त्म नहीं कर पाते. कबूतर के पंख हाथ में फड़फड़ाते हैं. किताब के सफ़हे दिलो-दिमाग पर... Read more
भारतवर्ष में सर्वप्रथम सन् 1921 ई० में “जयहिन्द” नारे का उद्घोष करने वाले महान देशभक्त श्री रामसिंह धौनी का जन्म 24 फरवरी सन् 1893 ई० में अल्मोड़ा जिले के तल्ला सालम पट्टी में तल... Read more
अमरूद का पेड़
घर के सामने अपने आप ही उगते और फिर बढ़ते हुए एक अमरूद के पेड़ को मैं काफी दिनों से देखता हूँ. केवल देखता ही नहीं, इस देखने में और भी चीजें शुमार हैं. तीन-चार साल में बड़े हो जाने, फूलने और फ... Read more
सौला- रूपसा से मैं पूछती हूँ, इस घर में मैं भी कोई हूँ या नहीं? वे अपनी माँ का पक्ष कितनी जल्दी लेते हैं, जैसे सब कसूर मेरा ही रहता हो. मैं यह नहीं कहती कि वे अपनी माँ को घर से बाहर निकाल दे... Read more
‘बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले’ गीत को उत्तर भारत की शादियों का राष्ट्रीय विदाई गीत कहना गलत नहीं होगा. फिल्म नीलकमल के लिए साहिर लुधयानवी के लिखे इस गीत को मोहम्मद रफ़ी न... Read more
अस्पताल की कमी से जूझता उत्तराखण्ड का एक गांव
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि 21वीं सदी के डिजिटल इंडिया में ऐसा भी एक गांव है, जहां बीमार मरीज़ के पेट के दर्द को दूर करने के लिए लोहे की गर्म छड़ का इस्तेमाल किया जाता हैं. इसके अतिरिक्त कई... Read more
एक स्त्री की भारतीय गणतंत्र से खुली शिकायत
भारत को गणतंत्र बने सात दशक से ज्यादा हो गए. पर स्त्री का जो दिमाग रचनात्मकता में लगकर देश को और आगे पहुंचा सकता था वह सिर्फ खुद को बचाने की जुगत में खर्च हो जा रहा है. (Gayatree Arya Republ... Read more
इस्मत चुगताई की विवादित कहानी ‘लिहाफ’
जब मैं जाड़ों में लिहाफ़ ओढ़ती हूँ, तो पास की दीवारों पर उसकी परछाईं हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है और एक दम से मेरा दिमाग़ बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौड़ने भागने लगता है. न जाने क्... Read more