लोक कथा : माँ की ममता
प्यार से गोपू पुकारा जाने वाला गोपाल बहुत मिन्नतों के बाद पैदा हुई अपने माता-पिता की इकलौती संतान था. माता-पिता अपनी मनोकामना का फल भोग ही रहे थे कि गोपू के बाबू चल बसे. इजा के पास अपने पति... Read more
रंग-भरी एकादशी के साथ असल पहाड़ियों की होली शुरू
पहाड़ों में असल होली की शुरुआत एकादशी से ही होती है. दशमी और एकादशी के जोड़ के दिन गांव-गांव में चीर बांधने की परम्परा है. पहाड़ों में पैय्या की एक टहनी पर रंग-बिरंगे कपड़े बांधे जाते हैं इस... Read more
लोककथा : भाई भूखा था, मैं सोती रही
चैत्र का महीना शुरू हो गया था. सभी ब्याहताओं की तरह वह भी अपने भाई का रस्ता देखने लगी. भाई आएगा और भिटौली लाएगा. उसके आने से गांव-घर के दुःख-सुख पता चलेंगे. वह गरीब परिवार से थी. बाबू बचपन म... Read more
कल है फूलदेई
प्रकृति की गोद में पलने और बढ़ने वाले पहाड़ियों का पर्व फूलदेई है कल. पहाड़ियों का जीवन में प्रकृति का हर रंग मौजूद रहता है दुनिया इसे पहाड़ियों की लोक संस्कृति कहती है. पहाड़ियों का लोक और... Read more
लोक कथा : दिन दीदी रुको-रुको, अभी रुक जाओ
जाने कैसा भाग बदा था उस बहू का जो ऐसी दुष्ट सास मिली. बहू जितनी सीधी-सादी, निश्छल व सरल स्वभाव की थी सास उतनी ही कुटिल, कपटी. किसी रोज दिन-रात काम में खटने वाली बहू का मन हुआ कि मायके हो आए,... Read more
लोककथा : इजा! बस तीन पतली-सी रोटियाँ
बहुत पुरानी बात है. उस पहाड़ी गाँव में एक लड़की रहती थी. माँ के अलावा उसका इस दुनिया में कोई नहीं था. वह बहुत छोटी थी कि पिता चल बसे. चाचा-ताऊ थे नहीं और न भाई-बहन. माँ ने ही उसे पाल-पोसकर ब... Read more
जाखन : नवीन कुमार नैथानी की कहानी
जाखन नाम की वह नदी सौरी के लोगों को सपनों में बहती हुई दिखाई पड़ती थी. उनके सपनों के बाहर जाखन एक पथरीले रपाट के रूप में सौरी के दक्षिणी ढलानों पर ठिठके साल-वृक्षों की अनमनी पुकार को अनसुना... Read more
जलवायु परिवर्तन की रपट
आईपीसीसी अर्थात “इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज” की चिरप्रतीक्षित रपट के जारी होने से विश्व भर में जलवायु परिवर्तन के खतरों में कहीं बाढ़ के खतरे बढ़ने तो कई देशों के भयावह... Read more
न्यौली चिड़िया से जुड़ी कुमाऊनी लोककथा
पहाड़ की बाखलियों के आस-पास इन दिनों न्यौली चिड़िया का बोलना खूब सुनाई देना शुरु हो गया. उदासी, करुणा और विरह जैसे शब्दों का पर्याय है न्यौली की आवाज. न्यौली, अक्सर अकेले चलने वाली एक ऐसी चि... Read more
गांव जाता था तो मुझे मां जैसी ही ताई, चाची, दीदी, बुआएं भी लगती थीं. मैं हैरान होता था कि आख़िर ये कौन सी चीज़ है जो इन लोगों को एक दूसरे में विलीन कर रही है. फिर मुझे यह दिखा- दुनिया का उजा... Read more