पहाड़ में अब भी बड़े बुजुर्ग कहते हैं सबका बैर झेला जा सकता है पटवारी का बैर नहीं. अब भले पटवारी की शक्ति उतनी नहीं है फिर भी वह अपनी पट्टी में राजा से कम नहीं है. आज भी कई ऐसे मामले हैं जहां... Read more
उत्तराखण्ड के निशानेबाज जसपाल राणा को इस साल प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य अवॉर्ड से नवाजा जाएगा
जूनियर भारतीय पिस्टल टीम के मुख्य कोच उत्तराखण्ड के जसपाल राणा को इस साल प्रतिष्ठित द्रोणाचार्य अवॉर्ड से नवाजा जाएगा. (Dronacharya Award for Jaspal Rana) निशानेबाजी की दुनिया में देश कजा मा... Read more
पहाड़ की यादों को कैद करने वाला पिताजी का कैमरा
जिस आदमी ने ताज़िंदगी कलाई पर घड़ी न पहनी हो, अपने खरीदे रेडियो-टीवी में खबर न सुनी हो उस आदमी के पास भी कोई गैजेट रहा हो, क्या ये कहीं से सम्भव लगता है. पर ऐसा था. पिताजी के पास अपना एक कैम... Read more
एक तरफ कोरोना जैसी महामारी का दौर तो दूसरी ओर घरेलू मैना या सिटोला पक्षी में वर्ष 2015 में तस्दीक की गयी बीमारी फिर देखने को मिलना वर्ष 2020 को और अधिक जटिल बना रहा है. (Unknown bird disease... Read more
उत्तराखंड की देवभूमि कई प्रकार की वनस्पतियों व प्राकृतिक संपदाओं से भरी हुई है. जिन संपदाओं में एक विशिष्ट संपदा है- भेकुए का पेड़. यह पेड़ उत्तराखंड में बहुतायत से पाया जाता है. इस पेड़ का... Read more
मैंने मुनस्यारी से 15 किमी दूर धापा गांव में सन् 1991 में जन्म लिया. तब गांव में न बिजली थी, न टीवी और न फोन. संस्कृति का मतलब फेसबुक में पोस्ट डालना या फोन में पहाड़ी गीत देखना नहीं था बल्क... Read more
खुश होना या दुखी होना हमारा चुनाव है
हमें खुश होना है या दुखी होना है, यह चुनाव हमेशा हमारे हाथ में रहता है. सामान्यत: हमें लगता है कि दुख या खुशी हमारे पास चलकर आते हैं. वे घटनाओं और सूचनाओं के जरिए हम पर आकर बरसते हैं. निस्सं... Read more
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भूलती सरकारें : बागेश्वर से 98 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह चौहान की बात
आजादी के बाद से ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान और शौर्य के नाम पर सरकारें हर साल 15 अगस्त को खूब वायदे करते आ रहे हैं लेकिन अब सरकारें उनकी बातें सुनना तो दूर उनकी सुध भी लेने में... Read more
कल है पहाड़ियों का लोकपर्व घ्यूं त्यार
कुमाऊं में भादों मास की संक्रांति घ्यूँ त्यार मनाया जाता है. इसे ‘ओलकिया’ या ‘ओलगी’ संक्रान्त भी कहते हैं. इस दिन घी खाने की परंपरा रही. इस कारण इसे घ्यूँ त्यार या घी... Read more
हमारी धरती में नायकों की कभी कमी नहीं रही. चाहे जितने गिना लीजिए. आजादी से पहले भी, और बाद में भी. इन नायकों का समर्पण भी याद करने लायक रहा है. मगर आजादी के तिहत्तर सालों के बाद उन्हें नाम स... Read more