एक लड़का जिसे उसके नाते-रिश्तेदार समेत उसके आस-पास के पचास कोस तक की सभी जगह में मनहूस माना जाता हो. जिसके आने पर लोग घर में न होने का कोई बहाना ख़ोजते हों. जो अपनी जिंदगी में पहली बार हैरान... Read more
पांच बीघा लम्बे नाम का झंझट
जिन्होंने ‘लोकतांत्रिक’ विश्वविद्यालयों या महाविद्यालयों में रत्ती भर भी पढ़ाई की है, वे छात्र राजनीति में ‘नाम’ के महत्व से जरूर परिचित होंगे. छात्रसंघ चुनाओं में छात्र नेताओं का नाम विशेष... Read more
बुजुर्गों के दिल में बसता है पहाड़
अल्मोड़ा के छोटे से गाँव में रहती थी रजुली ताई. पति सेना में थे तो रजुली ताई भी अपनी जवानी के दिनों में उनके साथ हिमाचल, असम, मुम्बई, राजस्थान जैसी जगहों में काफी रही. अलग-अलग शहरों में रहने... Read more
नवरात्र का समय था. हम कुछ दोस्त माँ के दर्शन के लिए गार्जिया मन्दिर गए थे. मन्दिर में दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी थी. हम सब भी उस कतार में शामिल हो गये. मौसम सुहाना था. बहुत... Read more
उत्तराखंड के कवि पार्थसारथी डबराल का जन्मदिन है आज
हिंदी साहित्य में छायावाद के प्रमुख कवियों में पंत, प्रसाद, निराला व महादेवी वर्मा का नाम सभी जानते हैं लेकिन छायावादोत्तर काल में जिन पर्वतीय कवियों ने अपनी कालजयी रचनाओं से हिंदी कविता को... Read more
पहाड़ की लड़कियों का पहाड़ सा जीवन
आंगन की भीढ़ी में बैठे-बैठे हरूवा सुबह से पांच बीड़ी फूंक चुका था. बेटी की शादी में महज 10 दिन रह गए थे. पहाड़ियों का एक अलग ही लॉजिक होता है, टेंशन के समय में बीड़ी फूकने से काम करने की थोड... Read more
अरे! तुम तो एक हफ्ते में निबटा देने वाले ठैरे ‘वैलन्टाइन डे’ का जश्न, हमारे टैम पर तो सालों भी लग जाने वाले हुए ‘वैलेन्टाइन डे’ के इन्तजार में. किसम-किसम की सेरेमनी और रिचुवल्स होने वाले हु... Read more
बीबीसी की तिलिस्मी आवाज़ वाली रेडियो सेवा का अंत
जरा अतीत की बिसरी गलियों में जाइए और भारत का वह दौर याद करने की कोशिश कीजिए, जब घर-घर में टीवी की स्क्रीन नहीं आए थे. लोग देश-दुनिया की ख़बरें सुनने के लिए रेडियो का सहारा लिया करते थे और बी... Read more
हिट तुमड़ि बाटे-बाट, मैं कि जानूं बुढ़िया काथ : कुमाऊं की एक लोकप्रिय लोककथा
किसी गांव में एक बुढ़िया थी. बूढी और निर्बल बुढ़िया एक अकेले घर में रहती थी. एक साल जाड़ों के दिनों बुढ़िया को लगा कि शायद वह इस साल मर जायेगी. मृत्यु के भय से उसने सोचा कि क्यों न अपनी बेटी के... Read more
कल्पनीय सच का विधान : चंदन पांडेय के उपन्यास ‘वैधानिक गल्प’ के बहाने ‘आज’ से जिरह
सबकुछ सायास है वैधानिक गल्प में. उसके इस तरह से होने पर बहस होनी चाहिए क्योंकि जान बूझकर किसी घटना, व्यक्ति या विचारधारा को उजागर करने के उद्देश्य के लिए बुनी गयी चीज़ में वो मात्रा सबसे निर... Read more