तीन दशकों की राजनैतिक वार्ताओं के बाद कैस्पियन समुद्र से लगे पांच देशों रुस, ईरान, अजरबेजान, कजाख़स्तान, तुर्कमेनिस्तान के मध्य कैस्पियन समुद्र के संबंध में एक समझौता हुआ है. कैस्पियन समुद्र विश्व का सबसे बड़ा भू अवरुद्ध जल क्षेत्र है. भू-अवरुद्ध जल क्षेत्र एक ऐसे जल क्षेत्र को कहा जाता है जिसकी कोई भी सीमा किसी महासमुद्र से ना लगती हो. कैस्पियन समुद्र यू.एस.एस.आर के विघटन के बाद से ही इसके तटवर्ती देशों के बीच विवादित रहा है.
इन देशों के मध्य विवाद का मुख्य कारण कैस्पियन समुद्र में पैट्रोलियम और गैस के भंडार और मत्स्य उद्योग की अपार संभावना हैं. 1991 में यू.एस.एस.आर के विघटन से पूर्व कैस्पियन समुद्र के भंडार को ईरान और रुस आपस में एक झील के रुप में बांटते थे किंतु यू.एस.एस.आर के विघटन के पश्चात यह पांचों देशों के मध्य विवादित रहने लगा. विघटन के पश्चात यदि कैस्पियन समुद्र को पहले की तरह झील माना जाता तो अंतराष्ट्रीय कानून के मुताबिक पांचों देशों की कैस्पियन समुद्र पर बराबर हिस्सेदारी होती. समुद्र मानने पर प्रत्येक देश की हिस्सेदारी उसकी तटवर्ती सीमा के आधार पर तय होती. च्यूंकि ईरान की कैस्पियन समुद्र से लगी तटवर्ती सीमा कम है
अतः समुद्र मानने से उसकी हिस्सेदारी बहुत कम हो जाती इसलिए ईरान इसे झील मानता है जबकि अन्य देश इसे समुद्र मानते हैं.
फिलहाल कजाख़स्तान के शहर अक्ताऊ में ‘द कंवेंशन ऑन न लीगल स्टेटस ऑफ कैस्पियन सी’ नाम से एक समझौता किया गया है. इस समझौते के तहत इसे ना तो झील माना गया है ना ही समुद्र. इसे एक विशेष प्रकार की जल निकाय माना गया है. नये समझौते के तहत सर्वाधिक फायदा तुर्कमेनिस्तान और कजाख़स्तान को होगा. इस समझौते के विस्तृत तथ्य अभी तय नहीं किये गये हैं. इस समझौते का सबसे महत्तवपूर्ण प्रभाव यह रहेगा कि अपार गैस भंडारों के कारण इस क्षेत्र में बड़ रही सैन्य उपस्थिति के कारण उत्पन्न तनाव कम होगा. बिना किसी गतिरोध के समझौता होने पर यूएन महासचिव ने भी पांचों देशों को सराहा है.
ऐतिहासिक रुप से कैस्पियन समुद्र पर ईरान का ही कब्जा रहा है. 1820 में उसने कैस्पियन समुद्र का उत्तरी हिस्सा रुस के हाथों गवां दिया था. ईरान के लिये कैस्पियन समुद्र हमेशा से एक महत्तपूर्ण मूद्दा रहा है. अपनी हिस्सेदारी को लेकर ईरान के रुख में आयी इस नरमी का कारण अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाये गये आर्थिक प्रतिबंधों को माना जा रहा है. अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के बाद ईरान का रुस, चीन और अन्य एशियाई देशों की ओर झुकाव एक स्वाभाविक झुकाव माना जा रहा है. इस समझौते को इस तरह से भी देखा जा रहा है कि ईरान की सरकार ईरान की जनता को यह दिखा रही है कि वह अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों से बचने के लिये हर संभव प्रयास कर है हालांकि ईरान में सरकार के इस फैसले की आलोचना भी जमकर हो रही है.
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