उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल की मंडी है टनकपुर, चम्पावत और पिथौरागढ़ का प्रवेशद्वार. शारदा नदी के तट पर बसा टनकपुर कभी एक छोटा सा गाँव हुआ करता था जो अपनी भूराजनीतिक स्थिति की वजह से एक बड़ी मंडी में बदल गया. टनकपुर उत्तराखण्ड में भाभर कहे जाने वाले क्षेत्र में है. टनकपुर के अलावा देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, रामनगर और हल्द्वानी अदि कस्बे आते हैं.
पुराने समय में इसे बरमदेव मंडी के नाम से जाना जाता था. यह मंडी शारदा के आर-पार भारत और नेपाल दोनों देशों में ही थी. बताते हैं कि 1880 में आये भूस्खलन से यह मंडी जमींदोज हो गयी. इसके बाद भी यहाँ के एक क्षेत्र को आज भी बरमदेव कहा जाता है. बरमदेव मंडी का यह नाम कत्यूरी शासक ब्रह्मदेव के नाम पर पड़ा.
चन्द शासनकाल में बरमदेव ऊन की बड़ी मंडी हुआ करता था. कुमाऊँ के अलावा तिब्बत और नेपाल का ऊन भी यहाँ बिकने के लिए आया करता था. उस समय यह सौका और गूजरों का शीतकालीन चारागाह भी हुआ करता था. जाड़ों में तिब्बती लामा यहाँ जड़ी-बूटियां लेकर आया करते थे.
बरमदेव के तबाह हो जाने के बाद नगर का पुनर्निर्माण किया गया और यह कहलाया. इस पुनर्निर्माण योजना में शहर की नदी से दूरी और ऊंचाई का भी विशेष ध्यान रखा गया. नाम लोगों की जुबान पर नहीं चढ़ा तो पास ही के एक गाँव टनकपुर का रंग इस नाम पर चढ़ गया. देखते ही देखते यह लकड़ी की बड़ी मंडी बन गया.
बिटिश व स्वतान्त्रोयत्तर भारत में यह लकड़ी की बड़ी मंडी के रूप में प्रसिद्ध हुआ. 1909-10 में इसे रेल मार्ग से जोड़ दिया गया. इसे रेल मार्ग से जोड़ना का उद्देश्य भी इस समूचे क्षेत्र की वन सम्पदा का दोहन ही था. ब्रिटिश काल से आज तक यह दोहन बदस्तूर जारी है बिटिश राज में इसे ज्यादा आबादी वाला क़स्बा बनाने का प्रयास किया गया. लेकिन मलेरिया, हैजा जैसी बीमारियों के भय से यह उस समय बारहों महीने के लिए आबाद नहीं हो पाया. पहाड़ के लोग शीतकालीन प्रवास पर यहाँ आते और बसंत में पहाड़ों की ओर लौट जाते. आजादी के बाद जब इन महामारियों पर विजय प्राप्त कर ली गयी तब इसे ठीक ढंग से बसाया जा सका.
व्यापारिक के अलावा टनकपुर का धार्मिक महत्त्व भी है. यहाँ पूर्णागिरी माता का विश्वप्रसिद्ध मंदिर है. यह मंदिर चन्दकाल में ही लोकप्रिय हो गया था. राजा जगतचन्द, राजा कल्याणचन्द और राजा दीपचन्द द्वारा मंदिर में ताम्रपत्र अर्पित किया गया.
टनकपुर एक सामरिक महत्त्व का भी शहर है. चीन सीमा की तरफ भारतीय सेना की गतिविधियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण शहर है. टनकपुर-तवाघाट मार्ग सेना के ही नियंत्रण में है.
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(‘पहाड़’ पिथौरागढ़-चम्पावत अंक के आधार पर)
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