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3 Comments

  1. Anonymous

    “बेडू पाको “गीत पर माध्यमिक स्कूल‌ में समूह नृत्य किया था । 1973 में मालव कन्या माध्यमिक शाला , महू नाका – इंदौर ।
    ” बेडू पाको बारहमासा/ हो नरैणा काफल पाको चैता मेरी छैला‌/अल्मोड़ा की नंदरानी ” इतना‌ भर याद रहा। आज पढ़ा तो मन प्रसन्न हो गया।

  2. Anonymous

    बाल्यावस्था से ही हम इस सुंदर धुन के गीत को न सिर्फ सुनते आ रहे हैं बल्कि काश और अनायास अवस्था में गाते हुए आ रहे हैं, दिल्ली के राजपथ पर स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस के अवसर पर कुमाऊं रेजीमेंट की ये बेबाक धुन हमको गौरवान्वित करती है जब हम यह गीत सुनते हैं। इसके अलावा बेडू पाको बारो मासा गीत यह सिर्फ पहाड़ में ही नहीं मैदान में भी दूर-दूर तक लोगों के दिलों में बसा है, आपके द्वारा इस गीत की मूल उत्पत्ति से लेकर अंतिम समय तक किए गए प्रयोगों की दास्तान सुनकर बहुत अच्छा लगा। इस तरह की खोजी पत्रकारिता के लिए काफल ट्री के प्रधान प्रबंधक संपादक सहित पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं

  3. Anonymous

    उदय सिंह “उद्दा” की चाय व पहाड़ी मिठाई की दुकान जाखन देवी मंदिर के पास हुआ करती थी। उनके मलाई के लड्डू प्रसिद्ध थे।

    काफल को संस्कृत में कायफल कहते हैं और अंग्रेज़ी में bayberry। Botanical name Myrica Esculenta। वैसे तो यह वैशाख में पकता है, लेकिन गाने में चैता फिट होता है।

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