काली कमली वाले बाबा को उत्तराखण्ड के तीर्थयात्रा के रास्तों पर धर्मशालाओं के निर्माण के लिए विशेष तौर पर याद किया जाता है. Baba Kali Kamli Wale
इनके बारे में कहा जाता है कि इनका जन्म 1831 में पकिस्तान के गुजरांवाला क्षेत्र के कोंकणा नामक गाँव में हुआ था. इनका परिवार भिल्लांगण शैव सम्प्रदाय से ताल्लुक रखता था. ये लोग भगवान शिव की तरह काला कम्बल धारण किया करते थे.
पहले इन्हें श्री 10008 स्वामी विशुद्धानंद जी महाराज काली कमली वाले बाबा के नाम से जाना जाता था. इनके विशुद्धानंद बनने के पेचे यह कहानी बताई जाती है कि जब ये पहली दफा हरिद्वार आये तो इनके मन में सन्यासी बनने की इच्छा बलवती हो गयी. इन्होंने अपने घरवालों के सामने अपनी यह इच्छा जाहिर की तो उन्होंने इसकी अनुमति नहीं दी. लेकिन इसके कुछ समय बाद ये बनारस पहुँच गए और वहां पर स्वामी शंकरानंद से संन्यास दीक्षा लेकर स्वामी विशुद्धानंद बन गए.
एक दिन अपने गुरु जी से आज्ञा लेकर विशुद्धानंद उत्तराखण्ड की चार धाम यात्रा के लिए निकल पड़े. अपनी इस यात्रा में इन्होंने देखा कि तीर्थ यात्रियों और साधु-संतों आदि के भोजन, पेयजल, आवास और चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं है. इस वजह से तीर्थ यात्रा और भी ज्यादा कठिन हो जाती है. विशुद्धानंद ने काली कमली ओढ़कर पूरे देश की यात्रा शुरू की. उन्होंने धार्मिक लोगों से यात्रा मार्ग के लिए संसाधन जुटाने का आह्वान किया.
इनकी प्रेरणा से चारधाम यात्रियों के लिए सुविधाएँ और साधन जुटने शुरू हो गए, काली कमली के नाम पर हिमालयी नदियों पर पुलों का निर्माण किया जाने लगा. श्रद्धालुओं के लिए साधन जुटना शुरू हो गए.
स्वामी विशुद्धानंद ने 33 सालों तक मानव सेवा का कार्य किया. 1937 में उन्होंने ऋषिकेश में धार्मिक व परोपकारिणी संस्था ‘काली कमली वाला पंचायत क्षेत्र’ की स्थापना की. इस क्षेत्र द्वारा ऋषिकेश,उत्तरकाशी, बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, प्रयागराज आदि स्थानों पर प्रतिदिन हजारों जरुरतमंदों को भोजन कराया जाता है. संस्था द्वारा ऋषिकेश व रामनगर में पूर्ण विद्यालयों का सञ्चालन भी किया जाता है. यहाँ छात्रों के भोजन व आवास कि निशुल्क व्यवस्था है. इसके अलावा भी आश्रम, सत्संग भवन, पुस्तकालय, गौशाला आदि का सञ्चालन किया जाता है.
1953 में विशुद्धानंद कैलाश यात्रा के लिए निकले जिसके बाद से इन्हें नहीं देखा गया है.
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष: प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर)
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