अन्नप्राशन संस्कार बच्चे के दांत निकलने से पहले किया जाता है. कुमाऊं में इसे अनपासनि, पासणि भी कहा जाता है. शुभ मुहूर्त और लग्न के साथ यह संस्कार पुत्र को छठे या आठवें महीने और पुत्री को पांचवें या सातवें महिने अन्न चखाकर किया जाता है.
(Annaprashan in Kumaon)
अनपासनि से पहले बच्चे के दांत निकलने को मामा के लिये कष्टकर माना जाता है इसी वजह से अधिकांशतः पुत्री की अनपासनि पांचवे और पुत्र की छठे महीने में हो जाती है. जब किसी बच्चे के आठवे महीने में दांत निकलते हैं तो बच्चे के मामा द्वारा उसे कपड़े दिये जाने का रिवाज भी कुछ जगह है.
इस दिन पुरोहित को बुलाकर पूजा की जाती है. बच्चे को पीले रंग के कपड़े पहनाये जाते हैं और क्षमता अनुसार पकवान बनाये जाते हैं. यह पीला कपड़ा बच्चे के नामकरण संस्कार के दिन ही बच्चे के नाम से रख दिया जाता है. अन्नप्राशन के दिन इस कपड़े की झगुली सीलाते हैं. यही झगुली बच्चों को अन्नप्राशन संस्कार के दिन पहनाते हैं. पूजा के बाद परिवार के पांच सदस्य चांदी के सिक्के से शिशु को दाल-भात, खीर आदि खिलाते हैं.
एक बड़ी सी थाल में बच्चे के सामने अन्न, तलवार, छुरी, पुस्तक, कलम, आदि सामान रखा जाता है. इसके बाद बच्चा जिस वस्तु की ओर सबसे पहले लपकता है माना जाता है भविष्य में बच्चे के व्यक्तित्व में वहीं विशेषतायें आती हैं.
(Annaprashan in Kumaon)
अरे बाला रे होरिलुबा की झगुली पसीनवां से भीज रही है
अरे रानी ऐसा बोल मत बोलो
झगुली मोलाऊँ सब साठ होरिलवा के कारन ए
कहां से अतिलस मंगाती, कहां की पत्तियां
अरे माई कवन शहर को दरजिया जो लागत सुहान ए
दिल्ली से अतिलस मांगती, बनारस की पतियां
अरे माई शहर बरेली को दरजिया जो झगुली सिलावन ए
अनपासनि के समय गाये जाने वाले शकुनाखर में कहा जाता है कि जो भात खायेगा वह भाग्यवान होगा, जो दाल खायेगा दयावान होगा, जो सब्जी खायेगा वह शीलवान होगा, कलम पकड़ने वाला बुद्धिमान होगा, किताब को हाथ लगाने वाला पंडित होगा, तलवार छुरी पकडे वो योद्धा होगा इत्यादि.
इसके बाद सभी मित्रों और रिश्तेदारों को भोज कराया जाता है. पहले इसे परिवार के सदस्यों करीबी रिश्तेदारों और कुछ ख़ास मित्रों के बीच किया जाता था अब लोग इसे धूमधाम के साथ संपन्न करते हैं.
(Annaprashan in Kumaon)
– काफल ट्री डेस्क
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आभारी
प्रभुलाल मैन्दोला