मध्यकालीन गढ़वाल की राजनीति जिसे गढ़ नरेशों के युग से भी जाना जाता है, में कुछ असाधारण व्यक्तियों ने अपनी विलक्षण प्रतिमा से इतिहास में स्थान बनाया है. इनमें पूरिया नैथाणी का नाम विशेष रूप से लिया जाता है. एक चतुर एवं कुशल कूटनीतिज्ञ, सेनापति और यहां तक कि राजदूत के रूप में भी उसने औरंगजेब के सम्मुख अपनी प्रतिमा का परिचय देकर बुद्धिजीवियों का ध्यान आकृष्ट किया था.
विलक्षण प्रतिमा के धनी पूर्णमल उर्फ़ पूरिया नैथानी का जन्म शुक्ल पक्ष पूर्णमासी भाद्रपद अगस्त 1648 ई. के दिन नैथाणी गांव ( पौड़ी जनपद ) गौंडु नैथाणी के घर पर हुआ था. तत्कालीन गढ़ नरेश पृथ्वी पति शाह के निकटस्थ मंत्री डोभाल जो स्वयं कुशल ज्योतिष थे, ने पूरिया नैथाणी की जन्मपत्री देखकर उसके असाधारण उज्ज्वल भविष्य के ग्रहों को पहचाना. मंत्री डोभाल पुत्रहीन थे, अतः उन्होंने गौंडु नैथानी से आग्रह कर पूरिया को अपनी कन्या के लिए मांग लिया. दूसरी ओर पूरिया के पिता को मासिक पेन्सन देकर उनका भरण – पोषण डोभाल करते रहे.
गढ़ नरेशों के राजकुमारों के स्कूल में पूरिया को भर्ती कर राजगुरु के सानिध्य में इनकी मेधा एवं स्मरण शक्ति इतनी तीव्र हो गई थी कि इन्होंने शीघ्र ही संस्कृत, भूगोल एवं इतिहास की सभी जानकारियां हासिल कर ली थी. इसके उपरान्त इन्हें धर्मशास्त्रों का अध्ययन कराया गया. इस तरह राज आश्रय में ही इनका उपनयन संस्कार किया गया. साथ ही अट्ठारह पुराणों, छै शास्त्रों तथा मन्त्र शक्ति में भी इन्होंने दक्षता प्राप्त कर ली थी.
पूरिया नैथानी की रूचि और बुद्धि कौशल को देखते हुए उसे अस्त्र – शस्त्र घुड़सवारी और तैराकी सहित सभी कलायें भी सिखाई गई. राजकुमारों के साथ ही उसे मनुस्मृति व पाराशर स्मृति आदि राजनीतिक ग्रन्थों का भी अध्ययन कराया गया. इस तरह 17 वर्ष की आयु तक पुरिया नैथानी शिक्षा – दीक्षा में व्यवहार राजनीति में पूरी तरह प्रवीण हो चुके थे. इसके उपरांत सन 1666 में गोंडु नैथानी के परामर्श से डोभाल ने अपनी कन्या का विवाह पूरिया से किया. इस विवाह के पश्चात् मंत्री डोभाल के आग्रह पर महाराजा पृथ्वीपतिशाह ने पूरिया को अपनी अश्वशाला ले प्रधान पद पर नियुक्त किया. इस प्रकार यहीं से पूरिया नैथाणी का राजनीतिक जीवन प्रारंभ होता है.
पूरिया ने इस अवधि में घोड़ों को नये – नये करतब सिखा कर विकट पररीस्थितियों के लिए भी तैयार कर लिया था. महाराज के प्रिय घोड़े श्यामकरण को तो अश्वों का अग्रणी लीडर बना दिया गया था. 1667 ई. में विजयादशमी के दिन श्रीनगर में आयोजित घुड़सवारी प्रदर्शन के अवसर पर विशाल जन समुदाय के साथ महाराजा और दिल्ली दरबार से विशेष आमंत्रित सदस्य एलची भी उपस्थित था. एलची ने जिज्ञासा वश महाराजा से पूछा कि आपका कोई घोड़ा छोटी हवेली की उंचाई को लांघ सकता है? महाराज कुछ बोलते पूरिया ने बीच में कह दिया कि महाराज अश्व सवारी के फौजदार के लिए तो यह सामान्य सी बात है. फिर प्रतिष्ठा के प्रश्न पर पूरिया ने श्याम कल्याण के घोड़े पर सवार होकर मैदान में घोड़े को दौड़ाते हुये ऊंची छलांग लगा, महल की उंचाई को लांघ कर उपस्थित लोगों को रोमांचित और चकित कर दिया.
एलची ने स्वयं पूरिया की प्रशंसा करते हुए कहा कि महाराज पूरिया गढ़वाल की ही नहीं, हमारे चक्रवर्ती मुग़ल सम्राट के लिए भी अभिमान की वस्तु है. बीस वर्ष की आयु में पूरिया की वीरता की कीर्ति सभी जगह फैल गयी.
पूरिया एक कुशल सेनानायक के साथ एक राजनयिक भी था. वह अपनी वाकपटुता और दूरदर्शिता के लिये भी विख्यात था. 1668 ई. में औरंगजेब के दिल्ली दरबार में रोशनआरा के विवाहोत्सव के समय पर गढ़ नरेश के प्रतिनिधि के रूप में पूरिया को सर्व सम्मति से दिल्ली भेजने का अनिश्चय हुआ च्यूंकि कुमाऊँनी राजाओं ने गढ़वाल के पूर्वी भाग पर आक्रमण कर दिया था. इस स्थिति में पृथ्वीपतिशाह ने स्वयं सीमा सुरक्षा का दायित्व संभालने का निश्चय किया. दूसरी ररफ फौजी लश्कर के साथ – पूरिया को दिल्ली दरबार में गढ़वाल राज्य के प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया. अपनी विद्वता और वाक पटुता से इन्होंने मुग़ल सम्राट औरंगजेब और उसके दरबारियों के सम्मुख अपनी प्रतिभा का सिक्का जमाया.
1725 वि. टिहरी राज्य संग्रह में सुरक्षित लिखित विवरण से पता चलता है कि पूरिया ने कोटद्वार भाबर में सैयद मुसलमान द्वारा भूमि पर जबरन कब्ज़ा करने की शिकायत औरंगजेब से कर, अपनी तार्किक शक्ति से इस भूमि को औरंगजेब से कह कर छुड़ा लिया था. इस तरह भू- भाग पुनः गढ़वाल राज्य का आधिपत्य हो गया. वापस गढ़वाल लौटने पर महाराजा ने पूरिया की दिल्ली यात्रा की सफलता पर प्रसन्न हो कर सैकड़ों बीघा जमीन उपहार स्वरूप पूरिया को प्रदान कर दी थी, इस सरकारी आदेश की प्रति इनके वंशज के पास आज भी सुरक्षित है.
पुरवासी के चौदहवें अंक से डॉ योगेश घस्माना का लेख मध्य कालीन गढ़वाल की राजीनीति का चाणक्य – पूरिया नैथानी.
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