1935 के भारतीय शासन अधिनियम के अंतर्गत सन 1936 ई. में आम चुनाव की तैयारी होने लगी. 1 अगस्त 1936 ई. को नेताओं की अपीलों के साथ चुनाव आन्दोलन का श्रीगणेश हुआ. उसी दिन लोकमान्य तिलक की पुण्य तिथि भी नैनीताल में मनायी गयी. फरवरी 1937 में 11 प्रान्तों समेत कुमाऊं में निर्वाचन सम्पन्न हुआ.
संयुक्त प्रांत की 228 सीटों में कुमाऊं प्रदेश को बहुत कम सदस्य मिले जिसे न्यायोचित प्रतिनिधित्व नहीं माना जा सकता. कुमाऊँ प्रदेश में गढ़वाल से 2, अल्मोड़ा से 2, जिसमें एक सीट शिल्पकारों की थी और नैनीताल को केवल 1 सीट प्राप्त हुई. अल्मोड़ा जिले को कम से कम 2 सीटें मिलनी चाहिये थी क्योंकि यहाँ मतदाताओं की संख्या अधिक थी.
पृथक निर्वाचक पद्धति के आधार पर यहाँ मुसलमानों को भी अलग सीट नहीं मिली. नैनीताल और अल्मोड़ा के मुसलमान बहेड़ी में शामिल किये गए थे. यही स्थिति गढ़वाल के मुसलमानों के साथ भी थी. उन्हें बिजनौर से मिला दिया गया.
शिल्पकारों को एक स्थान अल्मोड़ा में मिला जो बारी-बारी से गढ़वाल और नैनीताल को भी मिलना चाहिये था. प्रांतीय कौंसिल ( उच्च सदन ) में कुमाऊं को केवल 1 स्थान मिला जिसमें मोहन लाल शाह एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में भारी मतों से विजयी हुए थे.
इस चुनाव में अल्मोड़ा से हरगोविंद पन्त और शिल्पकारों के प्रतिनिधि के रूप में रामप्रसाद टम्टा निर्वाचित हुए. नैनीताल से कुंवर आनंद सिंह निर्विरोध चुने गये. गढ़वाल से ठा. जगमोहन सिंह तथा अनुसूया प्रसाद बहुगुणा निर्वाचित हुए. पंडित गोविन्द वल्लभ पन्त बरेली-पीलीभीत-शाहजहाँपुर और बदायूं को मिलाकर बने चुनाव क्षेत्र से निर्विरोध चुने गये.
1935 से पहले की पुरानी कौंसिल में कुमाऊं प्रदेश के अल्मोड़ा जनपद से क्रमशः राजा आनंद सिंह, पं. हरगोविंद पन्त, पं. बद्रीदत्त पांडे, ठा. जंगबहादुर बिष्ट सदस्य रहे. नैनीतल से क्रमशः नारायण दत्त छिम्बयाल, गोविन्द वल्लभ पन्त, हर्षसिंह नयाल ( मुख्तार साहब ) तथा प्रेमवल्लभ बेलवाल सदस्य रहे. जिला गढ़वाल से रायबहादुर पं. तारादत्त गैरोला, बैरीस्टर मुकुन्दी लाल और सरदार नारायण सिंह बहादुर सदस्य रह चुके थे.
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