जागृत महिला समाज के इन प्रयत्नों के फलस्वरूप ही कुछ समय के लिए पौड़ी व नन्दप्रयाग में महिलाओं के आक्रोश को देखते हुए प्रशासन ने शराब की दुकानें बंद कर दी थी. दूसरी ओर स्वयं जागृत महिला समाज ने निराश्रित महिलाओं के लिए तकनीकी शिक्षण संस्था खोलकर उन्हें ऊन व गलीचा बनाने का प्रशिक्षण दिया.
गढ़वाल में जागृत महिला समाज के कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने में मारग्रेट चौफीन, श्रीमती विद्या धर्मा ( प्रधानाचार्य विद्यापीठ प्रयाग ) तथा कु. ई. वी. स्तेलार्ट की उल्लेखनीय भूमिका रही. इस प्रबुध्द महिलाओं ने समय – समय पर जागृत महिला समाज की बैठकों में भाग लेकर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की स्थिति एवं उनकी भूमिका में गढ़वाली महिलाओं को अवगत कराया. इसके अतिरिक्त कन्याओं को लड़कों के समान प्राथमिकता के आधार पर शिक्षित कराने के लिए प्रेरित किया. प्रबुद्ध महिलाओं तथा पुरुषों से मिल रहे सहयोग के फलस्वरूप ही सन 1949 में जागृत महिला समाज द्वारा उद्योग मंदिर नाम से एक औद्योगिक संस्था को जन्म दिया गया. इसके माध्यम से महिलाओं की विधिवत औद्योगिक प्रशिक्षण की व्यवस्था सुलभ हो गई थी.
गढ़वाल में महिलाओं के इस आरंभिक जन – जागरण काल में विभिन्न क्षेत्रों में जिन महिलाओं ने अग्रणी रूप से कार्य किया उनमें प्रमुख रूप से कमला उनियाल, कुंती देवी नौटियाल, लीला देवी साह, मालती देवी वैष्णव, रेवती देवी, चंदोला, रेवती देवी खंडूरी, रेवती देवी उनियाल, साम्भी देवी, चन्द्रकला, सतेश्वरी देवी तथा वैष्णव बहिनों ललिता वैष्णव/ चंदोला ( गढ़वाल की पहली स्नातकोत्तर महिला ) शांति चंदोला, कुसुम तथा विमला चंदोला ( सभी विशम्भर दत्त चंदोला की बेटियाँ ) का नाम उल्लेखनीय है.
राष्ट्रीय स्तर पर 1940 ई. के पंचायत चुनावों में पहली बार नन्द प्रयाग से महिला प्रत्याशी पंचायत प्रमुख बनी. नैनीताल में कुंथी देवी वर्मा के नेतृत्व में महिलाओं ने जंगलात विभाग को आग लगाकर नष्ट कर दिया था. गढ़वाल सम्भाग में इस अवधि में महिलाओं ने पुरुषों को भूमिगत कार्य करने में सहायता देकर पुलिस प्रशासन से स्वयं टक्कर ली थी. इस महिलाओं में सत्यभामा नेगी, श्यामा वत्स बच्चीदेवी डोभाल का नाम उल्लेखनीय है. गाँव सरसू पट्टी असवालस्यू, पौढ़ी गढ़वाल में जन्मी सत्यभामा ने गांव –गांव घूमकर ब्रिटिश शासन व उत्पीड़न के विरोध में महिलाओं को संगठित करने का प्रयत्न किया.
चमोली तहसील के गांव बगथल में अगस्त 1890 ई. में जन्मी श्यामा वत्स ने अपने इकलौते पुत्र ब्रज भूषण वत्स की पीठ पर बैठकर गांव – गांव का भ्रमण किया. इस अवधि में श्यामा वत्स ने अगस्त मुनि, चमोली, गुप्तकाशी, जोशीमठ आदि स्थानों में भ्रमण और सम्पर्क अभियान के तहत जनता से सरकार विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेने की अपील की. अपने परम्परागत स्वभाव के लिए चर्चित श्यामादेवी जब जनता को आन्दोलन में कूदने के लिए कहतीं और यदि कोई पुरुष ऐसा करने में असमर्थता व्यक्त करना तो श्यामा देवी ललकार कर उसे चूड़ियां पहनने को कहती. अन्तः श्यामा देवी की बढ़ती गतिविधियों से चिंतित होकर प्रशासन ने उन्हें घर पर ही नजरबन्द कर दिया.
पौढ़ी क्षेत्र के कांग्रेसी नेता सकलानन्द डोभाल की गिरफ्तारी के उपरान्त उनकी पत्नी बच्ची देवी ने सन 1940 ई. से 1947 ई. तक महिलाओं को संगठित कर उन्हें आंग्ल सत्ता के विरुद्ध अद्वेलित किया. पर्वतीय महिलाओं ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी इस क्षेत्र में शराब बंदी आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई.
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पुरवासी के दसवें अंक में प्रकाशित योगेश धस्माना का लेख उत्तराखण्ड के जन-जागरण में महिलायें.
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