समाज

पहाड़ी क्षेत्रों की महिलाओं का प्रसव भगवान भरोसे होता है

मां के गर्भ में शिशु उसका ही अंश होता है और हर मां को अपना शिशु प्यारा होता है. यही कारण है कि उसे जन्म देते समय वह असहनीय दर्द भी सहर्ष सहन करती है. दरअसल गर्भावस्था महिलाओं के लिये महत्वपूर्ण क्षण होता है, जिसे प्रत्येक नारी महसूस करना चाहती है. यह प्रकृति द्वारा महिलाओं को दिया गया अनुपम वरदान है. लेकिन देवभूमि कहे जाने वाले राज्य उत्तराखंड में यही वरदान महिलाओं के लिये अभिशाप बन गया है. पर्वतीय क्षेत्रों की विषम भौगोलिक परिस्थितिया और गांवों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव प्रसव के दौरान महिलाओं और नवजात के लिये जानलेवा साबित हो रहा है. बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में गर्भवती महिलाएं अधिक संकट में होती हैं, जिसे दूर करना सरकार की ज़िम्मेदारी है. पहाड़ों पर स्वास्थ्य सुविधाओं का नितांत अभाव है और जहां अस्पताल या स्वास्थ्य केन्द्र की सुविधा है, वहां चिकित्सकों और बुनियादी सुविधाओं की बेहद कमी है. पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण कई बार अत्यधिक वर्षा या ठंड के समय वहां पहुंचना भी मुश्किल हो जाता है.
(Women Health Issues in Uttarakhand)

स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझ रहे पहाड़ में कई बार महिलाएं सड़क और जंगलों में बच्चों को जन्म देने के लिये मजबूर हो जाती हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में खोले गये अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों का नितांत अभाव है. कई क्षेत्रों में सड़क और दूरसंचार व्यवस्था भी पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं है. ऐसी स्थितियों में महिलाओं को प्रसव के दौरान गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. पिछले वर्ष फरवरी में चमौली जिला स्थित पैंखोली गांव की 25 वर्षीय सुनीता ने रात में आपात स्थिति में घर पर ही एक बच्ची को जन्म दिया. प्रसव के कुछ देर बाद ही सुनीता की तबियत बिगड़ने लगी. संचार सुविधा के अभाव में चिकित्सकीय परामर्श न हो पाने की स्थिति में गांव वाले रात में ही सुनीता को कुर्सी पर और नवजात को गोद में लेकर अस्पताल के लिए निकल पड़े. मुख्य सड़क अभी भी गांव से 3 किमी दूर थी और अस्पताल 25 किमी की दूरी पर था. लेकिन सुनीता और उसकी नवजात बच्ची ने सड़क पर पंहुचने से पहले ही दम तोड़ दिया.

राज्य सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने का लाख दावा कर ले लेकिन वास्तविकता यही है कि पहाड़ी जनपदों में आज भी स्वास्थ्य सेवायें पूरी तरह से अनुपस्थित हैं. वहां ना तो सड़कें हैं और न ही संचार की उचित व्यवस्था, ऐसे में शासन-प्रशासन ने और पहाड़वासियों ने भी स्वयं को भगवान भरोसे छोड़ दिया है. फिलहाल इससे बेहतर विकल्प भी गांव वालों के पास नहीं है. इन विकट परिस्थितियों का सबसे अधिक सामना महिला और बच्चों को करना पड़ता है. अगस्त 2011 में देवप्रयाग के खड़ोली गांव की एक महिला को 5 किलोमीटर की पैदल दूरी पर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हिंडोलाखाल लाया जा रहा था. प्रसव पीड़ा सहते हुये महिला की हालत ज्यादा बिगड़ गई और आधे रास्ते में ही उसकी मौत हो गई है. सुदूरवर्ती सीमांत पिथौरागढ़ जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल सबसे अधिक बुरा है. पूरे जिले में प्रसव के लिये एकमात्र जिला अस्पताल पर ही निर्भरता है. स्वास्थ्य सुविधाओं का दूर होना और समय पर उचित इलाज नहीं मिलने की कीमत महिलाओं को प्रसव के दौरान अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है.
(Women Health Issues in Uttarakhand)


टिहरी गढ़वाल के कीर्तिनगर विकासखण्ड स्थित राड़ागाड गांव के अनिल सिहं की 28 वर्षीय पत्नी ऊषा का प्रसव के बाद तबियत बिगड़ने की वजह से इलाज के लिये श्रीनगर ले जा रहे थे, परन्तु ऊषा ने पैदल मार्ग से आते हुये वीरखाल में ही दम तोड़ दिया. लोगों ने सड़क और स्वास्थ्य सुविधा के अभाव के प्रति अपना रोष प्रकट किया. यह रोष घटना के कुछ दिन तक होता है और फिर सब भूल जाते हैं. सरकारें इस बात को अच्छे जानती हैं इसीलिये राज्य बनने के बीस साल बाद भी लापरवाह बनीं हुई हैं. ऐसा ही एक मामला अक्टूबर 2017 में सामने आया, जब उत्तरकाशी जिले के बंगाण क्षेत्र के इशाली थुनारा गांव के दिनेश की पत्नी बिनिता को प्रसव पीड़ा होने पर निकटस्थ देहरादून जिले के चकरौता प्रखण्ड स्थित त्यूणी के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में लाया गया. जहा पर चिकित्सक न होने पर कर्मचारियों के द्वारा अंदर ही नहीं आने दिया गया. दूसरे अस्पताल ले जाने के लिये एम्बुलेंस भी उपलब्ध नहीं हो सकीय. परिवार के लोग बिनीता को सबसे नजदीक पड़ने वाले हिमाचल के रोहड़ू ले जाने के लिये वाहन हेतु स्वास्थ्य केन्द्र से पैदल ही त्यूणी बाजार की ओर ले जाने लगे. स्वास्थ्य केन्द्र से लगभग 300 मीटर दूर झूला पुल पर पंहुचते ही बिनीता की प्रसव पीड़ा तेज हो गई. झूलापुल पर ही स्थानीय महिलाओं के द्वारा चादर की ओट करके प्रसव करवाया गया. राहत की बात यह रही कि जच्चा और बच्चा स्वस्थ रहे. सवाल फिर भी मुंह बाये खड़ा है कि आखिर पहाड़ के गांवों में ऐसी नौबत ही क्यों आ रही है?


वर्ष 2019 की नीति आयोग की हेल्दी स्टेट्स प्रोग्रेसिव इंडिया रिपोर्ट में 21 राज्यों की सूची में उत्तराखंड 17वें पायदान पर है. आईएमआर और सीएमआर में भी राज्य का बुरा हाल है. वर्ष 2015-16 में राज्य में शिशु मृत्युदर 28 से बढ़कर 32 (प्रति हजार बच्चों पर) हो गई थी. स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारियों का बहुत अभाव है. लाख कोशिशों के बावजूद सरकार पहाड़ों पर डाक्टर भेजने में असफल रही है. पूरे देश में उत्तराखंड उन तीन राज्यों में है जहां मातृ मृत्यु दर सर्वाधिक है. इसकी असली वजह पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचों के घोर अभाव का होना है. इस कोरोना संकट में महिलाओं को प्रसव के दौरान दुगुनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. शहरी क्षेत्रों की गर्भवती महिलाओं को इस समय स्वास्थ्य सुविधाओं का मिलना कठिन हो रखा है. ऐसे में भौगोलिक विकटता और सुविधाओं के अभाव में पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों की गर्भवती माताएं किस संकट से गुज़र रही होंगी, इसका केवल अंदाज़ा लगाया जा सकता है. 

बहुत संघर्षों और बलिदानों के बाद उत्तराखंड राज्य का निर्माण हुआ है. राज्य आंदोलन के संघर्ष में महिलाओं ने बढ़चढ कर भागीदारी की थी. राज्य आंदोलन की बुनियाद में प्रदेश की महिलाओं के कष्ट भी प्रमुख थे. लेकिन इसके बावजूद राज्य बनने के बीस वर्ष बाद भी महिलाओं को प्रसव के लिये अपनी जान से समझौता करना पड़ रहा है, यह बेहद शर्मनाक स्थिति है. किसी भी राज्य की दशा और दिशा को बदलने तथा वहां के नागरिकों के लिए बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध करवाने के लिए दो दशक का समय काफी होता है. लेकिन उत्तराखंड में इसकी कमी राज्य से लेकर पंचायत स्तर तक की उदासीनता दर्शाता है. यह उदासीनता पहाड़ की बेटियों के जीवन को खतरे में डाल रही है.
(Women Health Issues in Uttarakhand)

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

(टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में रहने वाली अंजली नेगी एवं सपना नेगी का यह लेख हमें चरखा फीचर ने भेजा है.)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

14 hours ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

2 days ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

2 days ago

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

6 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

1 week ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

2 weeks ago