1954 में एक फिल्म आई थी ‘नौकरी’. इस फिल्म में किशोर दा की आवाज में एक गाना है जिसके बोल कुछ यूं हैं :
एक छोटी-सी नौकरी का तलबगार हूँ मैं
तुमसे कुछ और जो मांगू तो गुनहगार हूँ मैं
एक छोटी-सी नौकरी का तलबगार हूँ मैं
एक-सौ-आठवीं अर्ज़ी मेरे अरमानों की
कर लो मंज़ूर कि बेकारी से बेज़ार हूँ मैं
मैं कलेक्टर न बनूँ और न बनूँगा अफ़सर
अपना बाबू ही बना लो मुझे बेकार हूँ मैं
मैंने कुछ घास नहीं काटी, किया BA पास
हो समझदार, समझ लो कि समझदार हूँ मैं
उत्तराखंड में इन दिनों युवाओं पर यह गाना पूरी तरह फिट बैठता है. जितनी आमदनी पहाड़ में रहने वाले एक परिवार की होती है उसमें बीए और एमए दो ऐसी डिग्रियां हैं जो इन परिवारों के बच्चे बड़ी आसानी से ले सकते हैं. तकनीकी शिक्षा ने नाम पर आईटीआई और पॉलटेकनिक दो ही इनके हिस्से आती हैं. इसके बाद किसी सरकारी नौकरी की ख्वाहिश लिये ये बच्चे देहरादून, हल्द्वानी जैसे शहरों में तैयारी के लिये जाते हैं. और यहीं से शुरु होता है शोषण का दौर.
घर वाले बड़ी मेहनत से या किसी से उधार मांगकर उनके लिये पांच से छः महीने का खर्च तो जुटा लेते हैं लेकिन उससे अधिक उनके बूते का भी नहीं. अब बच्चों के पास दो विकल्प बचते हैं या तो गांव लौट जाये या सिडकुल में अपना शोषण कराये. अधिकतर सिडकुल का विकल्प ही चुनते हैं क्योंकि गांव में परिवार की स्थिति उनसे बेहतर कोई नहीं जानता.
उत्तराखंड में सरकारी नौकरी की परीक्षा की तैयारी मतलब पंच वर्षीय योजना है. एक ऐसी पंचवर्षीय योजना जो कभी भी ठप्प हो सकती है जिसका समय कभी भी बढ़ाया जा सकता है. सोचिये साल 2014 से इस राज्य में पुलिस कांस्टेबल की भर्ती नहीं आई है जो बच्चे 2014 में कम उम्र के कारण फार्म नहीं भर पाते थे अब अधिक उम्र के कारण फार्म नहीं भर पायेंगे. Uttarakhand government exams
उत्तराखंड पुलिस एस.आई, उत्तराखंड पटवारी, ग्राम विकास अधिकारी, फारेस्ट गार्ड, प्रवर्तन सिपाही न जाने और कौन-कौन से पद राज्य में लम्बे अरसे से खाली हैं. इसके बाद भी सरकार नई विज्ञप्ति निकालने को तैयार नहीं है.
2017 में निकलने वाली एक विज्ञप्ति का पेपर 2020 में होता है वो भी धांधली के घेरे में आ जाता है. राज्य में परीक्षा आयोग का अध्यक्ष ही ऐसे व्यक्ति को चुना जाता है जिसपर पहले से भ्रष्टाचार के आरोप हैं. अब परीक्षा आयोग ऑनलाइन परीक्षा की सलाह दे रहा है.
उत्तराखंड का कोई भी ऐसा पहाड़ी जिला नहीं है जहां आज तक परीक्षा कराने वाले आईबीपीएस या एसएससी जैसे केन्द्रीय संस्थानों ने कभी नियमित ऑनलाइन परीक्षा आयोजित की हो. ऑनलाइन परीक्षा के लिये पहाड़ के छात्रों को मैदानी जिलों में ही आना पड़ेगा जैसे केंद्र द्वारा संचालित परीक्षा देने आना होता है. Uttarakhand government exams
अब सोचिये एक बच्चा पौढ़ी के किसी गांव से देहरादून परीक्षा देने आता है या एक बच्चा धारचूला से परीक्षा देने हल्द्वानी आता है अब वह कैसे उस प्रतियोगी के समान हुआ जो पहले से देहरादून या हल्द्वानी में रहता है. पहाड़ के गरीब बच्चे प्रतियोगी परीक्षा देने से पहले ही बाहर हो जायेंगे.
जाहिर है जब तक प्रशासन जमीनी हकीकत जाने बगैर हवाहवाई किले बनायेगा तो समस्या से कोसों दूर समाधान ढूंढेंगा. परीक्षा में धांधली बिना परीक्षा आयोजकों के संभव नहीं है इसके बावजूद आज तक कितनी परीक्षा में आयोजकों पर कार्यवाही की गयी है.
प्रत्येक सरकारी नौकरी के नये पद को जानबूझ कर विभाग, परीक्षा आयोजक और न्यायालय के जिस ट्रेंगल में फसाया जाता है उससे लगता है कि उत्तराखंड में सरकारी नौकरी की विज्ञप्ति युवाओं का मजाक उड़ाने के लिये निकलती है. जिसका सीधा फायदा केवल और केवल सरकार को होता है. Uttarakhand government exams
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