हिंदी सिनेमा में खय्याम साहब ने परिपाटी से हटकर संगीत दिया. उनका संगीत कहीं-न-कहीं गजल को स्पर्श करता था लेकिन भारतीय शास्त्रीय संगीत की महक उसमें हमेशा रची-बसी रही. इसीलिए उनके अधिकांश गीत सेमी क्लासिक्स में शुमार किए जाते हैं.
उनके संगीत से सजे सदाबहार गीतों की फेहरिस्त बहुत लंबी है-
वो सुबह कभी तो आएगी…
आसमां पे है खुदा और जमीं पे हम…
बहारों मेरा जीवन भी सँवारो…
और कुछ देर ठहर और कुछ देर न जा…
तुम अपना रंजो गम…
शामे गम की कसम…
ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाइएगा…
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है…
तेरे चेहरे पर नजर नहीं हटती…
मैं पल दो पल का शायर हूँ…
कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की…
मोहब्बत बड़े काम की चीज है…
जानेमन तुम कमाल करती हो…
हजार राहें मुड़ के देखी…
आजा रे ओ मेरे दिलबर आजा…
ऐ दिले नादान…
इन आँखों की मस्ती में…
दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए..
ये क्या जगह दोस्तों…
प्यार का दर्द है…
ऐसी हँसी चांदनी …
चाँदनी रात में इक बार तुम्हे देखा है…
वे धुनों के चितेरे संगीतकार थे. एक से बढ़कर एक नगमे, खूबसूरत अर्थपरक काव्यमय गीत. उन्होंने हमेशा अच्छे गीतकारों को तरजीह दी. ये खय्याम साहब की परख ही थी कि अच्छी कविता का कर्णप्रिय संगीत से मेल हुआ. गीत-संगीत का यह सुरीला संगम नायाब नगमों की सूरत में निकला, जिसने श्रोताओं के दिलों में जगह बनाई.
खय्याम साहब को श्रद्धांजलि.
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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