समाज

आदमखोर बाघ और यात्री : पहाड़ी लोककथा

एकबार एक आदमखोर बाघ जंगल में किसी पिंजरे में फंस गया. बाघ ने बड़ी कोशिश की पर पिंजरा टूटे न. तभी जंगल से होता हुआ एक यात्री बाघ को दिखा. बाघ ने कहा- अरे यात्री सुनो. मैं जंगल का राजा हूँ क्या तुम पिंजरे से निकलने में मेरी मदद न करोगे. आदमी बाघ को देखकर डर गया. आदमी ने बाघ की बात अनसुनी कर दी और अपने रास्ते पर बढ़ा.
(Tiger and Traveler Uttarakhand Folktale)

जब बाघ ने देखा की उसका रौब आदमी पर चल नहीं रहा तो उसने प्रार्थना करते हुये बड़े ही करुण स्वर में कहा- अरे दुनिया के सबसे बुद्धिमान जीव, करूणा के सागर क्या तुम्हें मुझे देखकर दया नहीं आती. कृपा कर मुझे इस पिंजरे से निकाल दो.

बाघ की ऐसी दयनीय पुकार सुनकर आदमी रूक गया और बाघ के पास गया और उससे कहने लगा- अरे जंगल के राजा क्या तुम मुझे बेवकूफ समझते हुये मैं जानता हूँ जैसे ही मैं तुम्हें बाहर निकालूँगा तुम तो मुझे खा लोगे.

बाघ को बात बनती नजर न आई. उसने दिमाग लगाया और कहा- देखो भाई मैं तुमसे वादा करता हूँ की बाहर निकलकर तुम्हें किसी भी तरह का नुकसान नहीं करूंगा. मैं तुम्हें एक राज की बात भी बताता हूँ. अब आदमी बाघ की बात बड़े ध्यान से सुनने लगा.

बाघ ने ईधर-उधर देखा और धीमी आवाज में कहा- मैंने कुछ दिन पहले एक महिला का शिकार किया था. उसने हाथों में मोटे-मोटे दो सोने के कंगन पहने हुये थे. मैंने उसका मांस तो खा लिया लेकिन कंगन जंगल में छुपाकर रखे हैं. अगर तुम मुझे इस जाल से निकाल दो तो मैं तुम्हें दोनों कंगन दे दूंगा.

आदमी के मन में लालच जाग गया. उसके दिमाग में खूब अमीर बनने का ख़्वाब आ गया और उसने पिंजरा खोल दिया. पिंजरा खुलते ही बाघ बाहर निकला और एक लम्बी जम्हाई लेने बाद अपने हाथ पाँव सीधा कर आदमी को खाने को बढ़ा. आदमी ने उसे उसका वादा याद दिलाया. दोनों के बीच बहस शुरु हो गयी.
(Tiger and Traveler Uttarakhand Folktale)

आखिर में दोनों ने जंगल के पंच के पास जाना तय किया. जंगल के पंच पेड़ और सियार हुआ करते थे. पेड़ आदमी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझते थे इसलिये उन्होंने पंच बनने से इंकार कर दिया और चुप-चाप खड़े रहे. सियारों ने आपस में गुफ्तगू की और कहा-

देखो भाई हम लोगों को पहले वह स्थिति देखनी होगी जिसमें तुम थे हम उसे देखकर ही कोई फैसला कर सकते हैं. सियार, आदमी और बाघ उसी जगह गये जहां बाघ पिंजरे में बंद था. सियारों ने कहा- अच्छा तो बताओ बाघ कहाँ था और आदमी कहाँ था.

बाघ अपनी स्थिति बताने के लिये पिंजरे के भीतर घुस गया जैसे ही वह पिंजरे के भीरत घुसा आदमी ने उसे बाहर से बंद कर दिया. उसके बाद सियार अपने रास्ते और आदमी अपने रास्ते. बेचारा बाघ गुस्से से अपने नाख़ून भींचता रहा.
(Tiger and Traveler Uttarakhand Folktale)

यह कथा ई. शर्मन ओकले और तारादत्त गैरोला की 1935 में छपी किताब ‘हिमालयन फोकलोर’ के आधार पर है. इस पुस्तक में इन लोक कथाओं को अलग-अलग खण्डों में बांटा गया है. प्रारम्भिक खंड में ऐतिहासिक नायकों की कथाएँ हैं जबकि दूसरा खंड उपदेश-कथाओं का है. तीसरे और चौथे खण्डों में क्रमशः पशुओं व पक्षियों की कहानियां हैं जबकि अंतिम खण्डों में भूत-प्रेत कथाएँ हैं.

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