मुंबई में पिछले संडे यानी 21 जनवरी को टाटा मुंबई मैराथन का आयोजन हुआ. यह दुनिया की टॉप 10 मैराथनों में से एक है. इसमें लगभग 60 हजार रनर्स ने भाग लिया. मैं पिछले 13 सालों से फुल मैराथन दौड़ रहा हूं. मैं उन खास लीग के लोगों में हूं जिन्होंने एक्सपेरिमेंट करने और एक्सपीरियंस लेने के लिए सीधे फुल मैराथन से अपनी मैराथन दौड़ की शुरुआत की थी, नहीं तो जनरली लोग पहले 3-4 हाफ मैराथन दौड़ने के बाद ही फुल दौड़ने के बारे में सोचते हैं.
निश्चय ही रनिंग ने मेरी दशा और दिशा बदलने का काम किया है. दोस्तो इस बार मैंने दौड़ने से पहले ही अपने साथियों को predict किया था कि मैं sub-4 मैराथन दौड़ूंगा यानी 42.195 की दूरी 4 घंटे से कम समय में तय करूंगा. और मैंने 3 घंटे 57 मिनट 38 सेकंड्स में यह मैराथन पूरी की. यह मेरा पर्सनल बेस्ट टाइम है. इससे पहले मैंने 2020 में 3 घंटे 59 मिनट 24 सेकंड्स में यह मैराथन दौड़ी थी. मैंने पहली मैराथन 4 घंटे 55 मिनट में पूरी की थी. मैं अब 56 साल का होने वाला हूं. उम्र बढ़ने के साथ अगर मैं रनिंग में और अच्छा परफॉर्म कर रहा हूं, और तेज दौड़ रहा हूं, तो उसकी कोई न कोई वजह तो होगी. आज मैं उन्हीं वजहों को आपके सामने रखने वाला हूं.
पहले मगर इस बात को समझ लो कि जिन शक्तियों के बारे में मैं बताने जा रहा हूं उनका उपयोग हम रनिंग के अलावा जीवन के किसी दूसरे क्षेत्र में भी सफलता पाने के लिए कर सकते हैं. इसलिए आप यह सोचकर विडियो देखना न बंद कर देना कि मुझे तो मैराथन नहीं दौड़नी, मैं क्यों देखूं. यह विडियो आपको दौड़ वाली मैराथन नहीं बल्कि जिंदगी की मैराथन के बारे में गुर सिखाएगा कि उसमें कैसे दौड़ें.
मैंने अपनी मैराथन में सफलता को पांच हिस्सों में बांटा है. चलिए एक-एक कर उन्हें जानिए. एक बार ठीक से जान गए तो इन्हें आप अपनी जिंदगी की किसी भी चुनौती के लिए खुद भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
एक फुल मैराथन की तैयारी के लिए हमें लगभग 4 महीनों की ट्रेनिंग चाहिए होती है. आप जितनी तेज दौड़ना चाहते हैं, आपको ट्रेनिंग भी उसी के मुताबिक करनी होगी. मैंने सबसे पहले अपना गोल सेट किया कि मुझे 2020 की तरह 4 घंटे से कम समय में फुल मैराथन दौड़ना है. गोल अचीव करने को लेकर कोई जोखिम न लेना पड़े इसलिए मैंने 3 घंटे 55 मिनट में मैराथन करने को अपना लक्ष्य बनाया. मेरे पास Runner’s world की किताब Run Less Run Faster है. इसमें हर टाइमिंग के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम दिया हुआ है. मैंने 3 घंटे 55 मिनट में रेस पूरी करने के लिए दिए गए ट्रेनिंग प्रोग्राम के हिसाब से ट्रेनिंग चालू की. मैंने अपनी डायरी में गोल को लिखा और उसके बाद वे सभी बातें लिखीं जिन्हें किए बिना मुझे लगता था कि मैं गोल अचीव नहीं कर पाऊंगा.
एक बात याद रखिए कि जब आप लिखकर कोई गोल सेट करते हो, तो ऐसा करके आप उसे अपने अवचेतन मन यानी subconscious mind में भेज देते हो. एक बार जो बात वहां पहुंच जाती है, तो उसे सबकॉन्शस माइंड रिएलिटी में बदलकर रहता है क्योंकि आपका सबकॉन्शस माइंड यूनिवर्स से जुड़ा रहता है. अब युनिवर्स के लिए तो कुछ भी असंभव नहीं. हमारे लिए जो असंभव लगता है युनिवर्स के लिए उसे पूरा करना चुटकियों का खेल है.
गोल लिखने के बाद यह जरूरी है कि आप उस गोल को अचीव करने के लिए जरूरी कामों की भी लिस्ट बनाएं. जैसे मैंने गोल लिखने के बाद ये बातें भी लिखीं –
-मुझे रेस के लिए एक अच्छी क्वॉलिटी का जूता चाहिए. इसके लिए मैं अमेरिका से Saucony Endorphins Pro 3 with carbon plate मंगाऊंगा.
-मुझे चार महीने का एक ट्रेनिंग शेड्यूल बनाकर उसे ईमानदारी से फॉलो करना है.
-मुझे प्रोटीन इनटेक बढ़ाकर अपनी मसल्स को strong बनाना है.
-Leg strengthening के लिए हफ्ते में दो दिन जिम में लेग वर्कआउट करना है.
-अगले चार महीने स्नीमिंग प्रैक्टिस को postpone करके सिर्फ और सिर्फ रनिंग पर फोकस करना है.
ऐसे मैंने गोल अचीव करने में मदद करने वाली सारी जरूरी बातें की लिस्ट बना सबको डायरी में लिखा. जनवरी में होने वाली मैराथन के लिए मैंने सितंबर के महीने से ट्रेनिंग चालू कर दी. क्या आप बता सकते हो कि अगर मैं 4 घंटे से कम समय में मैराथन पूरी करने का गोल लिखता नहीं, तो भी क्या उसे पा सकता था? मैं नहीं पा सकता था क्योंकि सिर्फ सोचकर करने और लिखकर करने में बहुत फर्क होता है. जर्नलिंग के मेरे अगले विडियो में आपको यह बात और बेहतर समझ आएगी. फिलहाल इतना जान लें कि अगर कोई गोल आपके लिए इंपोर्टेंट है, तो इसे लिखें जरूर.
दोस्तो आप लोगों को मुझे यह बताने की जरूरत नहीं कि सोचने से काम नहीं होते, काम असल में करने से होते हैं. स्वामी विवेकानंद कहते थे कि जीवन में ऐक्शन लेकर आओ. पूरे दिन में कोई भी क्षण ऐसा न हो जबकि आप कोई ऐक्शन न कर रहे हों. नींद में जाने को भी एक ऐक्शन बनाओ. क्योंकि आप नींद में किसी मकसद के साथ जाते हो. शरीर को तरोताजा करने के मकसद के साथ.
गोल सेट करने के बाद preparations का काम शुरू होता है और यह गोल को अचीव करने तक चलता है. कोई भी गोल जिसे अचीव करने में तीन महीने से ज्यादा समय लगने वाला है, उसके लिए आपको गोल अचीव करने में मदद करने वाली आदतें डालनी चाहिए. जैसे मैंने सब 4 फुल मैराथन के गोल को पाने के लिए डिनर जल्दी करने की आदत डाली ताकि मैं समय पर सो जाऊं और मुझे अच्छी नींद मिले. किसी भी फिजिकल वर्कआउट वाले गोल को पाने के लिए अच्छी गहरी नींद बहुत जरूरी है क्योंकि वही रनिंग की प्रैक्टिस में टूटी-फूटी मसल्स को रिपेयर करती है.
मैंने रनिंग करके आने के तुरंत बाद ठंडे पानी से नहाने की आदत डाली ताकि ठंडे पानी से मसल्स को आराम मिले. मैंने छुट्टी के दिन शाम को जिम में वर्कआउट करने जाने की आदत डाली ताकि मैं leg strengthening से कोई कंप्रोमाइज न करूं.
मैंने डेली ब्रीदिंग एक्सरसाइज करने की आदत डाली ताकि मेरे लंग्स स्ट्रांग बनें और मैं गहरी और लंबी सांस ले सकूं. मैंने चढ़ाई में दौड़ने की प्रैक्टिस की ताकि मेरे ग्लूट्स और strong हो जाएं. चार महीने तक मैं लगातार हर दिन अपनी रनिंग को सुधारने के बारे में सोचता रहा. अपने परफॉर्मेंस का analysis करता रहा.
एक बात याद रखें दोस्तो, गोल सेटिंग में जो जरूरी बातें आप लिखते हैं, उन सभी को पूरे धैर्य से करना बहुत जरूरी है.
दोस्तो, जीवन हमें किस मकाम पर ले जाता है, हमारा कैरेक्टर कितना मजबूत बनता है, हमारा व्यक्तित्व कैसा बनता है, हमारी विल पावर कितनी स्ट्रॉंग बनती है, हम पल-प्रतिपल कितने कॉन्फिडेंस के साथ जीवन जीते हैं, ये सारी बातें आपका सबकॉन्शस माइंड, आपका अवचेतन मन तय करता है. जिस तरह एक आइसबर्ग का 90 पर्सेंट हिस्सा पानी के भीतर रहता है और सिर्फ 10 पर्सेंट हिस्सा ही पानी के ऊपर रहता है, उसी तरह हमारे जीवन में कॉनशस माइंड की भूमिका सिर्फ 10 पर्सेंट ही होती है. हमारे 90 पर्सेंट जीवन को हमारा सबकॉन्शस माइंड ही संचालित करता है.
मैंने अपनी रनिंग गोल को अचीव करने के लिए इस सबकॉन्शस माइंड का भरपूर इस्तेमाल किया. सबसे पहले तो मैंने रोज डायरी में अपने हर छोटे बड़े टार्गेट और रनिंग से रिलेटेड बातों को लिखना शुरू किया. मैंने सुबह की अपनी रोज पांच ग्रेटिट्यूड लिखने वाली आदत के तहत युनिवर्स को पहले ही अपने गोल को अचीव करवाने के लिए धन्यवाद देना शुरू कर दिया था. इससे क्या हुआ? सोचो दोस्तो, इससे क्या हुआ होगा. मेरे भीतर अपने रनिंग गोल को अचीव करने को लेकर इतना गहरा self confidence बैठ गया कि गोल अचीव होना एक formality रह गया.
दोस्तो जो नया जूता मैंने अमेरिका से मंगवाया था, उसे पहनकर मैंने जितनी बार भी रनिंग की उसे बाकायदा डायरी में दर्ज किया. मुझे पता चल रहा था कि उसे पहनकर मैंने इतने किलोमीटर की रनिंग कर ली है. कार्बन प्लेटेड जूते 500 से 600 किलोमीटर तक ही चलते हैं. तो मैं नहीं चाहता था कि मैं रेस आने से पहले ही उसका इफेक्ट खत्म कर दूं. इसलिए प्रैक्टिस रन के लिए मैं ज्यादातर दूसरे जूते यूज कर रहा था.
यही नहीं मैंने रोज अगले दिन की प्रैक्टिस के बारे में रात को ही डायरी में लिखने कीर आदत डाली कि मैं क्या और कितनी रनिंग करने वाला हूं. आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि रनिंग में तीन तरह की प्रैक्टिस होती है. जैसे मैं हर Tuesday को interval training करता था. इसमें 400 मीटर से लेकर 1600 मीटर तक की दूरी चुनी जाती है और तेज स्पीड से दौड़ा जाता है. Thursday का दिन tempo run के लिए fix था. इसमें 5 किमी से लेकर 16 किमी तक की दूरी आप अपनी फाइनल मैराथन स्पीड से कुछ ज्यादा तेज गति से दौड़ते हो. और संडे को long distance slow run होता था जबकि मैं 18 किलोमीटर से लेकर 36 किलोमीटर तक की रनिंग करता था.
मैं जब भी रनिंग के बारे में सोचता था, जाहिर है खूब ज्यादा सोचता था, तो हमेशा पॉजिटिव सोचता था कि इस बार मैं बहुत आसानी से sub 4 का अपना गोल अचीव कर लूंगा. और मैं अपने दोस्तो को भी बेधड़क होकर ऐसा बताता था. याद रखें दोस्तो कि जो आप सोचते हो वही आपके सबकॉन्शस माइंड में जाता है और वही आपकी जिंदगी की हकीकत बनता है. मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं इस बार फुल मैराथन नहीं कर पाऊंगा बल्कि मैंने सोचा कि मैं आराम से कर लूंगा और आज आराम से कर लेने के अगले दिन ही आपके सामने बैठा बता रहा हूं कि मैंने कैसे किया. है न दिलचस्प.
चौथा हिस्सा – Power of Visualization
दोस्तो यह सबसे ज्यादा शक्तिशाली चीज है – Power of visualization यह बहुत साइंटिफिक भी है. आप असल में जब भी किसी चीज को विजुअलाइज करते हो, तो आपके माइंड में Neurons का circuit बनता है. जब आप किसी काम को करते हो, तब भी न्यूरॉंस का सर्किट बनता है, लेकिन जब आप वह काम करते नहीं बल्कि उसे सिर्फ दिमाग में विजुअलाइज करते हो, तो भी वैसा ही न्यूरॉंस का सर्किट बनता है और बार-बार बनने से यह सर्किट जितना स्ट्रॉंग होते जाता है, वह काम करना आपके लिए उतना आसान होते जाता है. सर्किट स्ट्रॉंग बनता है किसी काम को दोहराने से, बार-बार रिपीट करने से. जितनी बार आप किसी काम को दोहराते हैं, उतना उस काम का आपके दिमाग में बनने वाला न्यूरॉंस का सर्किट मजबूत होते जाता है. तो आप अगर किसी काम को फिजिकली बार-बार नहीं कर सकते, तो कम से कम घर बैठे दिमाग ही दिमाग में विजुअलाइज तो कर सकते हो न.
मुझे लगता है कि विजुअलाइजेशन मेरे लिए सबसे ज्यादा effective साबित हुआ. मैंने न जाने कितनी बार खुद को दौड़ते हुए विजुअलाइज किया. यह विजुअलाइज करना सिर्फ देखने तक नहीं था बल्कि फील करते हुए विजुअलाइज करना था. यानी actually दौड़ते हुए मेरे शरीर में जो फीलिंग्स रहती थीं, उन्हीं फीलिंग्स के साथ खुद को दौड़ते हुए विजुअलाइज किया. इसका असर यह हुआ कि रेस डे के दिन जब मैं दौड़ रहा था, तो मेरे लिए वह नया एक्सपीरियंस नहीं था. मैं पहले से किए गए काम को दोहरा भर रहा था. इसलिए स्पीड पर मेरा पूरा कंट्रोल था, बॉडी, माइंड पर मेरा पूरा कंट्रोल था. मैं जब प्रैक्टिस के तहत रनिंग कर रहा होता था, तो विजुअलाइज करता कि रेस डे के दिन रेस के रूट पर दौड़ रहा हूं और खाली बैठे हुए या रात को सोने से पहले भी खुद को रेस के रूट पर दौड़ते हुए विजुअलाइज करता था. क्योंकि मैं बारह साल से यह मैराथन दौड़ रहा हूं इसलिए रेस के रूट की पूरी फिल्म मेरे दिमाग में बनी हुई है.
दोस्तो विजुअलाइजेशन की पावर को यूज करने का सबसे इफेक्टिव तरीका यह है कि हमेशा end result को विजुअलाइज करो. अगर मैराथन की दौड़ के लिए इसका यूज कर रहे तो खुद को दौड़ खत्म करते हुए विजुअलाइज करो. मैंने जिस तरीके से इस दौड़ को खत्म करते हुए खुद को विजुअलाइज किया था ठीक वैसा ही हुआ. फिजिकल बॉडी के ऐक्शन और फीलिंग्स को लेकर भी और रीजल्ट को लेकर भी.
अगर आप मैराथन नहीं दौड़ रहे, बल्कि कोई स्पीच देने जा रहे हो. लोगों से खचाखच भरे हुए हॉल में. तो स्पीच खत्म करने के बाद लोगों की तालियों से गूंजते हॉल को विजुअलाइज करो. अगर कोई एग्जाग दिया है, तो उसका पॉजिटिव रीजल्ट आने पर अपने खुशी भरे रिएक्शन को विजुअलाइज करो. हिंदी में कहावत है कि अंत भला तो सब भला. अंत अगर अच्छा होगा, तो but obvious है कि प्रोसेस भी अच्छी ही हुई है.
पांचवा हिस्सा – थोड़ा बेपरवाह बनो
दोस्तो चाहे कुछ कहो जिंदगी का मजा तो तभी है जबकि आपको मालूम नहीं कि आगे क्या होने वाला है. अगर पैदा होते ही तुम्हें बता दिया जाए कि तुम क्या बनने वाले हो, तुम्हारे साथ क्या होने वाला है, तुम कब तक जीने वाले हो, तो तुम्हारी जिंदगी बहुत बोरिंग हो जाएगी चाहे उसमें बहुत सारी मजेदार बाते क्यों न हों. यह ऐसा ही है जैसे कि फिल्म देखने से पहले ही कोई तुम्हें फिल्म की पूरी कहानी सुना दे. मैं कहता हूं कि अपने गोल को अचीव करने में 100 पर्सेंट नहीं एक हजार पर्सेंट दो, लेकिन इस बात की गुंजाइश रखो कि अगर गोल अचीव नहीं हुआ, तो भी तुम जिंदगी से पहले जैसी ही मोहब्बत करोगे. एक बहुत फेमस शेर है इस पर. बशीर बद्र ने लिखा है. दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों
जब आप इस mental set up में रहते हो, तो तुम्हें कोई स्ट्रेस नहीं होता. जब तुम हर हाल पर एक बात को होते देखना चाहोगे, एक खास रीजल्ट चाहोगे, तो स्ट्रेस भी लोगे क्योंकि तब तुम्हें मनमाफिक रीजल्ट नहीं मिलने पर समझ नहीं आएगा कि क्या करो. इसलिए बहुत सारे बच्चे जो इंजीनियरिंग की तैयारी करते हैं, इंजीनियरिंग छोड़ दो, दसवीं और बारहवीं के बच्चे ही, फेल होने पर सुसाइड तक कर लेते हैं. इसलिए सांस लेने लायक जगह हमेशा छोड़कर रखो.
सुन्दर चन्द ठाकुर
कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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