संस्कृति

क काथ: लछू कुठ्यारीक च्याल

भौत पैलियकि बात छ. एक गौं में लछू कुठ्यारीक नूंक एक विद्वान बामण रूनेर भा. जो भौत पढ़ी लेखी और भाल मैस लै भा.  इलाक में उनरी भौत इज्जत भै. पर पूरब जनमाक करमनि लछू कुठ्यारीक एक एक कै छ च्याल हैगा. परवार में भौत खुशी भै. खूब झरफर करै सबनकी नामकन में. धीरे-धीरे च्याल ठुल हुण फैगा. देखण में आ कि उनन के अकल त छयी न. सबै सब भाइ यास कारनाम कनेर भा जैलि मै बाबुक धो मूख देखूण हुनेर भै. मैस लगै लगै बेर उनार किस्सन कैं कौल. कुछ मूर्खतापूर्ण किस्स यों छन. (Kumaoni Folklore)

चौमासक मौसम भै. ककाड़, लौकी, तोर्यां, चीचन जास भौत किसमक ब्याल हयी भा. एक दिन लछू कुठ्यारील च्यालन छैं क जाओ रे च्यालौ बण बटी ब्यालन हैं ठङार काटि लाओ. सब भाइ गा पैं जंगव बटी ठंङार काट. ठंङारन में नान-नान हाङ-फाङ लै धरी भा. बाटपन एक जाग चौमासकि ठुलि झेड़ि हयी भै. सबै है हागिल बै ठुल भाइ लागी भै. उसी कै नंबरवार नान भाई लागी भा. जसै ठुल भाइ झेड़ी ला पूजौ वीक ठंङार झेड़ी पन फंसि गै. वील सोच म्यार नान भाई मजाक करनयी. उला ठाड़ हैबेर वीलि नान भाइन छैं कौ मजाक न करौ रे, ठंङार कै तसीके न पकड़ौ भारि हरौ. छोड़ौ. किहीं ठंङार उसै भै. जब पकड़ि राखन तब छोड़न. आब उकैं भौत रीस आगै. वील ठंङार भीमै धरौ पछिल बै भाइक मुख में जोरलि द्वि थप्पड़ लगाई और ठंङार कैं कान में धरी बेर वूनै रौ. किलै आब ठंङार क हांङ-फांङ मणी आघिल कै हैगा जै वील ठंङार लूण आसान हैगै. उसीकै जब दूसर भा उलै पूजौ वील लै उसै सोचौ कि म्यर ठंङार पछिल बै पकड़ी राखौ. वील लै ठंङार भीमै धरिबेर नान भाई क मुख में द्वि थप्पड़ लगै और ठंङार कान में धरिबेर वूनै रौ. यसीकै सबनली आपण पछिल बै भाइ कैं द्वि-द्वि थप्पड़ लगै.

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एक बखत सबै भाइ गाड़ पार हैं लागी भा. गाड़ पार करिबेर ठुल भाइलि गिनती करि एक भाइ कम हुनेर भै. यसीकै बारीवार सबै भाइन गिनती करी हाली पर एक भाइ कम हुनेर भै. किलैकि जो गिनती करल उ आपूं कैं गणनेर न भै. सबै भाइ नकि रीवाड़ में डड़ाडाड़ पड़ि गै कि हमार एक भाइ गाड़ बगी गो. उधली क्वे बटव उलै पूजि गै वील उनन छैं डाड़ मारणक कारण पूछौ. तब उनलि बतै कि हमार एक भाइ बगी गो. तब वील आपण खुट बटिक चप्पल निकाल और उनन कैं लाइनवार ठाड़ कर फिरि पैल भाइ बटिक एक,दो,बटिक लास्ट भाइ छ जाणे गिनती में एक-एक चप्पल लगै तब कौ तुम पूर छौ कि न? तब जै सबै भाइ खुशी हुनै गा.

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पछिल एक दिन उनार बौज्यू लछू कुठ्यारी मरी गा. सुणिबेर गौं वाल घर पूजि गा,पैं उं कीकाड़ रनकार चुल्याण भूटी भट खाण में लागी भा और हंसण में गुलैरी भा. बाबू मरीयक के दुख न हयी भै. तब एक सयाण मैसलि कै अरे!भ्यार उनाकन बाब कैं फुकण न हां क्या?  तब वूं भ्यार आ,बाबूकि डानि कैं कान में धरिबेर भटाक गुद खानखानै बाट लाग. बाटपन एक भाइ क भटक गुद भीमै  छुटि गै वील जोरलि डानि कैं भीमै खेड़ै और भटक गुद कैं चाण फैगै. भौत देर जाणे चाण में भटक गुद त न मिल एक  काव रङक गुबरक किड़ गुबर में बैठी मिलि गै. वील क्याचै कन उ कीड़ खाप हालि दे. कीड़ खाप भतेर च्यां-च्यां कण फैगै,तब लछू कुठ्यारीक च्यल कुनेर भै तू च्यां करै या म्यां करै छै त म्यार भटकै गुद.यस कैबेर वील झट्ट गुद कीड़ कैं कचकाबेर नेइ दे.

यसा भौत किस्सै और लै छन लछू कुठ्यारीक च्यालनाक. आज लै अगर कोई मैस कीकड़्योइ काम जस करल त उ छैं कूनी अरे के कनाछै त लछू कुठ्यारीक च्यालनक जस.

सेवानिवृत्त शिक्षक खुशाल सिंह खनी ग्राम-नैनी (जागेश्वर) अल्मोड़ा के रहने वाले हैं. हिन्दी बाल कहानी संग्रह ‘मछली जल की रानी है’ और कुमाऊनी कहानी संग्रह ‘त्यर बुलाण’ प्रकाशित हो चुके हैं. कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं.

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Sudhir Kumar

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