पिछली सदी के साठ का दशक वह दौर था, जब शिक्षा का मतलब केवल शिक्षा होता था, शिक्षित होकर ओहदा पाने का सपना हमें कम ही दिखाया जाता था. अधिकांश अनपढ़ अथवा साक्षर अभिभावकों को न करियर काउन्सिलिं... Read more
Popular Posts
- हमारे बच्चों के लिए गांव के वीडियो ‘वाऊ फैक्टर’ हैं लेकिन उनके सपनों में जुकरबर्ग और एलन मस्क की दुनिया है
- मेले से पिछली रात ऐसा दिखा कैंची धाम
- कमल जोशी की फोटोग्राफी में बसता पहाड़
- आज मनाया जाता है दसौर यानी गंगा दशहरा पर्व
- रुढ़िवादी परम्पराओं को दरकिनार कर बेटी ने किया मां का श्राद्ध
- भोट-तिब्बत व्यापार में दोस्ती और जुबान की कीमत
- आओ मिलकर अपनी धरती को बचाएं
- खटारा मारुति में पूना से बागेश्वर
- पहाड़ में लड़के का परदेश जाना बेटी की विदाई से कम नहीं
- सांसद अजय टम्टा का वीडियो क्लिप वायरल
- ‘हिमांक और क्वथनांक के बीच’ केवल यात्रा वृतांत नहीं है
- उत्तराखंड से मोदी कैबिनेट में शामिल होने वाले एकमात्र सांसद
- मार्कण्डेय की कहानी ‘हंसा जाई अकेला’
- अल्मोड़े का लच्छी राम थिएटर उर्फ़ रीगल सिनेमा
- पत्नी का पत्र
- जवाहरलाल नेहरू के ‘बेडू बॉय’ मोहन उप्रेती की आज पुण्यतिथि है
- आज आंचलिक त्यौहार वट सावित्री है
- सैर सपाटा और फर्राटा नहीं हैं चार धाम
- कहानी डाकू हसीना की
- अपने सांसदों को जानिये
- जीत की हैट्रिक लगाने वाले तीन धुरंधर : उत्तराखंड लोकसभा चुनाव
- भाजपा का क्लीन स्वीप : उत्तराखंड लोकसभा चुनाव लाइव
- गढ़वाल हिमालय के नैसर्गिक स्थलों और जनजीवन को चित्रित करती पुस्तक ‘परियों के देश खैट पर्वत में’
- कुमाऊनी बोली के प्रकार
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : आ चल के तुझे, मैं ले के चलूँ, इक ऐसे गगन के तले