नेपाल से आये टिकेन्द्र का भोलापन
शिकंजे में बदलती दीवारें टिकेन्द्र नाम होगा उसका, जिसे वह कुछ अजीब से लहज़े में टिकेन्दर कह कर बताता है. जन्मतिथि उसके लिए एक गैर जरूरी सी चीज है. उम्र पूछने पर वह टालने वाले अंदाज़ में, शाय... Read more
इस साल मकर संक्रांति के दिन कौवे रूठे नज़र आये
मकर संक्रांति, कुमाऊँ हिमालय में मूलतः कौवों की अवाभागत का त्यौहार है. यहाँ यह दिवस ‘काले-कौवा’ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. पहाड़ों में हाउस क्रो, जिसे ग्रे-नेक्ड क्रो भी कहा जाता है,... Read more
जलते जंगल का वसंत
आज सुबह आँख खुली तो मन कुछ उद्विग्न था. बेसिरपैर का, पता नहीं क्या सपना देखा था रात को, कि पिताजी के स्वास्थ्य की चिंता लग गयी. उम्र के 96 वर्ष देख चुके ‘पप्पा’ के स्वास्थ्य को लेकर, बावजूद... Read more
देवीधूरा: आस्था की चट्टानें और सच्चाई के प्रहार
कौतूहल, कुछ देख कर उसके बारे में बहुत कुछ, सब कुछ जानने की कोशिश करना संभवतः मनुष्य का जन्म-जात स्वाभाव है. हमारी शोध की प्रवृत्ति, तकनीक, वैज्ञानिक सोच इत्यादि ने हमारे चारों ओर फैली अनगिनत... Read more
फिर आयेगा धुन्नी
मुंशी प्रेमचंद की क्लासिक कहानी ‘ईदगाह’ की शुरुआत, अगर मुझे ठीक से याद है, तो कुछ इस तरह से है- “रमज़ान के पूरे तीस रोज़ बाद ईद आयी…”. क़िस्सागोई वाले सीधे सपाट... Read more
निश्चित ही कब्रिस्तानों का एक आकर्षण होता है! निस्तब्धता, निरभ्रता, शायद इस जगह से मुखर कहीं ओर नहीं होती. और फिर पहाड़ों के कब्रिस्तान तो सम्मोहित सा करते हैं अक्सर. नैनीताल, रानीखेत, अल्मो... Read more
Popular Posts
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं
- स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि
- सुदर्शन शाह बाड़ाहाट यानि उतरकाशी को बनाना चाहते थे राजधानी
- उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल
- अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन
- नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम
- रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता
- यम और नचिकेता की कथा
- अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण
- कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब
- कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार
- आधुनिक युग की सबसे बड़ी बीमारी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी
- स्याल्दे कौतिक की रंगत : फोटो निबंध
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है