उन दिनों उत्तराखंड का अल्मोड़ा शहर बहुत फैला हुआ नहीं था. आबादी भी कम थी. यही कोई 35 हजार से कुछ ज्यादा. वर्ष 1568 में अल्मोड़ा शहर बना. कुमाऊं डिविजन का यह शहर अब भी उतना ही खूबसूरत है, जित... Read more
तब हम रानीधारा की सड़क में दौड़ लगाते थे. दस बारह वर्ष के रहे होंगे या चौदह-पन्द्रह के. सन 1940 से 1945 तक का समय था. धीरेन्द्र उप्रेती, मोहन पांडे और मैं और हरी-भरी दूर्वादल से ढंकी पैदल सड़क.... Read more
Popular Posts
- ब्रह्माण्ड एवं विज्ञान : गिरीश चंद्र जोशी
- परम्परागत घराट उद्योग
- ‘गया’ का दान ऐसे गया
- कोसी नदी ‘कौशिकी’ की कहानी
- यो बाटा का जानी हुल, सुरा सुरा देवी को मंदिर…
- कुमौड़ गांव में हिलजात्रा : फोटो निबन्ध
- शो मस्ट गो ऑन
- सेंट जोसेफ कॉलेज नैनीताल : देश का प्रतिष्ठित स्कूल
- चप्पलों के अच्छे दिन
- छिपलाकोट अंतरयात्रा : चल उड़ जा रे पंछी
- बिरुण पंचमि जाड़ि जामलि, बसंतपंचमि कान कामलि
- ‘कल फिर जब सुबह होगी’ आंचलिक साहित्य की नई, ताज़ी और रससिक्त विधा
- कसारदेवी के पहाड़ से ब्लू सुपरमून
- ‘लाया’ हिमालयी गाँवों की आर्थिकी की रीढ़ पशुपालकों का मेला
- ‘गिर्दा’ की जीवन कहानी
- पहाड़ों में रोग उपचार की एक पारम्परिक विधि हुआ करती थी ‘लङण’
- पूर्व मुख्यमंत्री टॉर्च और मोमबत्ती की मदद से खोजने निकले ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण
- उत्तराखंड में सकल पर्यावरण सूचक
- प्रकृति का चितेरा कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल : जन्मदिन विशेष
- पानि-बाण से जूझ रहा उत्तराखंड
- इस देश की हर बहन-बेटी को मोहब्बत के ऐसे मेडलों की ज़रूरत है
- 1982 में गोपेश्वर
- पेरिस ओलंपिक के बाद पहली बार अपने घर अल्मोड़ा में लक्ष्य सेन
- गरतांग गली की रोमांचक यात्रा
- घी त्यार में हर घर में घी से बने स्वादिष्ट पकवान बनाये जाते हैं