जब तिल्लू बड़बाज्यू भिटौला लेकर आये
भिटौली पर याद आया कि उस साल हम पहाड़ में रहे थे जब तिल्लू बड़बाज्यू भिटौला लेकर आये होंगे. आप भी सोचते होगे कि भिटौला और बड़बाज्यू का भी क्या मेल? भिटौला तो भाई या ददा लेकर आते हैं, बेणीं या... Read more
चौकोड़ी से केमू की बस पकड़ने की पुरानी याद
दादा के घर से चौकोड़ी, गोल टोपी सी दिखती है. लगता है जैसे प्रकृति ने चोटी को ठंड से बचाने के लिए टोपी पहना दी हो. चढ़ाई पार करते हुए फूँ-फाँ होने लगी तो उन्होंने बताया कि पार वो जो गाड़ी आते... Read more
शहर लौटने से पहले आमा और पोते के मन का उड़भाट
जगथली गाँव से दादा का संदेशा आया है कि बुधवार की सुबह पहली बस से निकलेंगे. गंगोलीहाट-हल्द्वानी वाली केमो आठ बजे से पहले ही चौकोड़ी लग जाती है. मुन्ना को जल्दी पहुँचा देंगे तो सुविधा होगी. एक... Read more
आखिर बाबू को आश्रय देने वाले लोग कैसे रहे होंगे
पिताजी सन् 1949 में लखनऊ आ गए थे. उन्होंने ने ही बताया था कि घर से ( गराऊँ, बेरीनाग ) बड़बाज्यू अलमोड़ा तक पैदल छोड़ने आए थे. उन दिनों अलमोड़ा से आगे मोटर रोड नहीं थी. हमारे यहाँ के लिए पैदल रास... Read more
केमू में सफ़र और बीते ज़माने की याद
के०एम०ओ०यू० यानी कुमाऊं मोटर्स ओनर्स यूनियन. पहाड़ में सड़क परिवहन की सबसे पहली पंजीकृत संस्था. पुराने लोगों को याद होगा, तब यही एकमात्र साधन था पहाड़ों के सुदूर गाँवों में सड़क मार्ग से पहुँचने... Read more
अपनी आमा की बहुत याद आती है मुझे
बात सन् 1982 के शुरुआती दिनों की है जब आमा लोहे के सन्दूक में पूरा पहाड़ समेटकर वाया बरेली यहाँ आयी थी. साल – डेढ़ साल ही रही होंगी बरेली में ! वर्ष 1970 से पूर्व दो – तीन बार गर्... Read more
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