आजादी के लिए टिहरी रियासत का संघर्ष
टिहरी राजा के राज में ब्रिटिश हुक्मरान गवर्नर हेली ने एक अस्पताल बनाना चाहा. यह अस्पताल नरेंद्र नगर में बनना था. इसकी नींव रखे जाने के सारे प्रबंध टिहरी के राजा ने कर दिए. रियासत में मुनादी... Read more
उत्तराखंड में पूजे जाने वाले नागराजा
उत्तराखंड गढ़वाल मण्डल में ऐसा कोई जनपद नहीं जहां श्री कृष्ण के रूप में पूजे जाने वाले नागों के मंदिर न हों.अनेक वैष्णव मंदिर नागराजा मंदिर और नागराजा मंदिर वैष्णव मंदिर कहे गए जिसका कारण यह... Read more
गाँव में जाती है देव डोली. यह वर्षों से चली आ रही पहाड़ की प्राचीन परंपरा है. इसके जन-कल्याण से सम्बन्धित अधिमान इसे आदर्श लोक परंपरा का रूप देते हैं. गाँव के हर सदस्य, हर मौ, हर द्वार, हर प... Read more
दारमा, व्यास और चौदास का अलौकिक सौंदर्य
एटकिंसन ने 1866 में अपने ग्रन्थ ‘हिमालयन गज़ेटियर’के भाग तीन में “भोटिया महाल” में विस्तार से दारमा परगने का वर्णन किया है. स्ट्रेची और ट्रेल ने भी अपने यात्रा विवरण... Read more
पिथौरागढ़ में मिशनरी का इतिहास
एक सौ पचास साल हो चुके हैं जब पिथौरागढ़ के सिलथाम में एक प्राथमिक स्कूल खुला था और उसमें सिर्फ एक बच्ची का प्रवेश हुआ था. लड़कियों की पढ़ाई लिखाई की यह शुरुवात थी.एक ऐसी लहर जो सोर घाटी में... Read more
गढ़वाल के बुग्याल
‘नंदादेवी का सफल आरोहण’ के लेखक पर्वतारोही टी. जी. लांगस्टाफ उत्तराखंड हिमालय से सम्मोहित अभिभूत व रोमांचित रहे. इस सुरम्य अल्पाइन भू भाग के भ्रमण व कई यात्राओं से मुग्ध हो उन्हो... Read more
सोर की होली के रंग
सोर की होली के रंग ही निराले. एक तरफ अल्मोड़े की बैठि या बैठकी होली के सुर आलाप तो दूसरी ओर गुमदेश-लोहाघाट-चम्पावत -पाटी की थिरकती नाचती हर थाप पे मदमाती खड़ी होली का संगम होता. बैठ कर गाई-ब... Read more
टिहरी रियासत के कारकुनों ने 11 जनवरी 1948 को कीर्तिनगर गढ़वाल में नागेंद्र सकलानी और मोलू भरदारी की हत्या कर दी. कामरेड नागेंद्र सकलानी और मोलू भरदारी की अर्थियों को ले कर जो लोग 12 जनवरी को... Read more
अल्मोड़ा से छत्तीस किलोमीटर दूर पूर्व उत्तर दिशा में देवदार के घने पेड़ों की घाटी में एक सौ चौबीस छोटे बड़े मंदिरों का समूह जागेश्वर है. यहाँ देवदारु के पेड़ हैं इसलिए यह ‘दारूकावन... Read more
पहाड़ में राजस्व के साथ पुलिस भी संभाले पटवारी
गों घर हो या पट्टी, अंग्रेज की शकल किसने देखी? पर पटवारी वो तो साक्षात् राजसेब हुआ.जरा उसकी आँख में बाल पड़ा कि पुरखों के सहेजे खेत पात कागजात खसरा खतौनी पर काली अमिट सियाही का दाग पड़ते देर... Read more
Popular Posts
- अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण
- कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब
- कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम
- ‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा
- पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा
- पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
- ‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक
- उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने
- नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार
- आधुनिक युग की सबसे बड़ी बीमारी
- छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी
- स्याल्दे कौतिक की रंगत : फोटो निबंध
- कहानी: सूरज के डूबने से पहले
- कहानी: माँ पेड़ से ज़्यादा मज़बूत होती है
- कहानी: कलकत्ते में एक रात
- “जलवायु संकट सांस्कृतिक संकट है” अमिताव घोष
- होली में पहाड़ी आमाओं का जोश देखने लायक होता है
- पहाड़ की होली और होल्यारों की रंग भरी यादें
- नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए
- कहानी : साहब बहुत साहसी थे
- “चांचरी” की रचनाओं के साथ कहानीकार जीवन पंत
- आज फूलदेई है
- कहानी : मोक्ष
- वीमेन ऑफ़ मुनस्यारी : महिलाओं को समर्पित फ़िल्म
- मशकबीन: विदेशी मूल का नया लोकवाद्य