कुमाऊँ में रुहेला आक्रमणकारियों ने लगभग सभी मन्दिरों को लूटा और उनमें रखी हुई मूर्तियों को तोड़ा. जागेश्वर ही अपनी स्थिति के कारण एक ऐसा प्राचीन स्थल है जहाँ वे नहीं पहुँच पाये. जागेश्वर कुम... Read more
कुमाऊँ में लकड़ी पर नक्काशी करने वाले आख़िरी उस्तादों में से एक धनीराम जी का इंटरव्यू
अठहत्तर साल के धनीराम जी कुमाऊँ की गौरवशाली काष्ठकला परंपरा के आखिरी उस्ताद ध्वजवाहक हैं. उन्होंने आज से साठ बरस पहले एक गांव के घर में बारह आना रोज की दिहाड़ी पर अपना पहला नक्काशीदार दरवाज़... Read more
जागेश्वर : बारह ज्योतिर्लिंगों का समूह जागेश्वर एक हिन्दू धार्मिक स्थान है जो अल्मोड़ा शहर से 37 किमी की दूरी पर है. समुद्र तल से 1,870 मी की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर समूह में कत्यूरीकाल, उत्त... Read more
उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 35 किलोमीटर दूर स्थित जागेश्वर धाम कुमाऊँ के प्राचीन मंदिरों में से है. जागेश्वर मंदिरों का निर्माण कत्यूरी राजाओं ने सातवीं सदी के दौरान कराया था. इसलिये इन मंदिरों... Read more
Popular Posts
- उत्तराखंड: योग की राजधानी
- मेरे मोहल्ले की औरतें
- रूद्रपुर नगर का इतिहास
- पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर में खेती
- उत्तराखंड की संस्कृति
- सिडकुल में पहाड़ी
- उसके इशारे मुझको यहां ले आये
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा
- विसर्जन : रजनीश की कविता
- सर्वोदयी सेविका शशि प्रभा रावत नहीं रहीं
- भू विधान व मूल निवास की लहर
- उत्तराखंड हिमवंत के देव वृक्ष पय्यां
- मुखबा गांव का आतिथ्य
- प्रकृति व महामाया का पर्व नवरात्रि
- प्रसूताओं के लिए देवदूत से कम नहीं ‘जसुमति देवी’
- असोज की घसियारी व घास की किस्में
- ब्रह्माण्ड एवं विज्ञान : गिरीश चंद्र जोशी