नदी की उंगलियों के निशान हमारी पीठ पर थे. हमारे पीछे दौड़ रहा मगरमच्छ जबड़ा खोले निगलने को आतुर! बेतहाशा दौड़ रही पृथ्वी के ओर-छोर हम दो छोटी लड़कियाँ. मौत के कितने चेहरे होते हैं अनुभव किया... Read more
पहली नजर में मैंने उसे पहचाना ही नहीं, पहचानती भी कैसे उसकी तब्दीली की तो सपने में भी कल्पना नहीं कर सकती थी मैं, वैसे भी कल्पना करने की जरूरत ही नहीं थी. उसे तो तभी मैं अपनी स्मृति की कन्दर... Read more