बाहर से छन कर आती हुई धूप में एकाएक वह प्रकट हुई. बाएँ हाथ से घुटने को सहारा देते हुये और दाहिने हाथ से दरवाजा थामते हुए खुद को. मैंने उस अनजान वृद्धा को आते देखकर एक नजर गमी में बैठी दीदी को देखा और एक नजर अपने भांजे को. जीजाजी को गुजरे आज तीसरा दिन था. आज तो भेंट का वार भी नहीं था. जाहिर है, वृद्धा कोई निकट की संबंधी थी.
(Story of an Old Women)
दरवाजा पार कर वह लगभग चौपाया होकर किसी तरह दीदी के पास जा सकी. दीदी ने झट से एक कुर्सी खींच कर अपने पास उन्हें बिठाया.
“खोरि फुटि गै, आग हाल्नि . खोरि फुटि गै.” कहते हुये वह बैठ गई.
“चेली, अब तेरे को ही संभालना है. वो तो चला गया. खोरि फुटि गै. औरत को ही संभालना ठहरा.”
दीदी कुछ नहीं बोली.
मैंने गौर से वृद्धा को देखा. चेहरे की झुर्रियों में गोया हर बरस ने एक एक लकीर खींच रखी थी. भारी शीशे वाली ऐनक सिर में पीछे एक सफ़ेद धागे से बंधी थी, सफ़ेद बालों की चोटी के ठीक ऊपर.
“आदमी जाता है तो कुछ आगा पीछा सोचकर थोड़े ही जाता है. बस यूं ही चला जाता है. ” बुढ़िया ने गहरी सांस खींची तो उसे खांसी चढ़ आई. धोती का पल्लू सिर पर रखते हुए वह बोली, “ खोरि फुटि गै, यो खांसी लै…”
(Story of an Old Women)
थोड़ी देर बाद वृद्धा संयत हुई. आँखों के किनारों से पानी की लकीर निकल रही थी, आँखें भी नम हो गई थीं.
एक नजर क्रिया में बैठे मेरे भांजे पर डालकर आँसू पोंछते हुये उसने कहा, “खोरि फुटि गै, हिम्मत रखना चेला. कम से कम, तुम्हारा बापू तुम्हारा ब्याह तो करा गया. मेरा तो जब गया तो मन्नू बस चार बरस का था और कमली गोद में थी.”
कोई कुछ नहीं बोला. दीदी ने सहानभूति में सिर हिलाया.
“तुम्हें आखिरी दर्शन तो हो गए थे न बापू के?” उसने भांजे से प्रश्न तो किया पर उसमें उत्तर की अपेक्षा नहीं थी.
(Story of an Old Women)
“खोरि फुटि गै. मेरे को तो मेरे आदमी के आखिरी दर्शन भी नसीब नहीं हुए . घास काटने गई थी सुबह-सुबह. दोपहर बाद जब लौटी तो सास ने बताया. मैं जब पागल सी बदहवास होकर घाट की ओर दौड़ी तो, खोरि फुटि गै, सास ने पकड़ लिया और कहा – अब जाकर क्या फायदा, अब तो उसे फूँक कर लोग वापस भी आ गए हैं.”
वृद्धा की आँखों से आंसुओं की झड़ी सी लग गई. पचपन बरस पुरानी टीस फिर हरी हो गई थी.
“ज़मानों राणको तस्सो भय. खोरि फुटि गै, पोस्टमैन भय. यहाँ वहाँ जाना ठहरा. खाना पीना भी टैम बेटैम ही ठहरा. किनारे किनारे जा रहे थे पतली पगडंडी पर कि वहीं गिर पड़े. खूब पेट में दर्द हो रहा ठहरा. मरोड़ ऐसी उठने वाली हुई कि गंगा में क्या लहरें उठती होंगी. खोरि फुटि गै. बहुत देर तक वैसे ही पड़े रहे. सुनसान रास्ता ठहरा. बहुत देर बाद खच्चर वाला नरसिंघ अपने मजदूरों के साथ वहाँ से गुजरा तो उसके एक कुली की नजर उन पर पड़ी.
(Story of an Old Women)
“हो सैब, कोई आदमी या जानवर रास्ते से थोड़ा नीचे गिरा है और लटपट हो रहा है. देखो तो”.
नरसिंघ ने पास जाकर देखा. इन्हे वह पहचानता नहीं था. पर आदमी भला ठहरा. उसने इनको एक खच्चर पर लाद लिया और बाज़ार ले आया. मेरे जेठ की चाय की दुकान ठहरी बाज़ार में. भीड़ देखकर वह भी दौड़ कर आ गए.
“अरे रामू को क्या हो गया?” खोरि फुटि गै, ऐसा कहकर उन्होने तुरंत इनको मायावती अस्पताल ले जाने की तैयारी की.
उन दिनों साधन भी तो नहीं ठहरे. खोरि फुटि गै. जल्दी जल्दी एक डोली का इंतजाम करके, पैदल ही लगे सटासट मायावती को.
पर विपत्ति आनी थी सो आई. गाड़ पहुँचते पहुँचते ही प्राण निकल गए.
(Story of an Old Women)
घर खबर हुई. खोरि फुटि गै, आग हाल्नि. सासू थी घर पर. नानतिन अस्याना भय. जेठ जी ने आस पड़ोस वालों के साथ मिलकर क्रियाकर्म कर दिया. मुझे तो उनके दर्शन भी नसीब नहीं हुये.”
बहुत देर बाद जब बुढ़िया वापस गई तब मैंने दीदी से पूछा कि वह कौन थीं.
“अरे, तूने पहचाना नहीं? मन्नू दा की ईज़ा हैं.”
वृद्धा की पहचान अब स्पष्ट हुई. विधाता के क्रूर लेख पर उस विधवा युवती की जिजीविषा और जीवन बदलकर कर्म की नई और सुनहरी इबारत लिखने की कहानी. मन्नू दा खूब पढ़ लिखकर एक प्राध्यापक बने और कमली एक डॉक्टर.
काकी ने यह सब किया था अपने दम पर, अपने अनपढ़ होने के बावजूद.
मुझे काकी की कही पंक्ति याद आई , “आदमी जाता है तो कुछ आगा पीछा सोचकर थोड़े ही जाता है. बस यूं ही चला जाता है. ”
टीस रह जाती है.
(Story of an Old Women)
झूलाघाट में पले-बड़े युगल जोशी वर्तमान में स्वच्छ भारत मिशन के निदेशक हैं. योग, इतिहास और मिथकों में विशेष रुचि रखने वाले युगल जोशी ने अब तक पाँच पुस्तकें लिखी हैं. उनकी किताब सिंगापुर वॉटर स्टोरी का अनुवाद चीनी, जापानी, मंगोलियन और हिंदी भाषा में हो चुका है. युगल की अन्य किताबें हैं, क्रियेटिंग शेयर्ड वैल्यूस, राम: द सोल ओफ़ टाइम, विमेन वॉरीअर्ज़ इन इंडीयन हिस्ट्री और बूंस एंड कर्सेस: लेजेंड्स ओफ़ द माईथोलोजिकल मदर हैं.
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