अप्रतिम छियालेख 3350 मीटर की ऊंचाई पर हैं. चारों ओर बुग्याली फूल जैसे खुश होकर झूम रहे थे. मन तो हो रहा था की यहीं अपने तंबू तान लिए जाएं, लेकिन आगे गर्ब्यांग में हीरा को आज पहुंचने का सन्देश भेज दिया था. बेहद खूबसूरत छियालेख बुग्याल को ‘रं’ समाज के लोग ‘छयेतो’ कहते हैं. छियालेख से ही इनर लाइन शुरू होती है. आईटीबीपी की चौकी पर हमने परमिट दिखाया और अपनी आमद दर्ज कराई. कुछ पल वहीं घूमते हुए व्यासघाटी के विस्तार को निहारते रहे. सामने गंगोत्री गर्ब्याल का मायका गर्ब्यांग गांव दिखाई दे रहा था. जो साठ के दशक से धंसता चला जा रहा है. (Sin La Pass Trek 7)
नाबी के ग्रामीण अब तक हमारे साथ हिलमिल गए थे. उनसे पता चला कि सामने व्यास ऋषि का मंदिर है और उधर बरमदेव का. छियालेख से गर्ब्यांग नजदीक लग रहा था. आगे का रास्ता भी अब समतल और राहत देने वाला था. गोपालदा ने बताया कि इसी चाल से चलते रहे तो गर्ब्यांग पहुंचने में घंटेभर से ज्यादा समय नहीं लगेगा.
आगे एक जगह बुग्याली मैदान में सुस्ताने को बैठे तो गोपालदा ने छियालेख का एक मजेदार किस्सा सुनाया. उनकी रागभाग के मुताबिक़ किसी जमाने में कोई संत-महात्मा व्यासघाटी में यात्रा कर रहे थे तो छियालेख पहुंचने तक अंधेरा घिर गया. उन्होंने वहीं रुकने का मन बना लिया. रुक तो गए लेकिन संत के पास खाने को कुछ था नहीं, तो उन्होंने घुम फिर कर किसी तरह एक चिड़िया को ढेर कर दिया. सूखी लकड़ियां बटोरकर चूल्हा बनाया और आग जलाई. अपने पिटारे से बर्तन निकाला और पास में अय्यामरती गधेरे से पानी लाए और बर्तन में चिड़िया को पकाने के लिए डाल दिया.
पानी गर्म होने लगा तो उन्होंने एक पेड़ की टहनी की करछी बनाकर बर्तन में चलाना शुरू किया ही था चिड़िया फुर्र हो गई. यह चमत्कार देखकर संत की भूख मर गई. उन्हें समझ में आ गया कि इस करछी रूपी टहनी में संजीवनी शक्ति है. इस घटना का जिक्र उन्होंने किसी और से किया. घीरे-धीरे यह बात पूरी घाटी में फैल गई. जिसने सुना उसने छियालेख के बुग्याल की ओर दौड़ लगा दी. हर कोई मृत्यु पर विजय पाने के लिए लालायित था. ऊपर छियालेख से जब संजीवनी बूटी ने घाटियों से ऊपर चढ़ रहे इंसानी टिड्डीदल को देखा तो उसने भी अपना बोरिया-बिस्तर समेटा और नेपाल के छांगरू गांव की चोटी में जाकर छुप गयी. (Sin La Pass Trek 7)
गोपालदाने यह कहानी इतने मजेदार ढंग से सुनाई कि उनसे और भी किस्से सुनने का मन हो रहा था. लेकिन उन्हें आज गर्ब्यांग से आगे पहुंचना था. गोपालदा बच्चों की तरह खुश होकर गले मिले और कुलांचे भरते हुए आगे निकल गए.
हमने भी धीरे-धीरे गर्ब्यांग की ओर कदम बढ़ाए. एक जगह समतल बुग्याल के किनारे ऊंचे चट्टानों की बाखली दिखाई दी. नजदीक पहुंचे तो उनमें आईटीबीपी ने कुछ नंबर लिखे थे. ये चट्टानें उन हिमवीरों को चढ़ने और उतरने की ट्रेनिंग देने का एक जरूरी हिस्सा थीं ताकि दुश्मन के आने पर वे हर तरह की आपदाओं का सामना कर सकें.
आगे का रास्ता अब सर्पाकार ढलान लिए हुए था. खेत दिखने लगे तो गांव ने अपने होने का एहसास करा दिया. आगे दोराहे पर एक बुजुर्ग से रास्ता पूछा कि यहां पुलिस पोस्ट कहां है तो उन्होंने बाएं रास्ते की ओर इशारा कर दिया. पतले से रास्ते से आगे बढ़े तो अचानक सामने मित्र हीरा परिहार प्रकट हो गया. वह यहां कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पुलिस ड्यूटी में तैनात था. मेरे पहले हिमालयी ट्रैक का साथी हीरा एक अच्छा पर्वतारोही रहा है और पर्वतों से प्रेम के चलते अभी वो एसडीआरएफ में है.
गर्ब्यांग में उनकी पुलिस चौकी कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान ही खुलती है, जो गांव के एक मकान में वर्षों से चली आ रही थी. यह चौकी कम गांव में उनका आशियाना ज्यादा लग रहा था. बाहर से यह मकान दो मंजिला जैसा लगा, लेकिन जब अंदर को गए तो पता चला कि यह तीन मंजिला है. बाहर आकर एक बार फिर से उसे ध्यान से देखा तो देखते ही रह गया. क्या खूबसूरत नक्काशीनुमा मकान था! (Sin La Pass Trek 7)
सांझ ढल रही थी और थकान भी थी तो गांव में घूमने का इरादा अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया. नीचे एक छोटीसी क्यारी में ढेर सारी पत्तागोभी लहलहा रही थी. हीरा ने आज इसी हिमालयी सब्जी को रसोई में पहुंचा दिया. दोमंजिले के चाख में हमने मैट्रस बिछा अपना बिस्तर बना लिया. घंटेभर बाद खाना बना तो उच्च हिमालयी क्षेत्र की पत्तागोभी का स्वाद भी अमृत सामान लगा. चूल्हे में बन रही गर्मागर्म रोटियां पलक झपकते ही हमारे गले से नीचे उतर रही थीं.
सोने से पहले वायरलैस में संदेश आया कि हमारे मित्र पंकज और संजय धारचूला पहुंच गए हैं. कल वे आगे की यात्रा पर चलेंगे, तो मन खुश हो गया कि चलो अब ये पांचजनों की यह यात्रा सचमुच रोमांचक होगी. (Sin La Pass Trek 7)
(जारी…)
– बागेश्वर से केशव भट्ट
पिछली क़िस्त: अनगितन सीढ़ियों वाले इस घुमावदार खड़े रास्ते के बाद छियालेख का मखमली बुग्याल
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बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए अपने लिए एक ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं.
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2 Comments
Saurav gusain
पोस्ट के साथ साथ अगर मार्ग का मार्गदर्शन भी का देते तो सोने पे सुहागा हो जाता।
मतलब यही की कहां से रास्ता सुरु होगा । परमिट वगैरह कहां मिलेगा।
Lovedevbhoomi
Kabileytarrif post