चंपावत जिले के दूरस्थ क्षेत्र श्यामलाताल में आज से लगभग 100 साल पहले (1915 में ) स्वामी विवेकानंद के प्रमुख शिष्य स्वामी विरजानन्द द्वारा स्थापित ‘स्वामी विवेकानंद आश्रम’ आज भी रामकृष्ण मिशन संस्था द्वारा संचालित समाजसेवा और आध्यात्मिकता का एक प्रमुख केंद्र है. टनकपुर से लगभग 22 किलोमीटर दूर स्थित इस रमणीक स्थान पर एक सुंदर ताल ( झील ) है, जिसका जल स्थानीय मिट्टी के रंग और पहाड़ों की छाया पड़ने के के कारण श्यामल ( काले ) रंग का प्रतीत होता है. इसीलिए यह ताल ‘श्यामलाताल’ के नाम से प्रसिद्ध है.
![Shyamlatal Lake Tanakpur Champawat](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2019/09/20190915_132105.jpg)
इसी ताल से थोड़ा सा ऊपर पहाड़ी के शीर्ष पर ‘विवेकानंद आश्रम’ बना है. यहां से हिमालय की चोटियों के दर्शन भी होते हैं. श्यामलाताल आश्रम टनकपुर से पिथौरागढ़ जाने वाली सड़क पर स्थित सूखीढांग नामक बाजार से दायीं ओर 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस जगह पर ऑपरेशन थिएटर की सुविधा से युक्त एक निःशुल्क चिकित्सालय, आराधना स्थल, पुस्तकालय संचालित होता है.
आश्रम के चिकित्सालय में रिमोट मोनिटरिंग के माध्यम से देशभर के विशेषज्ञ डॉक्टरों से परामर्श लेकर इलाज लेने की सुविधा भी उपलब्ध है. समय समय पर यहां देश भर से आने वाले साधकों के लिए आध्यात्मिक शिविर संचालित होते हैं. निकट के गांवों से आने वाले लगभग 80 बच्चों को यहां स्कूली शिक्षा के बाद व्यक्तित्व विकास और शिक्षणेत्तर कार्यकलापों से सम्बंधित प्रशिक्षण दिया जाता है.
मानवजाति की सेवा के संकल्प के साथ स्वामी विवेकानंद ने सन 1897 में रामकृष्ण मिशन एसोसिएशन की स्थापना की और विश्वभर में आध्यात्मिक चेतना व सर्वधर्म समन्वय की भावना को आगे बढ़ाने का कार्य शुरू किया. इसी साल उनके परम शिष्य स्वामी विरजानंद जी महाराज ने स्वामी विवेकानंद से सन्यास दीक्षा ग्रहण की.
![Shyamlatal Lake Tanakpur Champawat](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2019/09/20190915_132204.jpg)
सन 1899 ईसवी में स्वामी विरजानन्द ‘प्रबुद्ध भारत’ मासिक पत्रिका के प्रकाशन में स्वामी स्वरूपानंद के सहायक के रूप में लोहाघाट के नजदीक अद्वैत आश्रम मायावती में नियुक्त हुए. चंपावत जिले में लोहाघाट के नजदीक अद्वैत आश्रम, मायावती की स्थापना स्वामी विवेकानंद के ब्रिटिश शिष्य सेवियर और उनकी पत्नी श्रीमती सेवियर ने मिलकर की थी. स्वामी विवेकानंद ने स्वयं मायावती आश्रम में कुछ दिनों प्रवास भी किया.
रामकृष्ण मिशन की प्रमुख पत्रिका ‘प्रबुद्ध भारत’ का प्रकाशन मायावती आश्रम की प्रेस से ही होता था. सन 1906 से 1914 के बीच स्वामी विरजानंद मायावती आश्रम के अध्यक्ष रहे और उन्होंने यहीं रहकर पूरी ऊर्जा और समर्पण के साथ स्वामी विवेकानंद के संपूर्ण साहित्य को प्रकाशित किया. इस महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के बाद उन्होंने एकांतवास की इच्छा से पहाड़ों में ही अपने लिए एक अन्य उपयुक्त स्थान की खोज शुरू की. उनकी खोज श्यामलाताल के पास जाकर पूरी हुई.
इस जगह से सुंदर प्राकृतिक ताल और हिमालय के बर्फ भरे शिखरों के दर्शन होते हैं. एकांत साधना की खोज में भटक रहे एक संन्यासी को इससे अधिक प्रेरणादायी स्थान भला और कहाँ मिलता. स्वामी विवेकानंद की अनन्य सहयोगी श्रीमती सेवियर की सहमति और उन्हीं से प्राप्त आर्थिक सहायता से नवम्बर 1914 में स्थानीय प्रधान हर सिंह के जर्जर मकान और उससे लगी थोड़ी सी जमीन को स्वामी विरजानन्द ने 700 रुपये में खरीद लिया.
निर्माणकार्य पूरा होने के बाद माता सेवियर की उपस्थिति में 21 मई 1915 को विधिवत पूजा-हवन के साथ इस आश्रम की शुरुआत हुई और आश्रम का नामकरण किया गया – विवेकानन्द आश्रम. तब टनकपुर से यहां तक पैदल मार्ग था, कोई सड़क नहीं थी. उस समय यह क्षेत्र बहुत ही दुर्गम था, 110 किमी की दूरी में सबसे नजदीकी बाजार था पीलीभीत.
![Shyamlatal Lake Tanakpur Champawat](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2019/09/20190915_131307.jpg)
आश्रम का कार्य पूरा होने के बाद इस दुर्गम इलाके में रहने वाले स्थानीय लोग सामान्य दवाई व अन्य मदद लेने के लिए स्वामी विरजानन्द जी के पास आने लगे. इन जरूरतमंद स्थानीय लोगों की सेवा करने के उद्देश्य से यहां पर ‘रामकृष्ण सेवाश्रम’ के नाम से एक चिकित्सालय का निर्माण करवाया गया और चिकित्सक की नियुक्ति भी हुई.
सैकड़ों किमी तक चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध न होने के कारण यहां दूर-दूर से मरीज अपना इलाज कराने आने लगे. रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सन 1930 में कुछ और जमीन लेकर चिकित्सालय के लिए एक दुमंजिला भवन बनवाया गया. पिछले 100 वर्षों से इस चिकित्सालय में क्षेत्र के लोगों का निःशुल्क इलाज हो रहा है. स्वामी विरजानन्द यहां आए तो थे एकांत में रहकर स्वाध्याय और ध्यान करने के उद्देश्य से, लेकिन पहाड़ के साधनहीन लोगों के कष्टों के निवारण हेतु वह स्थानीय लोगों के साथ आत्मीयता से जुड़ते चले गए.
स्वामी विरजानन्द को बागवानी में विशेष रुचि थी. उन्होंने पूरे इलाके में सेब, अखरोट, लीची, आम, अमरूद आदि फलों के बगीचे लगवाए और स्थानीय लोगों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने का रास्ता दिखाया. सब्जी तथा फल उगाने के बाद आश्रम के साधकों द्वारा यहां के ग्रामीणों को अचार व जूस आदि बनाने के लिए प्रोत्साहित किया.
आज भी इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में अदरक, नींबू, हल्दी, मूली, अरबी व अन्य सब्जियां पैदा की जाती हैं. छोटे-छोटे कुटीर उद्योगों द्वारा बनाए गए अचार, मुरब्बा-जूस पास के चल्थी तथा सूखीढांग बाजार में बेचे जाते हैं और बाहर के शहरों तक भी पहुंचाए जाते हैं.
श्यामलाताल के आसपास के गांव बहुत सुंदर हैं. खूबसूरत घाटी में बसे छोटे-छोटे घर और हरे-भरे खेत पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. प्राकृतिक रूप से समृद्ध इस इलाके में विलेज टूरिज्म और होम-स्टे की अपार संभावनाएं हैं. स्थानीय लोगों को पर्यटन सम्बंधित प्रशिक्षण देकर रोजगार सृजन किया जा सकता है.
![Shyamlatal Lake Tanakpur Champawat](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2019/09/20190915_131438.jpg)
वर्तमान समय में श्यामलाताल के नजदीक कुमाऊं मंडल विकास निगम का विश्राम गृह बना हुआ है, लेकिन ताल के आसपास स्वच्छता का अभाव नजर आता है. यहां पहुंचने पर सबसे पहले इस सुंदर स्थान की बदहाली की निशानी के तौर पर ताल टूटी बोट्स तैरती हुई दिखती हैं. अभी तक राज्य सरकार का ध्यान इस ऐतिहासिक महत्व के पर्यटक स्थल पर नहीं गया है. उचित प्रचार-प्रसार, अच्छी सड़क और आधारभूत सुविधाओं की समुचित व्यवस्था की जाए तो श्यामलाताल बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल होगा.
-हेम पन्त
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1 Comments
Jitendra Kumar verma / alakh kant mittal
Wonderful place . I wisted 2 yr back. Peaceful environment and sound of bird always remind me those days.
Dr jitendra verma.