लगभग चौबीस सौ साल पहले जन्मे महान दार्शनिक अरस्तु द्वारा शासन सम्बन्धी व्यवस्था पर प्रतिपादित अपने तीन वर्गीकरण में से जनतांत्रिक शासन ही आज भी लोकप्रिय शासन माना जाता है. अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की संक्षिप्त व सटीक व्याख्या की है; जनता का जनता द्वारा जनता के लिए किया जाने वाला शासन ही लोकतंत्र है. (Sherda Anpadh Narendra Singh Negi)
लोकतंत्र में जिस प्रकार अपने प्रतिनिधि चुनने की स्वतंत्रता है ठीक वैसे ही जनप्रतिनिधियों पर टिप्पणी करने का अधिकार ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के रूप में हमारा संविधान देता है. अभिव्यक्त करने की भी अपनी शैली है, अपना अन्दाज है, जो सबका जुदा होता है. जनप्रतिनिधि पर टिप्पणी करने में एक साधारण व्यक्ति और एक कवि की भाषा शैली का अन्तर कुमाऊं के सुप्रसिद्ध कवि शेरदा अनपढ़ और गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी की अधोलिखित रचनाओं में देखा जा सकता है.
तुम समाजाक इज्जतदार, हम भेड़-गंवार
– शेरदा अनपढ़ –
तुम सुख में लोटी रया, हम दुःख में पोती रया !
तुम स्वर्ग, हम नरक, धरती में, धरती आसमानौ फरक !
तुमरि थाइन सुनुक र्वट, हमरि थाइन ट्वाटे-ट्वट !
तुम ढडूवे चार खुश, हम जिबाई भितेर मुस !
तुम तड़क भड़क में, हम बीच सड़क में !
तुमार गाउन घ्युंकि तौहाड़, हमार गाउन आंसुकि तौहाड़ !
तुम बेमानिक र्वट खानयाँ, हम इमानांक ज्वात खानयाँ !
तुम पेट फूलूंण में लागा, हम पेट लुकुंण में लागाँ !
तुम समाजाक इज्जतदार, हम समाजाक भेड़-गंवार !
तुम मरी लै ज्यूने भया, हम ज्यूने लै मरिये रयाँ !
तुम मुलुक के मारण में छा, हम मुलुक पर मरण में छा !
तुमुल मौक पा सुनुक महल बणैं दीं, हमुल मौक पा गरधन चड़ै दीं !
लोग कुनी एक्कै मैक च्याल छाँ, तुम और हम,
अरे! हम भारत मैक छा, सो साओ ! तुम कै छा !
गरीब दाता मातबर मंगत्या
– नरेन्द्र सिंह नेगी
तुम लोणधरा ह्वैल्या,
पर हम गोर-बखरा नि छां.
तुम गुड़ ह्वै सकदां,
पर, हम माखा नि छा.
तुम देखि हमारी लाळ नि चूण,
तुमारि पूंछ पकड़ि हमुन पार नि हूण.
हम यै छाला तुम वै छाला.
तुमारी आग मांगणू
गाड तरि हम नि ऐ सकदा.
तुमारा बावन बिन्जन, छत्तीस परकार
तुम खुणी, हम नि खै सकदा.
हमारी कोदै रोट्टी, कण्डाळ्यू साग
हमारी गुरबत हमारू भाग.
तुम तैं भोट छैणी छ, त आवा
हमारी देळ्यूं मा खड़ा ह्वा
हत्त पसारा ! …मांगा !
भगवानै किरपा सि हमुमां कुछ नी, पर
तुमारी किरपा सि दाता बण्यां छां. (Sherda Anpadh Narendra Singh Negi)
देहरादून में रहने वाले शूरवीर रावत मूल रूप से प्रतापनगर, टिहरी गढ़वाल के हैं. शूरवीर की आधा दर्जन से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगातार छपते रहते हैं.
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