कुमाऊँ के उच्च हिमालयी क्षेत्रों के आसपास के जंगलों में देर शाम और सुबह एक बच्चे के रोने की आवाज आती है जिसे सुनकर लगता है कि या तो वह आदमी का बच्चा है या बिल्ली का. आज भी गाँव वाले कहते हैं कि वहां पर कभी अमुक बच्चे को दफनाया गया था और उसकी आत्मा विलाप कर रही है. (Satyr Tragopan Munsyari Uttarakhand)
अगर आपको पता चले कि वह किसी बच्चे की आवाज नहीं एक चिड़िया की आवाज है और वह भी एक ऐसी चिड़िया की जो बेहद खूबसूरत होती है तो आप क्या कहेंगे? ज़रा आप भी सुनिए:
जी हाँ, यह डरावनी आवाज बहुत ही सुन्दर फैजेंट ‘सेटर ट्रेगोपन’ की है जिसे स्थानीय भाषा में लौंग कहा जाता है. यह पक्षी मुनस्यारी के खलिया टॉप, गोल्मा और बौना के जंगलों में देखा जा सकता है. नर पक्षी बहुत ही चटख लाल-भूरे रंग का होता है जबकि मादा गहरे भूरे रंग की. (Satyr Tragopan Munsyari Uttarakhand)
सामान्यतः सेटर ट्रेगोपन गर्मियों में 2200 से 4000 मीटर तक की ऊंचाई पर रहता है जबकि सर्दियों में यह 1800 मीटर तक की ऊंचाई पर देखा जा सकता है. बीज, ताजी पत्तियाँ, मौस और कीड़े इसका मुख्य आहार होते हैं. बुरांश खिलने के मौसम में इन्हें बुरांश के फूल खाते हुए भी देखा जाता है.
नर पक्षी मेटिंग सीजन में किसी चट्टान के पीछे छिप जाता है और मादा का इन्तजार करता है. जैसे ही नर को मादा दिखाई देती है, वह अपनी नीली-लाल रंगत दिखाकर मादा को रिझाने की कोशिश करता है. इनका ब्रीडिंग टाइम अप्रैल से जून तक रहता है. इनके सामान्यतया 3 से 5 अंडे होते हैं जो 28 दिनों में चूजों का रूप ग्रहण कर लेते हैं.
खलिया टॉप के जंगलों में हमारी संस्था ‘मोनाल’ द्वारा इनकी गणना का काम तो चल ही रहा है, हम इन पर निगाह भी रखे रहते हैं. इनकी संख्या पिछले तीन सालों में बढ़ी है और खलिया के जंगलों में 10 से 12 तक सेटर ट्रेगोपन देखे जा सकते हैं.
शिकार रोकने और युवाओं में वन्यजीवन के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से हमारी संस्था ‘मोनाल’ बच्चों को बर्ड-वॉचिंग का प्रशिक्षण दे रही है और इसके चलते कुछ लोग मुनस्यारी में रोजगार भी हासिल कर पा रहे हैं.
देखिये इस दुर्लभ चिड़िया के कुछ शानदार फोटो सुरेन्द्र पवार के कैमरे से:
बर्डवॉचिंग, फोटोग्राफी और ट्रेकिंग में गहरी दिलचस्पी रखने वाले सुरेन्द्र पवार मुनस्यारी में रहते हैं. हम शीघ्र ही उनके अनेक फोटो यहाँ प्रकाशित करेंगे और उनका विस्तृत परिचय भी आपको देंगे.
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