12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने साबरमती से डांडी यात्रा प्रारंभ कर दी. डांडी यात्रा में उत्तराखंड से तीन सत्याग्रही अल्मोड़े के ज्योतिराम काण्डपाल, भैरव दत्त जोशी और देहरादून के खडग बहादुर सिंह शामिल हुये. 6 अप्रैल को महात्मा गांधी ने एक मुठ्ठी नमक बनाकर सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की.
देहरादून में सत्याग्रह कमेटी ने खाराखेत (बिंदाल किनारे) में नमक सत्याग्रह किया. खराखेत में नमक बनाकर फालतू लाईन में सत्याग्रहियों के परिचय के साथ नमक बेचा जाता था. 20 अप्रैल तक स्वयं सेवकों की संख्या 150 से ज्यादा हो गयी थी. अल्मोड़ा में साल्ट रामगंगा के किनारे भगीरथ पांडे ने नमक कानून तोड़ा. इस बीच नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस की गिरफ्तारी के बाद नैनीताल में विराट जनसभा शुरू हुई और झंडा सत्याग्रह शुरू हुआ.
गोविन्द वल्लभ पन्त, भगीरथ पांडे, इंद्र सिंह नयाल, देवकीनंदन पांडे, हर्षदेव ओली और परसी साह जैसे कार्यकर्ताओं ने नैनीताल में तल्लीताल डॉठ पर झंडा सत्याग्रह शुरू किया. कृष्णापुर, तल्लीताल में जयदेव सूरी के मकान में जिले या जिले बाहर से आये कार्यकर्ता ठहरते थे. माल रोड पर सरकार ने एक साथ पांच से ज्यादा लोगों के जाने पर रोक लगा दी.
1 मई 1930 को तय हुआ कि अगली सुबह 6 बजे से गोविन्द वल्लभ पन्त सत्याग्रहियों का एक जत्था लेकर गिरफ्तार होंगे. अगले दिन डॉठ पर ही सत्याग्रहियों को रोक दिया गया. प्रशासन सत्याग्रहियों को माल रोड पर जाना नहीं देना चाहता था और सत्याग्रही झंडा लेकर सिर्फ मालरोड से होकर मल्लीताल जाना चाहते थे. पूरी रात सत्याग्रही डंटे अगले दिन 3 मई को उन्हें लारी से लालकुंआ के जंगल छोड़ दिया गया. मोटर वालों की सहायता से नवयुवकों ने सत्याग्रहियों को वापस ज्योलीकोट पहुंचाया जहाँ से वे फिर डॉठ पर आ गये.
4 मई को सत्याग्रह के जत्थे को वर्तमान धर्मशाला (तब यहाँ गाड़ी पड़ाव था) के पास रोक दिया गया. 5 और 6 मई को वहीँ धरना हुआ. इसी बीच 7 मई को महात्मा गांधी की गिरफ्तारी की सूचना मिलते ही नैनीताल में हड़ताल हो गयी. 2000 युवकों ने मालरोड पर अंग्रेजों से टक्कर ली. इसके बाद से हर दिन शाम के समय अंग्रेजी सामान की होली जलाते हुये अंग्रेजों का विरोध हुआ.
21 मई को गोविन्द वल्लभ पन्त ने पुनः सत्याग्रह में भाग लेने का निर्णय किया. उनके साथ इंद्र सिंह नयाल और हर्षदेव ओली थे, पुलिस ने पहले तल्लीताल में उनसे झंडा छिनने की कोशिश की और झंडा नहीं देने पर लारी से उन्हें दूर छोड़ दिया गया. जत्था माला रोड की ओर चल पड़ा. डॉठ से थोड़ी दूर पर पुलिस ने झंडा छिन लिया इसके बाद सत्याग्रहियों का जत्था बिना झंडे के ही आगे बढ़ने लगा. इस दिन कुछ सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी हुई हालांकि गोविन्द वल्लभ पन्त को गिरफ्तार नहीं किया गया था.
23 मई को सरोजनी नायडू की गिरफ्तारी पर नैनीताल में फिर हड़ताल हुई. 25 मई को नैनीताल में नमक बनाने की घोषणा हुई लेकिन पुलिस ने गोविन्द् वल्लभ पन्त को सत्याग्रह शिविर से ही गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद पूरे नगर में हड़ताल हो गई. पन्त के बाद इंद्र सिंह नयाल ने नेतृत्व संभाला. उनकी गिरफ्तारी के बाद भी नमक बनाने और बेचने का काम निरंतर चलता रहा. कुंतीदेवी और भागुली देवी ने नैनीताल में नमक सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
शेखर पाठक की पुस्तक ‘ सफरोशी की तमन्ना ‘ के आधार पर
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