नहर देवी में एक छोटे से बाड़े में पैतीस चालीस लोगों के बीच दब कर जैसे-तैसे रात बिताने के बाद अगले दिन भी मौसम ने कोई राहत नहीं दी. कुछ लोग जो नीचे को जाने वाले थे वह बोगड्यार के लिए निकल गए और उनके जाते ही जगह के लिए लड़ाई होने लगी. हमने अपने बैग किनारे रखे और बरसाती डालकर बाहर निकल आये. यह एक ओट में छिपी सुरक्षित जगह है लेकिन यहाँ से नीचे गोरी में बहुत तेज ढाल है. हम अपने होटल से पीछे एक और मैदान की और गए तो पता चला यहाँ पर भी टेंट डैल कुछ लोग रुके थे.
(Rilkot Village Munsiyari Pithoragarh Uttarakhand)
राजू टोलिया के साथ एक एक्सपिडिशन गनघर की ओर जा रहा था. इस दल में अस्सी साल के एक बुजुर्ग, उनकी बहत्तर साल की पाठी और बावन साल की बेटी थी जो ठीक से चल नहीं पाती थी. इनके साथ दस बारह पोर्टर भी थे जिनको राजू भाई संचालित कर रहे थे. उनसे मेरा पहले का परिचय था. उन्होंने ही बताया कि इस बारिश में थोड़ी आगे पर रास्ता टूटा है और नाले में एक खच्चर और जवान बह गए हैं. वहां नंदा देवी में भी एक इटैलियन पर्वतारोही के लापता होने की खबर आ रही थी. मौसम सही होने पर उसे भी खोजा जाना था.
ऐसे में हमारे लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. वापस होटल में आये और चाय पानी पीकर अन्दर बैठ गए. जो मजदूर रात को जगह के लिए लड़ रहे थे अभी मजे से ताश खेल रहे थे और हसीं ठहाकों में सारी परेशानी भूले हुए थे.
दिन तक यूँ ही समय काट हम भात खा कर निपटे तो यूँ ही राजू भाई के कैम्प की और निकल लिए. बारिश कुछ कम हुई थी और राजू भाई कैम्प समेट कर रिलकोट के लिए निकल रहे थे. हम भी भागे-भागे आये और अपना सामान समेट उनके साथ निकल गए. थोड़ी ही दूरी पर वह खतरनाक नाला था जिसे पार करना संभव नहीं लग रहा था. ऊपर की पहाड़ी से भीषण शोर के साथ यह गोरी में गिर रहा था. कोई भी इसे पार करने की सोचता तो बहना तो तय था.
(Rilkot Village Munsiyari Pithoragarh Uttarakhand)
राजू भाई के साथ एक फुर्तीला लड़का कुछ ऊपर एक ऊंची चट्टान में चढ़ा और वहां से नाले के पार दूसरी चट्टान तक कूद गया. फिर क्या था रस्सी आर पार की गयी और उसे सहारी एक और आदमी पार हुआ. इस रस्सी को कसकर पकड़ दो लोग तेज बहाव के बीच पत्थरों में पैर जमाये खड़े हो गए. अब एक-एक कर सबको पार होना था.
अस्सी साल के उस विदेशी बुजुर्ग का परिवार भी पार कर दिया गया. हम भी पार तो हो ही गए लेकिन हमारे बैग और उसके भीतर स्लीपिंग बैग भीग गए. यहाँ से रिलकोट तक का सफ़र काफी लम्बा था और समय कम इसलिए हम तेज क़दमों से चलने लगे. राजू भाई का दल हमसे पीछे रह गया था और फ़कीर दा भी उनके साथ ही आ रहे थे.
रिलकोट से पहले हमको अँधेरा हो छुका था और एक और नाला हमारे रास्ते में था. नहरदेवी में तूफानी नाले को पार करने के बाद हमारे मन से पानी का डर काफी हद तक कम हो गया था और हमने रिलकोट वाले नाले को अकेले पार किया. हालाँकि वह बहुत बड़ा नहीं था. हम जांघों तक डूब कर चल रहे थे. लेकिन इसका बहाव बहुत तेज था और इसमें खूब सारा मालवा आ रहा था जो हमारे बूटों में भर गया.
नाला पार हुए तो रिलकोट की सपाट जमीन हमारे पैरों के नीचे थी. आज हमें ठिकाना भी मिल गया था. लेकिन उस धर्मशाला को देखना हम भूले नहीं. होटल वाले ने हमें ठिकाने में पहुंचाकर अपनी जगह बता दी और खाने की व्यवस्था के लिए चला गया. हमने झोले खोले तो सारे कपड़े भीगे थे. मेरा स्लीपिंग बैग पूरी तरह भीगा था और कमल दा का थोड़ा सा भीग कर बच गया था. आईटीबीपी की मेहरबानी से एक कम्बल मिला और थोड़ी गर्माहट हमने लकड़ी चोर कर जुटाई. लेकिन यह भी बहुत मजेदार किस्सा होने जा रहा था.
बहरहाल बारिश फिर से पड़ने लगी थी और हमने छांङ् की घूँट ली और पसर गए, स्लीपिंग बैग को खोलकर रजाई बना लिया और अन्दर से खुरदरा बर्मी कम्बल डाल लिया. नीचे भेड़ों की खालें थी और आँखों में नींद. लेकिन बाहर लोगों के झगड़ने की आवाजें आ रही थी. कुछ देर कान लगाकर सुना तो माजरा समझ में आ गया था. बाहर जाकर मार खाने का खतरा उठाने से हमने मुंह ढांप कर सोना बेहतर समझा. अगले दिन मौसम जाने क्या रंग दिखाए.
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पिथौरागढ़ में रहने वाले विनोद उप्रेती शिक्षा के पेशे से जुड़े हैं. फोटोग्राफी शौक रखने वाले विनोद ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों की अनेक यात्राएं की हैं और उनका गद्य बहुत सुन्दर है. विनोद को जानने वाले उनके आला दर्जे के सेन्स ऑफ़ ह्यूमर से वाकिफ हैं.
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