‘गिर्दा’ और हमारे सपनों का उत्तराखंड

गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौर के ऐसे जनकवि रहे कि जिनके जनगीतों ने आंदोलन में जान फूंक दी थी. गिर्दा सिर्फ जनकवि नहीं थे बल्कि एक शानदार वक्ता भी थे. लयबद्ध तरीके से गाए गए उनके जनगीत बरबस ही सबको अपनी ओर खींच ले जाते थे. चिपको आंदोलन, नशामुक्ति आंदोलन, उत्तराखंड राज्य आंदोलन, नदी बचाओ आंदोलन आदि में गिर्दा सक्रिय रूप से भागीदार रहे. चिपको आंदोलन के दौरान जब पहाड़ों में जंगलों को काटने और लकड़ियों की नीलामी की बात आई तो गिर्दा ने आह्वान किया:
(Remembering Girish Chandra Tiwari 2021)

आज हिमाल तुमन के धत्यूंछौ
जागौ-जागौ हो म्यरा लाल
नी करण दियौ हमरी निलामी
नी करण दियौ हमरो हलाल

उत्तराखंड राज्य आंदोलन तेज हुआ तो गिर्दा के गीत भी उसी तेजी से आंदोलन की आवाज बने. जहाँ भी प्रदर्शन या आंदोलन होते वहाँ गिर्दा के गीतों की गूंज सुनाई पड़ती. राज्य की परिकल्पना को लेकर गिर्दा ने गीत लिखा और गाया:

ततुक नी लगा उदेख
घुनन मुनई नि टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
जैं दिन कठुलि रात ब्यालि
पौ फाटला, कौ कड़ालौ
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
जै दिन चोर नी फलाल
कै कै जोर नी चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
जै दिन नान-ठुल नि रौलो
जै दिन त्योर-म्यारो नि होलो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
चाहे हम नि ल्यैं सकूँ
चाहे तुम नि ल्यै सकौ
मगर क्वे न क्वे तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में
वि दिन हम नि हुँलो लेकिन
हमलै वि दिनै हुँलो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
(Remembering Girish Chandra Tiwari 2021)

राज्य बनने के बाद जब साल 2008 में नदी बचाओ आंदोलन चला तो गिर्दा ने फिर उस आंदोलन को अपनी आवाज व शब्द दिये और लिखा:

“अजी वाह! क्या बात तुम्हारी
तुम तो पानी के व्योपारी
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी
बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी
सारा पानी चूस रहे हो
नदी-समन्दर लूट रहे हो
गंगा-यमुना की छाती पर
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो
उफ! तुम्हारी ये खुदगर्जी
चलेगी कब तक ये मनमर्जी
जिस दिन डोलगी ये धरती
सर से निकलेगी सब मस्ती
महल-चौबारे बह जायेंगे
खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूँद-बूँद को तरसोगे जब
बोल व्योपारी-तब क्या होगा?
नगद-उधारी-तब क्या होगा?
आज भले ही मौज उड़ा लो
नदियों को प्यासा तड़पा लो
गंगा को कीचड़ कर डालो
लेकिन डोलेगी जब धरती
बोल व्योपारी-तब क्या होगा?
वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी-तब क्या होगा?
योजनकारी-तब क्या होगा?
नगद-उधारी-तब क्या होगा?
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ
एक तरफ हो तुम
एक तरफ है प्यासी दुनियाँ
एक तरफ हो तुम”
(Remembering Girish Chandra Tiwari 2021)

गिर्दा की कविताओं में सिर्फ तात्कालिक मुद्दे नहीं थे बल्कि भविष्य के गर्त में छिपी तमाम दुश्वारियाँ भी शुमार थी. गिर्दा शायद भाँप गए थे कि अलग राज्य बन जाने के बाद राज्य में लूट-खसोट मचेगी और राजधानी के नाम पर गैरसैंण को लटकाया जाता रहेगा. राज्य बनने से कुछ ही समय पहले इस बात को जनकविता का मुद्दा बनाकर उन्होंने लिखा:

“कस होलो उत्तराखण्ड?
कां होली राजधानी?
राग-बागी यों आजि करला आपुणि मनमानी
यो बतौक खुली-खुलास गैरसैंण करुंलो
हम लड़ते रयां भुली, हम लड़ते रुंल
टेम्पुरेरी-परमानैन्टैकी बात यों करला
दून-नैनीताल कौला, आपुंण सुख देखला
गैरसैंण का कौल-करार पैली कर ल्हूयला
हम लड़ते रयां भुली, हम लड़ते रुंल
वां बै चुई घुमाल यनरी माफिया-सरताज
दून बै-नैनताल बै चलौल उनरै राज
फिरि पैली है बांकि उनरा फन्द में फंस जूंला
हम लड़ते रयां भुली, हम लड़ते रुंल
‘गैरसैणाक’ नाम पर फूं-फूं करनेर
हमरै कानि में चडि हमने घुत्ति देखूनेर
हमलै यनरि गद्दि-गुद्दि रघोड़ि यैं धरुला
हम लड़ते रयां भुली, हम लड़ते रुंल”
(Remembering Girish Chandra Tiwari 2021)

उत्तराखंड राज्य की कल्पना को हकीकत में तब्दील करने के लिए चले वर्षों के संघर्ष व आंदोलन को अपने गीतों के माध्यम से ऊर्जा देने वाले जनकवि गिर्दा 22 अगस्त 2010 को इस लोक से विदा हो गए. राज्य 20 साल से अधिक का हो गया लेकिन गिर्दा का एक-एक गीत आज भी उतना ही ज्वलंत है जितना उस समय था. गिर्दा के गीतों को एक बार फिर से घर-घर तक पहुँचाने की जरूरत आन पड़ी है. जिस राज्य में हम जी रहे हैं वह कहीं से भी किसी आंदोलनकारी के सपनों का राज्य नहीं लगता. राज्य निर्माण के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानियों व उनकी माँगों को हम भूलते जा रहे हैं और राज्य में मची लूट-खसोट-बर्बादी के मूक दर्शक बने हुए हैं.

राज्य की युवा पीढ़ी से अगर कोई पूछ ले कि गिरीश तिवारी गिर्दा को जानते हो तो शर्त के साथ कह सकता हूँ कुछ विरले ही होंगे जो गिर्दा और उनके जनगीतों से वाकिफ होंगे. भू-कानून को लेकर जिस तरह कुछ युवा सामने आए हैं उससे एक उम्मीद जरूर बंधती है लेकिन अपने राज्य व राज्य आंदोलनकारियों के सपने के उलट चल रहे उत्तराखंड को वास्तव में अगर पहाड़ोन्मुख, जनसरोकारी, पलायनविहीन, रोजगारयुक्त, शिक्षा-स्वास्थ्य युक्त बनाना है तो हमें गिर्दा जैसे आंदोलनकारियों को हर दिन पढ़ना व समझना होगा और उसी हिसाब से अपनी सरकारों से माँग करनी होगी. तब जाकर कहीं हमारे सपनों का उत्तराखंड धरातल पर नजर आएगा.
(Remembering Girish Chandra Tiwari 2021)

कमलेश जोशी

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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