गिर्दा के बारे में उचित ही कहा जाता है कि वो कविता करता नहीं जीता था. और जब कविता सुनाता था तो लगता था जैसे अंग-अंग से कविता फूट रही हो. भरपूर अवसरों के बावजूद गिर्दा ने अपनी सृजनशीलता को व्यवसाय नहीं बनने दिया. और इसी खासियत ने उसे नागार्जुन की कोटि का जनकवि बना दिया.
(GIrda Girish Chandra Tiwari)
मित्र लोग मजाक में कहा करते थे कि एक बीड़ी से आप गिर्दा से दोस्ती कर सकते हैं, दूध-जलेबी में एक दर्जन गीत-कविता सुन सकते हैं और एक पव्वे में तो उसका पूरा सृजन-संसार ही लूट सकते हैं. गिर्दा को कुछ सालों से शुगर हो गया था लेकिन वो आपकी प्लेट से, मजे से एक गुलाबजामुन यह कह कर उठा लेता था कि यार अगर शुगर नहीं होता तो चार खा लेता.
गिर्दा के साथ मेरी प्रत्यक्ष मुलाकातें गिनी-चुनी रही हैं. पर हर बार गिर्दा से मिलने के बाद लगता रहा कि बहुत कुछ भर गया है अंदर, ऊर्जा भी और रचनात्मकता भी. मिलने में वे मुलाकातें भी शामिल हैं जो टीवी या फिर पत्र-पत्रिकाओं के जरिए वज़ूद में आयी. कवि सम्मेलन में गिर्दा हों तो बाकी कवियों का फीका हो जाना तय-सा होता था. गिर्दा ने कभी आडियन्स के मैनरलैस होने की शिकायत नहीं की और न ही साउंड सिस्टम के स्तरहीन होने की. खाने-रहने की शिकायत तो उसने ऊपर वाले से नहीं की थी तो फिर आयोजकों से क्या करता.
कोई पूछे, गिर्दा तुमने जिंदगी भर क्या कमाया है तो गिर्दा कहता – प्रेम बब्बा प्रेम. अहा! तुमारा जैसा प्रेम. और भी दुनिया में कुछ कमाया जाता है भुलू. वो पल भी याद है जब 13 नवम्बर 1999 को गोपेश्वर जिला पंचायत सभागार में आयोजित प्रथम जयदीप स्मृति समारोह में गिर्दा को बोलने के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया तो, प्रदेश के बुद्धिजीवियों के उस महाकुम्भ से भावुक गिर्दा रूमाल से भीगी पलकें पोंछते हुए जो पहला वाक्य बोले वो ये कि – ऐसा ही मेरा भी कर देना, यार. और जैसा वो चाहते थे उनके प्रशंसकों ने उससे बढ़कर उनको दिया है. एक ऐतिहासिक अंतिम यात्रा और अनवरत स्मरण. गिर्दा तुमने कहा था –
भैंस मरती रही, दूध-दूधा किए.
कटरा खूंटे बँधा बिना दूध पिए.
(GIrda Girish Chandra Tiwari)
भैंस अब भी रात-दिन दुही जा रही है कटरों के हिस्से में अभी भी दो बूंद नहीं. गिर्दा, पहाड़ी चखुला हुआ. उसकी तीस छोये ही बुझा सकते हैं, नीरस सरकारी पुरस्कार नहीं. हरिश्चंद्र पांडे ने गिर्दा की ओर से कविता में गिर्दा के मन की अनकही, कही है-
अब जनम तो एक ही हुआ ना
इसी में लिखना था इसी में गाना था
चाहे किसी का विरुद गाता या फिर जनगीत
सो यही गाया – जैंता, एक दिन तो आलो….
गिर्दा! उस दिन की हम भी प्रतीक्षा कर रहे हैं. आते ही तुम्हें भी खबर कर देंगे. गिर्दा का जन्म आज़ादी से दो साल पहले हुआ था और निधन हुए भी एक दशक बीत गया है. दसवीं पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि. बहुत याद आते हो, पता नहीं तुम्हें अब बाडुली लगती है कि नहीं…
(GIrda Girish Chandra Tiwari)
![](https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_110/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_110/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_110/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_110/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_110/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_110/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_110/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_110/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_110/https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2019/12/IMG_20191212_153900-110x150.jpg)
1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी अंगरेजी में परास्नातक हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं. फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
![](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2020/06/Logo.jpg)
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें