कुमाऊनी महाभारत गाथा से एक दिलचस्प अनसुनी कथा

एक दिन भटकते हुए सातों पाण्डव एक दुद बुढ़िया (नर मांस खाने वाली एक बढिया) के घर पहुँचे. यह दुद बुढ़िया कहने लगी कि मैं एक की बलि लेती हूँ. जो भी यहाँ पर आता है उसमें से एक का भक्षण मैं अवश्य करती हूँ. माता कुन्ती कहती है कि मेरा भक्षण करो. इसी प्रकार द्रौपदी अपनी बलि देने को उद्यत होती है फिर युधिष्ठिर भी अपनी बलि देने को तैयार होते हैं. इसी प्रकार क्रमशः सभी पाण्डव स्वयं को बलिदान के लिए अर्पित करने को उद्यत होते हैं. परन्तु उस दुद बुढ़िया के पसन्द मोटे ताजे भीम आये. भीम ने अपने अलावा छः जनों का परिवार वहाँ से विदा किया तथा कहा कि जब लहू की गंगा बह जायेगी तो समझ लीजिए कि भीम मारा गया. यदि जीवित रह गया तो मैं आपके पास आ जाऊँगा. Rare Myth from Kumaoni Mahabharat

इस प्रकार अपने परिवार को विदा कर भीम खुद बुढ़िया के घर अपना बलिदान देने के लिए रुक गये. पाण्डव समुद्र के किनारे निचले घाट की ओर चले गये. उधर भीम ने बुढ़िया से कहा कि कुछ दिन मुझे खाने के लिए पौष्टिक भोजन दो जिससे मैं मोटा होऊंगा तथा तुम्हारे आहार के लिए पुष्ट मांस मिलेगा. बुढ़िया ने भीम की बात मान ली तथा भीम के लिए अच्छी-अच्छी पौष्टिक खुराक दी जाने लगी. Rare Myth from Kumaoni Mahabharat

कुछ दिन बीतने पर भीम ने बुढ़िया से कहा कि हे मामा! तेरे दाँत बड़े गन्दे हो रहे है. तुम अपना मुख खोलो में तुम्हारे दाँत साफ कर दूंगा. भीम ने दाँत साफ करने के बहाने बुढ़िया के सभी दाँत तोड़ दिये. भीम ने अपने पास बुढ़िया के घर से छिपा कर छुरी तथा कटार रख लिये तथा स्वयं भौंरे का रूप रखकर बुढ़िया के पेट में घुस गये. पेट में जाकर डंक मारने लगे जिसके कारण बुढ़िया के पेट में असाध्य दर्द होने लगा.

बुढ़िया कहने लगी कि हे कीड़े ! तू शीघ्र बाहर निकल. आज तक मैंने बड़े-बड़े कीड़े खाये और आज तू कीड़ा मुझे ही खा रहा है. इसलिए हे कीड़े! शीघ्र बाहर निकल जा. Rare Myth from Kumaoni Mahabharat

तब भीम पेट से बोलने लगे कि मैं किस मार्ग से बाहर निकलें. यदि संसार के बहिर्गमन के मार्ग (योनि) से निकलूं तो लोग मल मूत्र कहेंगे, यदि मुख से निकलूं तो थूक, नाक से निकलूं तो घ्राण की गन्दगी, कान से निकलूं तो कान का मैल बतायेंगे. अतः तुम ही बताओ मैं किस मार्ग से बाहर निकलूं?

बुढ़िया कहती है कि तू तो बातों ही बातों में मेरे प्राण ले रहा है अतः मेरा सिर फोड़ कर भी बाहर निकल दे. भीम ने छुरी से बुढ़िया के सिर का छेदन किया तथा बाहर निकल आये. मरी हुई बुढ़िया को भीम ने गंगा में बहा दिया. बुढ़िया के खून से गंगा का पानी रक्तिम हो गया.

निचले घाट पाण्डवों ने जब रक्त मिलती हई गंगा देखी तो वे सोचने लगे कि जैसा भीम ने कहा वैसा ही हुआ, आज भीम दुद बुढ़िया के घर मारे गये हैं जिस कारण यह खून की गंगा प्रवाहित हुई है. पाण्डवों ने बाल के लड्डू बनाकर भीम की अन्त्येष्टि की तथा कन्दमूल फल खोदकर पतलों में भीम का अन्त्येष्टि भोजन परोसा तथा वहाँ से शोकाकुल होकर आगे बढ़े.

उधर भीमसैन अपने भाईयों की खोज में चले, पैरों के चिन्हों का अनुसरण करते हुए आगे बढ़े. मार्ग में नदी के तट पर भीम को पतल में कन्दमूल फल परोसे मिले. भूख के मारे भीम ने उसे खा लिया. तथा फिर आगे बढ़े. आगे चल कर भीम को अपने भाई मिल गये. परस्पर मिलन होने में भाईयों को अतीव प्रसन्नता हुई. जब परस्पर में भोजन आदि की चर्चा होने लगी तो भीमसैन ने बताया कि कुछ दिन तक बुढ़िया के घर में बड़ा पौष्टिक भोजन खाने को मिला. जब आ रहा था तो मार्ग में आपके द्वारा मेरे लिए परोसे कन्द-मूल-फल मिले मैंने वह खाये. आपके इस प्रेम को धन्य है जो कि आप मेरे लिए भोजन परोस कर रख गये थे. Rare Myth from Kumaoni Mahabharat

युधिष्ठिर ने कहा – “यह तो अनर्थ हो गया. हे भाई भीम ! तुम्हारे वचनानुसार हमने लहू की गंगा देखी तथा तुम्हारी मृत्यु निश्चित समझ कर हमने तुम्हारी अन्त्येष्टि क्रिया की. वह तुम्हारी अन्त्येष्टि क्रिया का भोजन परोसा था. तुमने अनर्थ कर दिया कि अपनी अन्त्येष्टि क्रिया का भोजन स्वयं खा लिया है. अब तू सर्वथा अशुद्ध हो गया है. अतः अब हम से अलग हो गया है और अब अलग ही रहा कर.”

युधिष्ठिर के इन वचनों को सुनकर भीम सैन बड़े लज्जित तथा दुखी हुए. हाथ जोड़ कर विलाप करने लगे – “इस पेट के कारण मैंने बड़े-बड़े पाप कर डाले हैं . अब हे भ्राता ! कोई ऐसा उपाय बताइये जिससे मैं शुद्ध होकर पुनः आपके साथ मिल सकूँ.”

युधिष्ठिर ने कहा – “जब तू शिव जी के साक्षात् दर्शन करेगा तभी शुद्ध हो सकता है और हमारे साथ आ सकता है.”

भीमसैन शिव जी की खोज में चल पड़े. भीम के आगमन की खबर शिव जी के पास पहुँच गई . शिव जी सोचने लगे कि यह पापी भीम आ गया है अतः शिव जी भी भागने लगते है. शिव जी निरन्तर भागने लगे. पीछे से भीमसैन भी उनका पीछा करने लगे. शिव जी केदार भूमि की और दौड़े तथा भीम भी उनके एकदम पीछे-पीछे थे. शिव जी ने सोवा कि यह पापी बिल्कुल निकट आ पहुँचा है अतः शिव जी ने प्रार्थना की कि हे धरती माता ! तू फट जा में तुम्हारी गोद में विलीन हो जाऊँ. धरती फटी तथा शिव जी कन्दरा में प्रविष्ट हो गये. शिव जी ने अपना सिर तथा ऊपरी शरीर जब पृथ्वी में घुसा दिया था और कमर से नीचे का शरीर ही बाहर था तब उस समय भीम वहाँ पर पहुँच गये.

ऐसी स्थिति देख कर भीम अत्यधिक खिन्न हो उठे तथा कहने लगे हे प्रभु ! यदि आप मुझे दर्शन नहीं देते हैं तो मैं धरती को उलट दूंगा या फिर स्वयं आत्मा हत्या कर यहीं मर जाऊँगा. शिव जी ने सोचा कि यह पापी अभी भी पल्ला नहीं छोड़ेगा. तब शिव जी कन्दरा से ही बोल उठे कि हे भीमसेन ! जो फल तुम्हें मेरा मुख देखकर होगा वह फल तुम्हें मेरे नितम्ब देखकर प्राप्त हो जायेगा. मेरा सिर तो पशुपति पहुंच चुका है. तू इस स्थान में मेरा मन्दिर बना देना तब निष्कल्मष हो कर जायेगा. Rare Myth from Kumaoni Mahabharat

तब भीम मन्दिर बनाने के लिए पत्थरों की ढूंढ गये. भीम अपनी कांख भर कर पत्थर लाये तथा वहाँ पर मन्दिर बनाकर शेष पत्थर वही पर छोड़ दिये. भीम अब अपने परिवार के साथ लौट आये. परिवार के बीच कुशल क्षेम हुई तब माता कुन्ती कहती हैं कि हम फिर से नये संस्कार करते हैं.

माता कुन्ती भीम को लेकर प्रसूति गृह में बैठी, भीम का जात कर्म, षष्ठी महोत्सव, नामकरण आदि संस्कार कर क्रमशः वर्ण वेध, उपनयन तथा विवाह संस्कार किये. इस प्रकार वनवास के आठ वर्ष पूरे हो गये तथा चार वर्ष शेष रहे. भीम को परिवार के साथ मिला लिया गया.

(डॉ. उर्बादत्त उपाध्याय की पुस्तक ‘कुमाऊँ की लोकगाथाओं का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन’ से साभार)

लोकगाथाओं से सम्बंधित यह लिंक्स भी देखें:
एक लड़की और उसका पति जो सर्प था – कुमाऊनी लोककथा
प्रेत और उसका बेटा – कुमाऊनी लोककथा
मूसा सौन और पंचू ठग की कुमाऊनी लोककथा
बहादुर पहाड़ी बेटा और दुष्ट राक्षसी की कथा

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago