शाहजहाँ के राज्याभिषेक का समय था भारत के बड़े-बड़े राजा उसके दरबार में नतमस्तक होने गए थे लेकिन गढ़वाल के स्वाभिमानी राजा महीपतिशाह राज्याभिषेक में सम्मिलित न हुए. शाहजहाँ तभी से महीपतिशाह के प्रति द्वेषभाव रखने लगा. Rani Karnavati of Garhwal
1635 में जब महीपतिशाह की मृत्यु हुई (शिवप्रसाद डबराल के अनुसार मृत्यु वर्ष) तो शाहजहाँ ने गढ़वाल पर आक्रमण के लिए शाही सेना तैयार करना शुरू किया. पिछले कई सालों से वह एक अवसर की प्रतीक्षा में ही तो था. Rani Karnavati of Garhwal
शाहजहाँ ने गढ़वाल के पड़ोसी सिरमौर के राजा मान्धाता प्रकाश को अपनी ओर मिला लिया. कांगड़ा के फौजदार नजावतखां के नेतृत्व में शाहजहाँ ने एक संयुक्त सेना गढ़वाल की ओर भेजी. उसे कहां पता था उसका पाला राजमाता कर्णावती से पड़ना है.
महीपतिशाह की मृत्यु के बाद गढ़वाल का शासन रानी कर्णावती ने अपने हाथों में लिया क्योंकि महीपतिशाह ओर रानी कर्णावती का पुत्र पृथ्वीपतिशाह अभी अवयस्क था. सेनापति माधो सिंह भंडारी बूढ़े हो चुके थे इसीकारण सेना की कमान रानी कर्णावती के हाथों में थी.
निकोलस मनूची ने स्टोरिया डू मोगोर, ट्रेवर्नियर ने ट्रेवल्स इन इण्डिया में रानी कर्णावती और शाहजहाँ के बीच हुए युद्ध का जिक्र करते हुए बताया है कि रानी कर्णावती ने युद्ध में शाहजहाँ की संयुक्त सेना के सैनिकों को पराजित कर दिया.
रानी कर्णावती जानती थी कि संख्याबल के आधार पर वह मुगल सेना का सामना नहीं कर सकती इसलिये उन्होंने सूझ-बूझ का सहारा लिया. रानी कर्णावती ने मुगल सेनापति नजावतखां को संदेश भिजवाया की वह मुगल बादशाह की अधीनता स्वीकार कर लेंगी यदि उनको दो हफ्ते का समय दिया जाय. इस समय में वह बादशाह को भेंट स्वरूप दस लाख रूपये भी देगी.
नजावतखां मान गया रानी ने अगले डेढ़ महीने में उसे केवल एक लाख रुपया दिया. इसी बीच गढ़राज्य की सीमा पर बैठी उसकी सीमा की रसद खत्म होने लगी. सेना का जो भी सैनिक सामान लेने जाता स्थानीय लोग उसे लूट लेते. नजावतखां की सेना जब पूरी तरह कमजोर हो गयी तो रानी से पूरी शक्ति से आक्रमण किया ओर नजावतखां की सेना को तहस-नहस कर दिया.
युद्ध में जो सैनिक बच गये उन सभी की नाक काट दी ताकि लोगों के यह याद रहे की गढ़राज्य से टकराने वाले का क्या हस्र होता है. कहते हैं कि शाहजहां का सेनापति नजावतखां भागकर दिल्ली चला गया और जब अपमान का घूंट न पी सका तो दिल्ली में ही उसने आत्महत्या कर ली.
पृथ्वीपतिशाह की संरक्षिका और गढ़वाल की सबसे पराक्रमी रानी कर्णावती को इसी कारण से ‘नाक-काटी-राणी’ कहा जाता है. भारत के इतिहास में आज भी रानी कर्णावती का नाम नाक-काटी-रानी नाम से स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. इतिहास में रानी कर्णावती को भारत की दस सबसे पराक्रमी रानियों में शामिल किया जाता है.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…
चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…
देह तोड़ी है एक रिश्ते ने… आख़िरी बूँद पानी का भी न दे पाया. आख़िरी…
View Comments
बहुत ज्ञानवर्धक व रोचक तथ्य सामने लाने के लिए धन्यवाद ।