यह बात सभी जानते हैं कि हिंदी साहित्य का पहला संकलन फ्रेंच भाषा में गर्सा द तासी के द्वारा 1850 में तैयार किया गया था, काफी कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि कुमाऊनी लोक कथाओं का पहला संकलन एक रूसी यायावर ई. पा. मिनायेव (1840-1890) ने 1875 में रूसी भाषा में किया. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगभग आधी सदी तक रूसी भाषा के शोधार्थी, प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष रहे प्रोफ़ेसर हेमचन्द्र पांडे ने इन कहानियों का मूल रूसी से हिंदी में अनुवाद किया है जो 2011 में दीप प्रकाशन, 1/7342, नेहरू मार्ग, ईस्ट गोरख पार्क, शाहदरा, दिल्ली-32 से प्रकाशित हुआ है. 1st Book of Kumaouni Folk Tales
रूसी भारतविद मिनायेव 1875 में भारत की यात्रा पर आए थे. इस दौरान वह अल्मोड़ा गए जहाँ उन्होंने तीन महीने बिताए. वहाँ उन्होंने कुमाऊँ की अनेक लोककथाएं और दंतकथाएं एकत्र की और अगले वर्ष स्वदेश लौटकर उनका रूसी में अनुवाद करके पुस्तकाकार प्रकाशित किया. प्रस्तुत है उसी संकलन में संकलित एक कहानी :
एक व्यक्ति ने एक सन्यासी से तीन सवाल पूछे.
पहला सवाल था – आप ऐसा क्यों कहते हैं कि परमात्मा सर्वत्र व्याप्त है. मुझे तो वह दिखाई नहीं देता है. मुझे दिखाओ कि परमात्मा कहाँ है?
दूसरा सवाल था – उस परमेश्वर ने लोगों को पाप के लिए कौन-सा दंड निश्चित कर रखा है? संसार में जो कुछ घटित हो रहा है, वह सब परमेश्वर का बनाया नहीं है क्या? यदि लोगों में योग्यता होती तो क्या वे सब कुछ स्वयं नहीं कर लेते?
तीसरा सवाल था – परमेश्वर लोगों को नरक में क्यों डाल देता है?
तीनों प्रश्न पूरे होते ही सन्यासी ने एक भारी पत्थर उठाकर उस व्यक्ति के सिर पर दे मारा. वह व्यक्ति रो पड़ा और उसने काजी के पास जाकर फरियाद की –मैंने एक सन्यासी से तीन सवाल पूछे थे, और उसने उत्तर देने के बजाय मेरे सिर पर पत्थर मार दिया. तब से मेरे सिर में दर्द हो रहा है.
काजी ने सन्यासी से पूछा – बताइए कि आपने इस व्यक्ति के सिर पर पत्थर क्यों मारा? इसके सवालों के जवाब क्यों नहीं दिए?
‘पत्थर ही इसके सवालों का जवाब है.’ सन्यासी ने उत्तर दिया और आगे कहा, यह व्यक्ति कह रहा है कि उसका सिर दर्द कर रहा है. मेरे विचार में तो इसके सिर में दर्द है ही नहीं. अगर है तो मुझे दिखाए. तब मैं भी इसे परमेश्वर दिखा दूंगा. यह अपने लिए न्याय मांगने क्यों आया है? क्या स्वयं इसने नहीं कहा था कि यहाँ जो कुछ भी घटित हो रहा है, सब कुछ परमेश्वर के द्वारा हो रहा है. यदि ईश्वर की इच्छा नहीं होती तो क्या मैं कुछ कर सकता था? क्या इसका शरीर मिट्टी का नहीं बना है? मिट्टी को, आखिर, दर्द कैसे हो सकता है?
सन्यासी की बातें सुनकर वह व्यक्ति सकपका गया. काजी ने सन्यासी की बातों का विश्वास कर लिया. 1st Book of Kumaouni Folk Tales
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
लक्ष्मण सिह बिष्ट ‘बटरोही‘ हिन्दी के जाने-माने उपन्यासकार-कहानीकार हैं. कुमाऊँ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके बटरोही रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ के संस्थापक और भूतपूर्व निदेशक हैं. उनकी मुख्य कृतियों में ‘थोकदार किसी की नहीं सुनता’ ‘सड़क का भूगोल, ‘अनाथ मुहल्ले के ठुल दा’ और ‘महर ठाकुरों का गांव’ शामिल हैं. काफल ट्री के लिए नियमित लेखन. टेलीफोन : 9412084322
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…
‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…
वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…
पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…
पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…
-हरीश जोशी (नई लोक सभा गठन हेतु गतिमान देशव्यापी सामान्य निर्वाचन के प्रथम चरण में…
View Comments
बहुत सुंदर लोककथा धन्यवाद । प्रो. हेमचंद्र पाण्डे मेरे रूसी भाषा के शिक्षक रहे। रूसी भाषा उन्होंने रूसी इतिहास के संदर्भों से सिखाई। 🙏🙏🙏
काफल ट्री के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति का अत्यधिक रोचक ज्ञान ....... उत्सुकता बनी रहती है