कला साहित्य

कैसैं कै दें मिल गई है आजादी

आज सबेरैं भज कै आई 
दरवज्जे पै टुइयाँ
पटिया बैठी अम्मा बोलीं
कितैं गई थी गुइयाँ?

बोली टुइयाँ गई सकूल में
होती बितैं मुनादी
लड़ुआ बाँटत माट्टर बोलैं
आज मिली आजादी

बात समझ न आई जे
सब बोलें सूदी-सादी
अम्मा नैक बतातौ मोए
होती का आजादी?

ढिंगा बुला कैं मौड़ी को
अम्मा ने चिपटाया
लैं गोदी में हाथ फेर फिर
राज उसे बतलाया

आजादी आवैगी तौ न 
होंगे कच्चे जे घर
पक्की सिग दीवारैं होंगी
पक्के होंगे छप्पर

आजादी के माने सबका 
मान बराबर होगा
हाथ जोड़ कैं पास बिठा कैं
बतरावैंगे दरोगा

आजादी में मिलैगो सबकौं
भर भण्डार अनाज
है जाबैगो गाम्में ही सिग
ब्याधिन कौ इल्लाज

बिन धक्कन कैं खाद मिलैगी
सबकौं बारी – बारी
खुद सैं दाखिल खारिज करबे
आबेंगे पटबारी

कोई न डरपाबैगौ फिर कि
हौ तुम छोटी जात
टुइयाँ मेरी करैगी सूधे
तैसिलदार सैं बात

दौ जोड़ी चप्पलें मिलैंगी
फटे न पैर बिबाई
सबई बिमारिन की घर बैठें
डाट्टर लाएं दबाई

कंडट्टर फिर भाड़ा काजें 
करैं न मारा- पीट
सहर जाएं जो तेरे बापू
मिलै रेल में सीट

रोज सफाई होए गाम्में 
आए न कोउ बिमारी
चरनोई पै जाय कैं खेलैं
गइयां, छिरियां सारी

मंजन करबे सबै मिलैगी
प्लाट्टिक बारी दातुन
खूब हनाबे सबै मिलैेगौ
खुसबू बारौ साबुन

कोटबार फिर घरै आयकैं
दै जाबैगौ रासन
पोट्ट माट्टर बाबूजी हू
भिजबाबेंगे पिंसन

ध्यान लगाए सुनत रही
उतरी गोदी सैं लाली
आँख डाल कैं आँखन में
दिल की बात निकाली

मेरी आजादी में अम्मा
करबें है हर हाल
मेला देखी मोए मिलै बो
नाचन वारी डॉल

रोज मिलै इक बरफ कौ गोला
मिलै मुसम्बी जूस
रोज सबेरे दे तू अम्मा
भर गिलास में दूध

पढबे काजै दिब्बाय दै तू
इक सिलेट और चाक
सहर में जैसी पैनें मौड़ी
फूलन बारी फ्राक

मोटौ सौ इक सूटर मिल जाय
पायल मिलैं चमाचम
घी की पूरी और चूरमा
साथ मे होबै चमचम

अम्मा इत्ती सारी बातें
जब हैं आधी-आधी
मिली नायँ तौ कैसैं कै दें
मिल गई है आजादी?

प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.

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Girish Lohani

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