सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में हिमालयी अध्ययन पर संकेन्द्रित दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र का प्रार्दुभाव 16 मार्च, 2006 को एक स्वायत्तशासी संस्था के रुप में देहरादून हुआ. इसके लिए माध्यमिक शिक्षा विभाग, उत्तराखण्ड द्वारा परेड ग्राउंड स्थित परिसर में अपने कुछ कक्ष उपलब्ध कराये गये. 8 दिसंबर, 2006 को उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा इस संस्थान का लोकार्पण करने के बाद इस संस्थान ने कार्य करना प्रारम्भ कर दिया था. विगत 16 वर्षों तक परेड ग्राउंड स्थित परिसर से संचालित होने के बाद अब यह संस्था लैंसडाउन चौक पर अपने नये भवन में स्थापित हो चुकी है. इस बात की कोई अतिशयोक्ति न होगी कि इस अल्प अवधि में ही दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र ने न केवल देहरादून शहर में अपितु देश-प्रदेश में भी अपनी एक विशेष पहचान बना ली है.
(Parade Ground to Lansdowne Chowk Book)
आम पाठकों, बुद्धिजावियों, लेखक,साहित्यकारों तथा सामाजिक विज्ञान के अध्येताओं के हित में स्थापित इस आदर्श ज्ञान संसाधन केन्द्र की परिकल्पना में मुख्य भूमिका प्रखर समाज विज्ञानी और पूर्व कुलपति कुमाऊं विश्वविद्यालय प्रो. बी.के.जोशी की रही है. प्रो. जोशी इस संस्थान के संस्थापक निदेशक रहने के बाद अब इस समय सलाहकार के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं. इस महत्वपूर्ण कार्य को धरातल पर साकार करने में उत्तराखण्ड शासन के कई वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों का भी महति योगदान रहा है. इनमें सुरजीत किशोर दास व एम. रामचंद्रन (दोनों पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखण्ड शासन) का नाम प्रमुखता से आता है. इसके साथ ही उत्तराखण्ड शासन के अन्य पूर्व मुख्य सचिवों इंदु कुमार पांडे, एन.एस. नपलच्याल, सुभाष कुमार, उत्पल कुमार सिंह समेत अन्य प्रबुद्ध जनों का भी उल्लेखनीय सहयोग रहा है. वर्तमान में एन. रवि शंकर पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखण्ड शासन के कुशल निर्देशन में यह संस्थान निरन्तर आगे बढ़ रहा है.
यहां पर इस बात का उल्लेख करना आवश्यक होगा कि आज से डेढ़ दशक पूर्व उत्तराखंड के प्रमुख शहर देहरादून में एक ऐसे पुस्तकालय की स्थापना करने की आवश्यकता समझी गयी जो प्रबुद्ध पाठकों और पुस्तक प्रेमी तथा आम जन को पठन सामग्री की आपूर्ति करने के अलावा अध्येताओं को सामाजिक विज्ञान और मानव विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण संसाधन उपलब्ध करा सके. इन्हीं प्रबुद्ध जनों के सामूहिक प्रयासों की परिणति अब लैंसडाउन चौक पर स्थित दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के नये भवन के रुप में साकार होती दिख रही है. मुख्य बात यह है कि अब एक ही स्थल पर पाठकों लेखक,साहित्यकार,साहित्य प्रेमियों तथा अध्येताओं को हिमालयी क्षेत्रों, विशेष रूप से उत्तराखंड के समाज, आर्थिकी, इतिहास, राजनीति, संस्कृति, कला, नृवंशविज्ञान, पर्यावरण के साथ ही साहित्य जैसे अन्य विषयों की पुस्तकें मिल सकेगीं वहीं दूसरी ओर समय-समय पर उनकी अभिरुचिनुसार उन्हें व्याख्यान, परिचर्चा, पुस्तक लोकार्पण, साहित्यिक गोष्ठियां और प्रदर्शनियों के आयोजन का मंच भी प्राप्त हो सकेगा.इस संस्थान को हिमालयी संस्कृति, कला, साहित्य, बोली-भाषा तथा गीत-संगीत व फिल्म से सम्बद्ध विषयों का एक समृद्ध गतिविधि केन्द्र तथा तत्सम्बन्धी सामग्री का संकलन कर उसे एक संग्रहालय का आकार देने के प्रयास भी किये जा रहे हैं.
उत्तराखंड हिमालय के सामाजिक विज्ञान से जुड़े विषयों पर उच्च स्तरीय सेमिनार, व्याख्यानों के आयोजन के तथा प्रकाशन शृंखला के अंर्तगत हिमालयी समाज, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, भाषा, साहित्य तथा कला-संस्कृति जैसे विषयों पर कुछ उत्कृष्ट शोध आलेख, मोनोग्राफ व पुस्तक/पुस्तिकाओं के प्रकाशन कार्य भी इस संस्था द्वारा किये जाते रहे हैं. दून पुस्तकालय के प्रति युवाओं की बढ़ती अभिरुचि ने इस संस्था को एक अलग पहचान दी है. अनेक युवा पाठकों को यहां के वाचनालय में बैठकर अध्ययन करते देखा जा सकता हैं. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले और शोधार्थी युवा पाठकों के लिए यह संस्थान एक आदर्श जगह बनती जा रही है. विगत कुछ सालों से पुस्तकालय में अध्ययनरत कई युवा पाठक विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में निरन्तर सफलता भी प्राप्त कर रहे हैं.
दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र से जुड़े ऐसे ही तमाम महत्वपूर्ण प्रसंगों पर केन्द्रित एक अर्थपूर्ण पुस्तक ”परेड ग्राउण्ड टू लैंसडाउन चौक : मेकिंग ऑफ़ दून लाइब्रेरी एण्ड रिसर्च सेन्टर” इसी बीच प्रकाशित हुई है. इस पुस्तक के लेखक प्रो. बी.के. जोशी हैं जो इस संस्था के साथ प्रारम्भ से ही जुड़े रहे हैं. असल मायनों में यह पुस्तक देहरादून शहर में एक उत्कृष्ट पुस्तकालय निर्माण की परिकल्पना, उसके प्रार्दुभाव, विकास और इसके नये परिसर में पदार्पण करने की स्वर्णिम गाथा को बहुत संजीदगी से सिलसिलेवार बंया करती है. प्रस्तावना में लेखक का मानना है कि परेड ग्राउंड के दक्षिणी छोर (जहां पहले इसका पुराना परिसर था) लैंसडाउन चौक (जहां अब इसका नया परिसर बन गया है )तक की दूरी बमुश्किल सौ मीटर या उससे कुछ ही अधिक है, लेकिन हमारी यह पहुंच प्रतीक रुप में एक लम्बी दूरी की छलांग के सदृश्य है. यह मोनोग्राफ इसी छलांग की कथा-गाथा को बताने की एक छोटी सा प्रयास भर है.
देखा जाय तो इस पुस्तक के लेखक प्रो. जोशी के मन-मष्तिस्क में एक समृद्ध पुस्तकालय की संकल्पना का उदय तभी हो चुका था जब वे राजनीति विषय में डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित करने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई (संयुक्त राज्य अमेरिका) गये हुए थे. शोध अध्ययन की इस चार साल की यात्रा में लेखक के दिल में वहां के पुस्तकालयों की उपयोगिता तथा उनके द्वारा प्रदत्त सेवा सुविधाओं ने उनके जो अमिट छाप छोड़ी उसका ही साकार स्वरूप अब दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र लेने को उद्यत दिख रहा है.
देहरादून में रहते हुए लेखक ने एक सामाजिक वैज्ञानिक और शोधकर्ता के रूप स्वयं के अनुसंधान हितों को आगे बढ़ाने के लिए सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में एक परिपूर्ण पुस्तकालय की आवश्यकता शुरूआत से ही महसूस की है. दुर्भाग्य से उस समय यहां ऐसा कोई पुस्तकालय आम जनों के लिए उपलब्ध नहीं था. शहर में स्थित अन्य राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों के पुस्तकालय तो थे पर वे अपने संस्थागत कर्मियों के लिए ही उपलब्ध रहतेे. अपने निजी पठन-पाठन के लिए लेखक को अक्सर लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन लाइब्रेरी से मसूरी जाना पड़ता था. पुस्तकालय के अधिकारी उन्हें पुस्तकालय के दायरे के तहत उन पुस्तकों तक पहुँचने में पूरी तरह मददगार व उदार तो अवश्य रहते परन्तु अकादमी का हिस्सा न होने के वजह से उन्हें पुस्तकें इश्यू नहीं हो सकती थीं. साथ ही बार-बार मसूरी नहीं जाया जा सकता था सो इसलिए उन्होंने पुस्तकालय स्थापित करने का सपना देखना शुरू किया.
(Parade Ground to Lansdowne Chowk Book)
लेखक ने पुस्तक को छह छोटे-छोटे अध्यायों में विभक्त किया हुआ है.इन अध्यायों में पुस्तकालय की संकल्पना, पृष्ठभूमि और उसके प्रारम्भिक शुरुआत के अनेक दिलचस्प प्रसंग हमारे सामने आते रहते हैं. वर्ष 2005 की बात थी जब प्रो.जोशी ने देहरादून में अपने दो अभिन्न मित्रों लेखक एलन सीली तथा सुपरिचित कवि व बुद्धिजीवी अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा के साथ एक समृद्ध पुस्तकालय शुरू करने की मंशा को उनके सामने जाहिर की थी. इसके साथ ही इस कार्य के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने को लेकर भी उनके मन में कई चिन्ताएं थीं. इन दोनों मित्रों की ओर से जब उन्हें सकारात्मक सुझाव मिले तो कार्य को आगे बढ़ाने का सिलसिला बढ़ने लगा और उम्मीद की किरणें फूटने लगीं. इसी बीच उत्तराखण्ड शासन में कार्यरत तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव एम.रामचन्द्रन, शिक्षा सचिव डी.के.कोटिया सहित अनेक प्रशासनिक अधिकारियों के भरपूर सहयोग से पुस्तकालय का एक संरचनात्क स्वरुप उभर कर सामने आ गया. शहर में स्थित पुरानी जेल तथा डालनवाला सहित कुछ अन्य जगहों पर पुस्तकालय को स्थापित करने के प्रस्ताव सामने आते रहे. अंततः परेड ग्राउण्ड के निकट शिक्षा विभाग के कार्यालय के कक्षों को पुस्तकालय के लिए अंतिम तौर पर उपयुक्त पाया गया. नवंबर 2006 के अंत तक जब इस भवन के मरम्मत व नवीकरण का कार्य पूरा हुआ तो तब एम. रामचंद्रन सचिव के रूप में भारत सरकार में चले गए और सुरजीत किशोर दास को मुख्य सचिव के रूप में प्रतिस्थापित किया गया. मुख्य सचिव के रूप में उनकी नियुक्ति और पुस्तकालय के शासी निकाय के अध्यक्ष के तौर पर उनकी भूमिका पुस्तकालय के लिए वरदान साबित हुई. पुस्तकालय को महत्वपूर्ण संस्था बनाने की में उनकी सक्रियता व प्रतिबद्धता प्रेरणादायक थी. बाद में शिक्षा निदेशालय के सौजन्य से राजा राम मोहन राय फाउण्डेशन से प्राप्त 7000-8000 पुस्तकें मिलने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा पुनर्निर्मित भवन में स्थापित पुस्तकालय का लोकार्पण किया गया और 8 दिसम्बर 2006 को दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के नाम से अस्तित्व में आ गया.
लोकार्पण दिवस के उल्लास को लेखक ने एक नई सुबह के शीर्षक के तहत रेखांकित किया है. इस नई सुबह में लेखक को संस्थान के भविष्य के प्रति आशा भरी किरणों की उम्मीद जगने लगती हैं. लोकार्पण के समय मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा इस संस्थान को अपेक्षा से अधिक कार्पस फण्ड की घोषणा करना हैरत करने वाली खबर थी. इस अध्याय में समय-समय पर पुस्तकालय से जुड़े अनेक रोचक घटनाक्रमों का विवरण भी मिलता है. पुस्तकालय के शासी निकाय के अध्यक्ष के तौर पर उत्तराखण्ड शासन के मुख्य सचिवों की सकारात्मक पहल और उनके महत्वपूर्ण योगदान का संजीदगी से इस अध्याय में उल्लेख किया गया है. सुभाष कुमार और उत्पल कुमार सिंह द्वारा पाठकों के हित में पुस्तकालय को जो आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने में रूचि ली गई उसका विस्तृत विवरण भी इस पुस्तक में मिलता है. प्रो. जोशी लिखते हैं कि संस्थान के अपने भवन के लिए उचित जगह की तलाश लगातार जारी रही. किसी एक दिन सुरजीत किशोर के मन में विचार आया कि लैंसडाउन चैक पर खाली जमीन का भूखंड पुस्तकालय के भवन के लिए सर्वथा उपयुक्त हो सकता है जिसका उपयोग धरना स्थल के रूप में हो रहा था. इस मुद्दे को तब तत्कालीन मुख्य सचिव उत्पल सिंह के समक्ष उठाया गया उन्हें उस जगह को प्रत्यक्ष तौर पर दिखाने के बाद काफी हद तक बात आगे बढ़ने की उम्मीद नजर आने लगी थी.
लेखक फरवरी 2018 की उस यादगार दिन को भी नहीं भूलते जब वे किसी मीटिंग के लिए दिल्ली में थे और उन्हें तत्कालीन मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने उन्हें अगली सुबह तक दिल्ली पहुंचने का अनुरोध किया था. संयोगवश लेखक तब दिल्ली में ही थे. दरअसल एयरपोर्ट एथॉरिटी के सीएसआर कमेटी की अगले दिन बैठक तय थी जिसमें उत्तराखंड सरकार को कमेटी के सामने अपना पक्ष रखना था. लेखक जिक्र करते हैं कि ‘दून स्मार्ट सिटी लिमिटेड के सीईओ और उनकी टीम ने एक प्रस्तुतिकरण तैयार किया हुआ था. मुख्य सचिव चाहते थे कि मैं प्रस्तुति की समीक्षा करते हुए आवश्यक सुझाव दूं क्योंकि मैं पुस्तकालय के सभी पहलुओं से पूरी तरह परिचित था और हर प्रश्न का उत्तर दे सकता था. मैं आसानी से सहमत हो गया क्योंकि यह पुस्तकालय के लिए नए परिसर को अधिग्रहण करने का एक बड़ा अवसर था. उस शाम मैं देहरादून से आए दून स्मार्ट सिटी लिमिटेड के सीईओ डॉ. आशीष वास्तव और उनके सहयोगियों से मिला और उनके द्वारा तैयार किए गए प्रेजेंटेशन को देखा और मामूली बदलावों का सुझाव दिया. अगली सुबह एयरपोर्ट अथॉरिटी के ऑफिस में समिति के समक्ष प्रस्तुति देने के बाद अध्यक्ष व अन्य सदस्यों ने पुस्तकालय की मौजूदा स्थिति, पुस्तकों की संख्या और प्रकार, सदस्यों की संख्या और उन्हें दी जा रही सुविधाओं तथा भविष्य की योजनाओं पर कई सवाल भी पूछे. मैं हर एक बिंदु पर समिति को संतुष्ट करने में सक्षम रहा सो हम संतुष्ट होकर बैठक से बाहर आए गये.‘ लेखक आगे लिखते हैं कि कुछ दिनों बाद उन्हें उत्पल कुमार सिंह ने उन्हें बताया कि राष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने पुस्तकालय भवन के लिए 10.00 करोड़ रुपये के सापेक्ष 7.50 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत कर दी है. पुस्तकालय के संदर्भ में यह एक अच्छी खबर थी. अब सवाल भवन निर्माण के लिए जमीन का उपयुक्त टुकड़ा खोजने का था. हमें यह अवश्य महसूस हो रहा था कि उत्पल कुमार सिंह ने यह पहले ही तय कर लिया होगा कि दास द्वारा सुझाये गये लैंसडाउन चौक वाली भूमि पर पुस्तकालय बनाया जाना चाहिए. इसके बाद गंभीरता से पुस्तकालय के लिए वह जगह चिन्हित कर ली गई. यह भूमि नगर निगम की थी अतः महापौर के संज्ञान में लाकर इसे पुस्तकालय भवन के लिए आवंटित कर इसे दून स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाया गया. वाकई में यह एक बड़ा स्वागत योग्य कदम था. हांलाकि हम इसके निर्माण और प्रबंधन के कठिन कार्य से मुक्त थे लेकिन फिर भी इसका कमजोर पक्ष यह रहा कि पुस्तकालय के लिए आदर्श योजना बनाने में हमारी भागीदारी व परामर्श के बगैर तैयार किए गए. बहरहाल वर्ष 2019 में कोविड काल के शुरूआती दौर में निर्माण का कार्य प्रारम्भ होने के बाद वर्ष 2022 के अंतिम माह के आसपास यह भवन पूरी तरह निर्मित हो चुका था.
(Parade Ground to Lansdowne Chowk Book)
इस पुस्तक में लेखक प्रो.जोशी ने संस्थान द्वारा आयोजित विविध कार्यक्रमों और इसकी आउटरीच गतिविधियों पर भी विस्तृत प्रकाश डाला है. उल्लेखनीय है कि दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र अपनी स्थापना काल से ही आपसी चर्चा और विमर्श को भी महत्वपूर्ण मंच प्रदान कर रहा है. इसके तहत विषय विषेषज्ञों के व्याख्यान, गोष्ठी, समूह चर्चा, पुस्तक समीक्षा और प्रदर्शनी जैसे माध्यमों से हम सामाजिक व ऐतिहासिक विषयों पर कार्यक्रमों का आयोजन होते रहते हैं. वर्ष 2007 से 2022 तक दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र द्वारा विविध माध्यमों के अन्तर्गत 175 से अधिक कार्यक्रम आयोजित किये जा चुके हैं. इनमें पेंगुइन बुक्स और यात्रा बुक्स के सहयोग से वर्ष 2008 और 2009 में दो बार तीन दिवसीय साहित्यिक उत्सव माउण्टेन इकोज और दून रीडिंग्स के आयोजन प्रमुख रहे. इसी तरह प्रायोजक के तौर पर देहरादून और अन्य स्थानों पर इस तरह के आयोजन समय साक्ष्य प्रकाशन, वैली ऑफ वंडर्स व कुमाऊं लिटरेचर फेस्टिवल भी आयोजित किये गये. लेखक ने विगत पांच-सात वर्षों की अवधि में उन तीन अंतरराष्ट्रीय स्तर के सेमिनारों का सफल आयोजनों का भी विवरण दिया है जिनमें देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित अध्येताओं व शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया. दिसम्बर 2015 में अनफोल्डिंग सैंट्रल हिमालया: क्रैडिल ऑफ कल्चर पर, मार्च 2018 में वाटर हिमालया: पास्ट, प्रजेंट एण्ड फ्यूचर विषय पर तथा अक्टूबर 2018 में मध्य एवं पश्चिमी हिमालय की संकटग्रस्त भाषाएं पर सेमिनार आयोजित किये गये.
इस पुस्तक में लेखक ने पुस्तकालय के आम प्रबुद्ध पाठकों की व्यक्तिगत राय को भी प्रमुखता से जगह दी है कि वे इस संस्थान के बारे में क्या सोचते हैं. लेखक का माानना है कि पाठक सदस्यों के यह उद्गार संस्थान और कार्यरत स्टाफ के प्रति मददगार प्रवृति को स्वीकार करते हैं. आखिरकार, पुस्तकालय अपने पाठकों के लिए ही तो मौजूद है, और यदि हम उन्हें अच्छी सेवा देने में असमर्थ रहेगें तो हम एक तरह से अपने मूल उद्देश्य को ही खो देगें.
पुस्तक के अंत में संलग्नक के तौर पर संस्थान के कार्यकलापों की कुछ प्रमुख चित्रावली, स्थापना वर्ष 2006-07 से वर्तमान अक्टूबर 2022 तक पुस्तकालय की वर्षवार पुस्तक संख्या, सदस्य संख्या,प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल युवा पाठकों की संख्या तथा प्रकाशित पुस्तकों की विवरण सूची भी दी गई है.
लेखक प्रो. बी.के. जोशी जिस समर्पित व निस्वार्थ मनोभाव से इस संस्थान का मुख्य दायित्व उसकी स्थापना काल से संभालते आ रहे थे और इस संस्थान को सामूहिक टीम के साथ निरन्तर ऊंचाईयां प्रदान करते आ रहे थे लेकिन एकाएक वर्ष 2021 में उन्हें गंभीर स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतों का सामना करन पड़ा. इस वजह से वर्ष 2022 की शुरुआत में शासी निकाय की बैठक में उन्होंने स्वयं अनुरोध किया कि संस्था के निदेशक पद से उन्हें मुक्त कर दिया जाय क्योंकि पुस्तकालय संचालन की जिम्मेदारी निभाने में उन्हें कई तरह कठिनाईंयां महसूस रही थी. उनके इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए शासी निकाय द्वारा पूर्व मुख्य सचिव, उत्तराखंड एन. रविशंकर को निदेशक का दायित्व निभाने के लिए और सलाहकार के रूप में प्रो.जोशी को नई भूमिका के लिये आमंत्रित किया गया.
देहरादून शहर और उत्तराखण्ड प्रदेश के लिए वाकई गर्व की बात है कि दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र एक सुसंम्पन्न प्रबन्ध समिति के संरक्षण तथा निदेशक एन. रविशंकर व सलाहाकर प्रो. बी.के. जोशी के मार्गदर्शन में सहयोगी कार्यकर्ताओं की सामूहिक कार्य भावना तथा पुस्तकालय से जुड़े सदस्यों, पाठकों, शोधार्थियों व साहित्य प्रेमियों के आत्मीय प्रेम व सहयोग से एक आदर्श बौद्धिक केन्द्र बनने के पथ पर अग्रसर हो रहा है.
(Parade Ground to Lansdowne Chowk Book)
कुल मिलाकर ”परेड ग्राउण्ड टू लैंसडाउन चौक : मेकिंग ऑफ दून लाइब्रेरी एण्ड रिसर्च सेन्टर” पुस्तक साफ तौर बताने का उपक्रम करती है कि समाज के हित में निस्वार्थ रुप से किस तरह का रचनात्मक कार्य को अंजाम दिया जा सकता है. समाजिक सन्दर्भ में देखें तो यह पुस्तक लेखक प्रो. बी.के. जोशी के अठारह वर्ष पूर्व पाठकों की आमद से भरपूर रहने वाले एक आदर्श पुस्तकालय के लिए देखे गये उस महान स्वप्न को साकार होते देखने की एक संवेदनात्मक चित्र गाथा है. दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र आज जिस मुकाम पर पहुंचा है वह दरअसल उनकी आत्म प्रचार की मुग्धता से सर्वथा दूर और संयत व शालीन भाव से कार्य करने की शैली और समाज को जोड़ने की उनकी सरल व सहज प्रवृति का सुखद परिणाम ही है. समाज के लिए गई उनकी यह सार्थक पहल निश्चित तौर पर प्रेरणादायी होगी ऐसी आशा है. इस बेहतरीन पुस्तक के लिए लेखक प्रो. बी.के. जोशी साधुवाद के पात्र हैं.
(Parade Ground to Lansdowne Chowk Book)
पुस्तक: परेड ग्राउण्ड टू लैंसडाउन चौक : मेकिंग ऑफ दून लाइब्रेरी एण्ड रिसर्च सेन्टर
लेखक: प्रो. बी.के. जोशी
वर्ष : दिसम्बर, 2022
पृष्ठ : 52
मूल्य : रु. 150/
प्रकाशक: दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र,देहरादून
मुद्रक : समय साक्ष्य प्रकाशन, देहरादून
अल्मोड़ा के निकट कांडे (सत्राली) गाँव में जन्मे चन्द्रशेखर तिवारी पहाड़ के विकास व नियोजन, पर्यावरण तथा संस्कृति विषयों पर सतत लेखन करते हैं. आकाशवाणी व दूरदर्शन के नियमित वार्ताकार चन्द्रशेखर तिवारी की कुमायूं अंचल में रामलीला (संपादित), हिमालय के गावों में और उत्तराखंड : होली के लोक रंग पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. वर्तमान में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में रिसर्च एसोसिएट के पद पर हैं. संपर्क: 9410919938
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
इसे भी पढ़ें: कुमाऊं का स्वतंत्रता संग्राम
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…