पहाड़ की चोटी पर बसे अपने गांव में शीत ऋतु से सामना बचपन में ही हो चुका था. सर्दियां शुरू होतीं और सुबह-शाम ठंड से शरीर कंपकंपाने लगता, दांत किटकिटाने लगते. ठंडी सूखी हवा से होंठ फट जाते. सुबह-सवेरे खेतों की मेंड़ और कच्चे रास्तों-पगडंडियों में फैली... Read more
पापमुक्ति – –शैलेश मटियानी Paap Mukti Story Shailesh Matiyani घी-संक्रांति के त्यौहार में अब सिर्फ दो ही दिन शेष रह गए हैं और त्यौहार निबटते ही ललिता अपने घर, यानी अपनी बड़ी दीदी नंदी के मायके को लौट जाएगी – लेकिन इस बार का उसका लौट... Read more
कायनात की तमाम साज़िशों के बावजूद गणित’ज्ञ’ नहीं हो सके हम. ‘क’ पर ही निपट लिया मामला. उतनी ही गणित सीख सके जितनी बाज़ार से सौदा सुलुफ लाने में काम आ सके. आज भी कोई बच्चा अगर किताब लिए हमारी तरफ बढ़ता है तो नास्तिक मन भी प्रार... Read more
देश में आयुर्वेद और योग की सबसे बड़ी कम्पनी पतंजलि योग पीठ के महामन्त्री बालकृष्ण की बीमारी का रहस्य एक हफ्ते बाद भी बरकरार है. रहस्य इस मामले में कि उनके बीमार होने को विषाक्त मिठाई खाने से जोड़ा जा रहा था, पर अभी तक इस बारे में योगपीठ की ओर से न तो... Read more
पिछली पोस्ट में मैंने भारत के कालजयी लेखक प्रेमचंद के परिवार के साथ रहने के कारण खुद को सौभाग्यशाली व्यक्तियों में माना था. शायद यह मेरा सौभाग्य ही रहा होगा, हालाँकि मुझे नहीं मालूम कि सौभाग्य क्या होता है? ज्ञानी लोग कहते हैं कि जीवन के अगले क्षणों... Read more
उत्तराखंड़ के गांवों की एकता, प्रेमचंद के उपन्यासों मे वर्णित भाइचारे की सच्ची झलक दिखलाती है. सांझा चूल्हा हो या शादी बारात, किसी के घर मे कोई पैदा हो या मरे गांव के सारे लोग साथ खड़े मिलते है. ऐसे कठिन हालात मे भी किसी चीज का अभाव कभी नह... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 42 पिछली कड़ी: एक कमरा, दो भाई और उनके बीच कभी-कभार होती हाथापाई हम सबकी जड़ें गांवों में हैं, लेकिन सबने वहां का जीवन नहीं देखा. मैं अपने गांव के बहुत करीब रहा, लेकिन गांव के जीवन को उस तरह नहीं जान पाया जैसा कि गांव में र... Read more
थोथा देई उड़ाय-1 कल एक मित्र ने मुझे अमित्र कर दिया. ये कुट्टी हो जाने का बालिग संस्करण है. (Facebook Dramas and Anti Dramas) सोशल मीडिया ने, मीडिया का तो जो किया हो, समाज का बड़ा उपकार किया है. अब मेल जोल, जान पहचान का वितान बढ़ गया है. पहले क्या था... Read more
मुंशी प्रेमचंद की क्लासिक कहानी ‘ईदगाह’ की शुरुआत, अगर मुझे ठीक से याद है, तो कुछ इस तरह से है- “रमज़ान के पूरे तीस रोज़ बाद ईद आयी…”. क़िस्सागोई वाले सीधे सपाट अंदाज़ में बयाँ इस कहानी का कथ्य आगे बताता है कि किस तरह ईद... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 38 (पिछली कड़ी: एक शराबी की लाश पर महिलाओं के विलाप ने लिखवाई मुझसे पहली कविता ) आठवीं से नवीं में आने के सफर के दौरान मुझे खुद में दो बदलाव साफ दिखाई दिए- पहला तो मैं छोटे कद और गबरू लुक से बाहर निकलकर थोड़ा लंबा और छरहरा हो [... Read more