हमरी सीता हैं रात अँजोरी तोहरे राम हैं कारा भँवरवा जब कवि अपनी बोली -भाषा या कहें कि मातृभाषा में कविता रचता है ,तो वह मात्र कविकर्म ही नहीं कर रहा होता है, अपितु वह अपनी लोकपरंपरा, संस्कार और स्थानीयता के उज्ज्वल पक्ष के संवाहक के रूप में भी देखा... Read more