इस समय देश में मोटर व्हीकल एक्ट की चर्चा है. इसमें तय किये गए तुगलकी जुर्मानों की रकम की चर्चा भर ही नहीं है बल्कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लाखों तक के जुर्माने की खबरों भर से लोग डरे-सहमे हुए हैं. आज दिल्ली से 1,40,700 रुपए के चालान को भरे जाने की खबर सुर्ख़ियों में है.
नोटबंदी के बाद देश फिर एक बार लाइन में खड़ा है. ये लाइन लगी है प्रदूषण जांच केन्द्रों के बाहर. उत्तराखण्ड में पुलिस द्वारा सीट बेल्ट और प्रदूषण सर्टिफिकेट को कभी तवज्जो नहीं दी गयी. कभी-कभार मार्च से पहले कुछ चालान इन अप्रत्याशित मदों में भी काट दिए जाते थे. सामान्यतः परमिट, लाइसेंस, इंश्योरेंस और हेलमेट की जांच तक ही पुलिसिया कार्रवाई सीमित रहा करती थी. दिल्ली जैसे महानगरों की ओर प्रस्थान करने वाले वाहन स्वामी ही अपना प्रदूषण सर्टिफिकेट चाक-चौबंद रखा करते थे. लिहाजा पूरे प्रदेश में गिने-चुने ही प्रदूषण जांच केंद्र हैं. राजधानी देहरादून तक में मात्र 19 केंद्र हैं.
लिहाजा इन प्रदूषण जांच केन्द्रों में सुबह 4 बजे से दुपहिया, चौपहिया वाहनों की लम्बी कतारें लगी हुई हैं. रात को इन केन्द्रों को संचालकों द्वारा किसी तरह बंद किया जा रहा है. वाहन चालक अनिष्ट की आशंका से घबराए हुए हैं.
उत्तराखण्ड के संदर्भ में मोटर व्हीकल नियमों के एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू पर और भी ध्यान दिया जाना चाहिए. यहाँ के पर्वतीय जिलों में यातायात नियमों का पालन करने के लिए किसी भी तरह के ढांचे का अभाव है. स्थिति की अंदाजा लगाने के लिए यह तथ्य काफी है कि नैनीताल तक में अब प्रदूषण जांच केंद्र शुरू किया जा रहा है.
अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत, चम्पावत, चमोली, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल आदि पर्वतीय जिलों में न प्रदूषण जांच केंद्र है, न इंश्योरेंस की सुविधा. ये सुविधाएं जिला मुख्यालयों के अलावा इन जिलों के किसी कस्बे में नहीं है. मिसाल के लिए ओखलकांडा, पतलोट, देवीधुरा तक के वाहन चालकों को प्रदूषण जांच सर्टिफिकेट के लिए 100 किमी से ज्यादा दूरी तय कर हल्द्वानी आना पड़ेगा.
इन पर्वतीय जिलों के ज्यादातर इलाकों में पेट्रोल पम्प तक नहीं हैं, प्रदूषण जांच केंद्र तो दूर की बात. जब प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में मोटर व्हीकल एक्ट के नियमों को लागू करने के लिए बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं तो प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह पहले इसका इंतजाम करे. पर्वतीय क्षेत्रों में प्रदूषण जांच केन्द्रों, इंश्योरेंस, लाइसेंस आदि बनाने के लिए पर्याप्त सेंटर बनाये जाने चाहिए. इस तरह का ढांचा बनाये बगैर एक्ट को प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में लागू करना जुल्म ही कहा जा सकता है.
-सुधीर कुमार
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